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दिल्ली में कांग्रेस ने तजुर्बे पर लगाया दांव, उतारी शीला दीक्षित की 'टीम'

कांग्रेस के इन सभी प्रत्याशियों का लंबा राजनीतिक व चुनावी अनुभव रहा है. साथ ही इन सभी नेताओं की राजनीतिक कर्मभूमि भी दिल्ली ही रही है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार जे.पी अग्रवाल ने 1973 में यूथ कांग्रेस जिलाध्यक्ष पद से अपने सफर का आगाज किया था और इसके बाद वो डिप्टी मेयर पद से होते हुए 1984 में पहली बार लोकसभा सांसद बने.

कांग्रेस ने दिल्ली की सात में से 6 लोकसभा सीटों के प्रत्याशी घोषित किए कांग्रेस ने दिल्ली की सात में से 6 लोकसभा सीटों के प्रत्याशी घोषित किए
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 22 अप्रैल 2019,
  • अपडेटेड 1:14 PM IST

आम आदमी पार्टी से गठबंधन की संभावनाओं पर विराम लगने के बाद अब कांग्रेस ने भी दिल्ली में अपने प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है. पार्टी ने सात सीटों में से 6 पर प्रत्याशियों के नाम की घोषणा की है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित खुद चुनावी मैदान में उतर गई हैं और उन्हें उत्तर पूर्व दिल्ली सीट से प्रत्याशी बनाया गया है. सिर्फ यही नहीं, कांग्रेस ने शीला दीक्षित के साथ अपने अनुभवी व पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताया है.

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शीला दीक्षित के अलावा चांदनी चौक लोकसभा सीट से पूर्व सांसद जे.पी अग्रवाल, पूर्वी दिल्ली से अरविंदर सिंह लवली, नई दिल्ली से अजय माकन, उत्तर-पश्चिम दिल्ली से राजेश लिलौथिया और पश्चिम दिल्ली से महाबल मिश्रा को टिकट दिया है.

इन सभी प्रत्याशियों का लंबा राजनीतिक व चुनावी अनुभव रहा है. साथ ही इन सभी नेताओं की राजनीतिक कर्मभूमि भी दिल्ली ही रही है. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में शुमार जे.पी अग्रवाल ने 1973 में यूथ कांग्रेस जिलाध्यक्ष पद से अपने सफर का आगाज किया था और इसके बाद वो डिप्टी मेयर पद से होते हुए 1984 में पहली बार लोकसभा सांसद बने. अग्रवाल कुल चार बार लोकसभा सांसद रहे हैं और राज्यसभा में भी वो रह चुके हैं.

इसके अलावा 2007 में उन्होंने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस पद की जिम्मेदारी भी संभाली. हालांकि, 2014 में वो मोदी लहर में उत्तर पूर्व सीट से हार गए थे, लेकिन पार्टी ने इस बार उन्हें कपिल सिब्बल की जगह चांदनी चौक से उतारा है. 

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शीला दीक्षित के साथ जेपी अग्रवाल

जेपी अग्रवाल की तरह ही अजय माकन और अरविंदर सिंह लवली भी दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं और दोनों ही नेताओं का दिल्ली की राजनीति में बड़ा दखल रहा है. 1993, 1998 व 2003 में लगातार तीन बार दिल्ली से विधायक बनने वाले अजय माकन राज्य सरकार में मंत्री भी रहे हैं. इसके अलावा वो 2004 व 2009 में लगातार दो बार लोकसभा सांसद बने और केंद्रीय मंत्रिमंडल का भी हिस्सा रहे. माकन को राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता है.

दूसरी तरफ अरविंदर सिंह लवली का भी दिल्ली में राजनीति में बड़ा तजुर्बा रहा है. एनएसयूआई से राजनीति की शुरुआत करने वाले लवली 1998 से 2013 तक लगातार विधायक बने और शीला दीक्षित सरकार में मंत्री भी रहे. इसके अलावा दिल्ली की सत्ता जाने के बाद उन्होंने प्रदेश इकाई का अध्यक्ष रहते हुए पार्टी के लिए संघर्ष भी किया. हालांकि, बीच में उन्होंने बीजेपी के साथ जाकर अपनी नाराजगी भी जाहिर की, लेकिन बाद में राहुल गांधी ने उनकी घर वापसी कराई.

वहीं, महाबल मिश्रा दिल्ली नगर निगम काउंसलर की राजनीति करते हुए विधानसभा पहुंचे और तीन बार विधायक बने. 2009 में उन्होंने पश्चिम दिल्ली लोकसभा चुनाव भी जीता. अब एक बार फिर उन्हें इसी क्षेत्र से मौका दिया गया है.

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राजेश लिलौथिया को दिल्ली की एकमात्र आरक्षित उत्तर-पश्चिम सीट से उतारा गया है. राजेश लिलौथिया फिलहाल दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष भी हैं और पार्टी के केंद्रीय संगठन में सचिव की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं. 2004-2013 तक विधायक रहने वाले राजेश लिलौथिया पांच साल दिल्ली प्रदेश यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.

इस तरह कांग्रेस ने शीला दीक्षित के नेतृत्व में उन चेहरों को चुनावी मैदान में उतारा है, जो न सिर्फ पार्टी के भरोसेमंद हैं बल्कि दिल्ली की राजनीति में उनका लंबा अनुभव भी है. कांग्रेस ने शीला दीक्षित के राज में पुराने व दिग्गज चेहरों पर भरोसा इसलिए जताया है क्योंकि आप से गठबंधन न होने के बाद यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.

ऐसे में शीला दीक्षित के नाम पर दिल्ली की जनता के जिस भरोसे की चर्चा अक्सर की जाती है, उसी को भुनाने के मकसद से कांग्रेस ने ये रणनीति अपनाई है. इस लिस्ट में अजय माकन और अरविंदर सिंह लवली को छोड़कर सभी नाम शीला दीक्षित के करीबी माने जाते हैं. हालांकि, ये दोनों नेता भी शीला दीक्षित के साथ काफी काम कर चुके हैं. साथ ही चुनाव में बेहद कम वक्त होने के चलते भी जाने-पहचाने चेहरों को ही तरजीह दी गई है. ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दिल्ली की सत्ता पर तीन दशक तक राज करने वाली शीला दीक्षित की टीम पर जनता कितना भरोसा कर पाएगी.

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