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मोदी-शाह के स्टाइल में ही BJP को UP में काउंटर करेंगी प्रियंका गांधी

प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जड़ों को मजबूत करने के लिए  वही तरीके अपना रही है जिसे भाजपा 2014 में आजमा चुकी है. सपा-बसपा गठबंधन से दरकिनार किए जाने के बाद कांग्रेस अपने परंपरागत वोटबैंक को मजबूत करने के साथ-साथ प्रदेश में छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर रही है.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (गंगा नदी के जरिए प्रयागराज से काशी दौरे के बीच) कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी (गंगा नदी के जरिए प्रयागराज से काशी दौरे के बीच)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 19 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 7:51 AM IST

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस महासचिव और पूर्वी यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी राजनीतिक समीकरण दुरुस्त करने में जुटी हैं. कांग्रेस वही तरीके अपना रही है जिसे भाजपा 2014 में आजमा चुकी है. सपा-बसपा गठबंधन से दरकिनार किए जाने के बाद कांग्रेस अपने परंपरागत वोटबैंक को मजबूत करने के साथ-साथ प्रदेश में छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर रही है.

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कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में अभी तक 3 दलों के साथ गठबंधन किया है. कांग्रेस ने सबसे पहले महान दल से हाथ मिलाया. इसके बाद कृष्णा पटेल की अपना दल और बाबू सिंह कुशवाहा की राष्ट्रीय जन अधिकार पार्टी (RJAP) से समझौता किया. कांग्रेस ने अपना दल को 2 सीटें और आरजेएपी को 7 सीटें दी हैं. हालांकि 5 सीटें सीधे तौर पर दी गई हैं और 2 सीटों पर उसके उम्मीदवार कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे.

बीजेपी ने 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में ऐसे ही छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन करके चुनावी बाजी जीती थी. लोकसभा में अपना दल के साथ गठबंधन किया था तो विधानसभा में ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था. इसी फॉर्मूले के तहत कांग्रेस ने इन तीनों दलों से हाथ मिलाया है. इसके जरिए कांग्रेस ने गैर यादव ओबीसी मतों को साधने की रणनीति बनाई है.

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अपना दल का आधार जहां कुर्मी मतदाता हैं. वहीं, महानदल औैर राष्ट्रीय जन अधिकार पार्टी का आधार मौर्य, शाक्य, सैनी और कुशवाहा मतदाता हैं. इन दोनों समुदाय का वोट करीब 12 फीसदी होता है. मौजूदा समय में इस वोटबैंक पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है. ऐसे में कांग्रेस ने इन मतों को साधकर बीजेपी को हराने की रणनीति बनाई है.

बीजेपी ने सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए  2014 में छोटे दलों के साथ गठबंधन करने के साथ-साथ दूसरे दलों के बागी नेताओं को पार्टी में शामिल कराया था. उन्हें टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार दिया था. बीजेपी ने बसपा, सपा और कांग्रेस से आए बागियों का बीजेपी बड़ा ठिकाना बनी थी. बीजेपी को इसका फायदा भी मिला था.

इसी तर्ज पर कांग्रेस भी 2019 के चुनाव में बागियों का ठिकाना बन रही है. प्रियंका गांधी के सक्रिय होने के बाद विपक्षी दलों के बागी नेताओं का कांग्रेस का दामन थामने का सिलसिला जारी है. सपा-बसपा-बीजेपी से आए इन नेताओं को पार्टी की सदस्यता ही नहीं दी जा रही है बल्कि उन्हें टिकट भी दिया जा रहा है. अभी तक सूबे में जारी कांग्रेस की लिस्ट में दूसरी पार्टियों से आए करीब एक दर्जन बागियों को पार्टी ने अपना प्रत्याशी बनाया है.

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इतना ही नहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी गंगा के जरिए प्रयागराज से काशी की यात्रा कर रही हैं. इसे बड़ा राजनीतिक संकेत देने के साथ-साथ सामाजिक समीकरण साधने की कवायद के रूप में देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि यह सूबे के मल्लाह वोटों को पाले में लाने की रणनीति है.

सूबे में इस समुदाय का करीब 5 फीसदी वोट है. मल्लाह समुदाय सूबे में निषाद, बिंद, केवट, कश्यप, धुरिया, रैकवार, धीमार, मांझी और बॉथम नाम से जानी जाता है. फिरोजाबाद, बदायूं, शाहजहांपुर, कैराना, मछलीशहर, जौनपुर, गाजीपुर, फूलपुर, गोरखपुर, सीतापुर, बालिया, देवरिया, उन्नाव, फतेहपुर और जालौन लोकसभा सीटों पर इनका सीधा प्रभाव है.

कांग्रेस बागियों और छोटे दलों के सहारे बीजेपी को घेरने में जुटी है. देखना यह है कि सोशल इंजीनियरिंग की इस रणनीति से कांग्रेस बीजेपी को मात दे पाती है या नहीं.

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