
राजनीति में विरासत संभालने की परिपाटी कोई नई बात नहीं है. सियासी घरानों के बेटे, बेटियां, पत्नी, भाई और भतीजा अपनों की विरासत संभालते रहे हैं. ये अलग बात है कि कई सफल होते हैं और कई असफल भी देखे गए हैं. गुरुवार को रही लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग में ही कई प्रत्याशी ऐसे हैं, जिनकी अपनी राजनीतिक विरासत रही है और उसी के प्रभाव से वो चुनावी रण में हैं. आइए राज्यवार जानते हैं उन प्रत्याशियों और दलों के बारे में जिन्होंने टिकट देने में परिवारवाद या भाई-भतीजावाद को प्राथमिकता दी है. बता दें कि गुरुवार को पहले चरण की वोटिंग में 20 राज्यों की 91 सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं.
सबसे पहले बात उत्तर प्रदेश की, यहां आज 8 सीटों पर वोटिंग हो रही है. बीजेपी, कांग्रेस और एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन ने यूपी के मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. ऐसे में गठबंधन और कांग्रेस ने प्रत्याशियों को उतारने में परिवारवाद या भाई भतीजावाद को ध्यान में रखा है. आरएलडी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को गठबंधन ने बागपत सीट से उतारा है. उनके दादा स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री और पिता चौधरी अजीत सिंह कई बार सांसद और केंद्रीय मंत्री रहे हैं. चौधरी अजीत सिंह खुद भी मुजफ्फरनगर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि, बागपत सीट पर अजीत सिंह का दबदबा रहा है, वो यहां से छह बार सांसद रह चुके हैं.
वहीं, यूपी की एक अन्य हॉट सीट- कैराना से बेगम तबस्सुम हसन अपनी किस्मत आजमा रही हैं. उनके परिवार के कई सदस्य इस सीट पर चुनाव लड़े और जीते. उनके ससूर अख्तर हसन सांसद रहे चुके हैं जबकि उनके पति मुनव्वर हसन कैराना से दो बार विधायक, दो बार सांसद, एक बार राज्यसभा और एक बार विधान परिषद सदस्य रहे. अब हसन परिवाद की तीसरी पीढ़ी के कंवर हसन भी 2014 में लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन मोदी लहर में हार गए. तबस्सुम हसन समाजवादी पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. कांग्रेस भी इस मामले में पीछे नहीं रही है. उसने इमरान मसूद को सहारनपुर सीट से खड़ा किया है. बता दें कि इमरान के चाचा राशिद मसूद राजनीति के जाने-माने चहेरे हैं, वो अलग-अलग पार्टियों से सांसद रहे हैं और केंद्रीय मंत्री भी रहे चुके हैं.
बात परिवारवाद या भाई भतीजावाद की हो और उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य बिहार का नाम ना आए ऐसा कैसे हो सकता है. लालू यादव और रामविलास पासवान यहां के कुछ ऐसे नाम हैं, जिन्होंने वंशवाद को राजनीति में खूब फलने फूलने का मौका दिया. भले ही इस बार लालू यादव और रामविलास पासवान चुनावी रण में नहीं है लेकिन लालू के बेटे तेजस्वी यादव और बेटी मीसा भारती उनकी विरासत को संभालने में लगे हुए हैं तो वहीं केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के मुखिया रामविलास पासवान के परिवार के ज्यादातर सदस्य चुनाव लड़ रहे हैं. उनके बेटे चिराग पासवान यहां की सुरक्षित सीट जमुई से जबकि भाई पशुपति कुमार पारस हाजीपुर और दूसरे भाई रामचंद्र पासवान समस्तीपुर सीट से भाग्य आजमा रहे हैं. साथ ही एलजेपी ने नवादा सीट से चंदन कुमार जो कि बिहार के बाहुबली सूरजभान के भाई हैं, को मौका दिया है. बता दें कि एलजेपी बिहार में एनडीए की सहयोगी है.
बिहार के एक और मुख्यदल राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने विभा देवी को टिकट दिया है. उनके पति आरजेडी से निष्कासित विधायक राजब्बलभ यादव हैं. यादव को नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. कुछ ऐसा ही जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) और बीजेपी में देखने मिला. जेडीयू ने विजय कुमार मांझी गया संसदीय सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी मां भगवती देवी सांसद रहे चुकी हैं. तो बीजेपी ने औरंगाबाद से सुशील कुमार सिंह को मैदान में उतारा है, उनके पिता राम नरेश सिंह दो बार सांसद रहे हैं.
कांग्रेस नेता मनीष खंडूरी उत्तराखंड की गढ़वाल संसदीय सीट पर चुनावी रण में हैं. उनके पिता बीसी खंडूरी उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रहे चुके हैं. तो वहीं उत्तराखड़ में बीजेपी ने 8 बार के विधायक गुलाब सिंह के बेटे प्रीतम सिंह को टिहरी गढ़वाल सीट से टिकट दिया. प्रीतम सिंह प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भी हैं.
आंध्र प्रदेश में वंशवाद की सियासत चरम पर है. वाईएसआरसी पार्टी के संस्थापक वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने अपने चचेरे भाई वाईएस अविनाश रेड्डी को कड़प्पा संसदीय सीट से टिकट दिया है. वाईएस अविनाश रेड्डी 2014 में भी यहां से चुनाव जीत चुके हैं. वहीं, वाईएसआरसीपी की ही चिंता अनुराधा अमलापुरम सीट से चुनाव लड़ रही हैं वो पार्टी के ही पूर्व सांसद चिंता कृष्णामूर्ति की बेटी हैं. उन्हें इस सी़ट पर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालायोगी के बेटे और टीडीपी उम्मीदवार गंती हरीश मधुर से चुनौती मिल रही है.
तेलंगाना की निजामाबाद से मुख्यमंत्री कल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव (केसीआर) की बेटी के. कविता मैदान में हैं. वे यहां से 2014 में भी चुनाव जीत चुकी हैं. उनके भाई के. रामा राव (केटीआर) भी सांसद रह चुके हैं. बता दें कि टीआरएस मुखिया और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव का तेलंगाना आंदोलन चलाकर क्षेत्र को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने में अहम योगदान रहा है. उनकी तेलंगाना की सियासत में मजबूत पकड़ है.
नेशनल पीपुल्स पार्टी से अगाथा संगमा मेघालय की तुरा सीट से चुनाव लड़ रही हैं. वह पूर्व केंद्रीय मंत्री भी रह चुकी हैं. अगाथा प्रदेश के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा की बहन और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा की बेटी हैं.
वहीं, ओडिशा की जिन चार सीटों पर मतदान चल रहा है, उनमें से तीन सीटों पर बीजू जनता दल ने परिवार के लोगों को ही मौका दिया है. यहां की कालाहांडी सीट से बीजेडी ने पूर्व विधायक चंद्रभान सिंह देव के बेटे पुष्पेंद्र सिंह देव, नवरंगपुर सीट से पूर्व विधायक जाधव माझी के बेटे रमेश चंद्र माझी और कोरापुरट से मौजूदा सांसद झीना हिकाका की पत्नी कौशल्या हिकाका को टिकट दिया है. ओडिशा में बीजेपी ने भी बेहरामपुर सीट से पूर्व विधायक हरीश चंद्र बक्सीपात्रा के बेटे भरुगु बक्सी पात्रा को टिकट दिया है.इस प्रकार पहले चरण के संसदीय चुनाव में पूरे देश में परिवारवाद या भाई-भतीजावाद की सियासत राजनीति के पटल पर देखने को मिली है.
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