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गोरखपुर सीट: योगी की कर्मभूमि में क्या फिर से खिलेगा कमल?

गोरखपुर लोकसभा सीट के इतिहास पर अगर नजर डालें तो अभी तक 18 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. इनमें से पांच बार कांग्रेस को जीत मिली जबकि सबसे ज्यादा सात बार बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता पर योगी आदित्यनाथ को विराजमान होने के बाद हुए उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा ने जीत हासिल की थी.

योगी आदित्यनाथ योगी आदित्यनाथ
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 27 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 3:17 PM IST

उत्तर प्रदेश की गोरखपुर लोकसभा सीट हाई प्रोफाइल सीटों में से एक है. ये इलाका बीजेपी का सबसे मजबूत दुर्ग माना जाता है. पिछले तीन ढाई दशक से बीजेपी का इस सीट पर कब्जा रहा है. लेकिन 2017 में उत्तर प्रदेश की सत्ता पर योगी आदित्यनाथ को विराजमान होने के बाद हुए उपचुनाव में बसपा के समर्थन से सपा ने जीत हासिल की थी. लंबे समय तक योगी आदित्यनाथ की कर्मभूमि रही गोरखपुर सीट पर बीजेपी 2019 के लोकसभा चुनाव में क्या वापसी कर पाएगी?

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राजनीतिक पृष्ठभूमि

गोरखपुर लोकसभा सीट के इतिहास पर अगर नजर डालें तो अभी तक 18 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. इनमें से पांच बार कांग्रेस को जीत मिली, जबकि सबसे ज्यादा सात बार बीजेपी जीतने में कामयाब रही थी. इसके अलावा दो बार निर्दलीय, एक बार हिंदू महासभा, एक बार भारतीय लोकदल और एक बार सपा को जीत मिली है.

गोरखपुर सीट पर पहली बार 1951-52 में हुए चुनाव में कांग्रेस के सिंहासन ने जीत हासिल की. वो 1962 तक यहां से लगातार सांसद चुने गए. 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार गोरखनाथ मंदिर के महंत दिग्विजयनाथ ने जीत हासिल की. इसके बाद उनकी सियासी विरासत महंत अवैधनाथ ने संभाली और 1970 में वो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की.

1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने नरसिंह नारायण पांडेय के जरिए वापसी की, लेकिन 1977 में हरिकेश बहादुर भारतीय लोकदल जीतने में कामयाब रहे थे. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और 1980 में फिर जीत हासिल की. इसके बाद 1984 में कांग्रेस के मदन पांडेय सांसद चुने गए गए. हालांकि इस सीट पर इसके बाद कांग्रेस अब तक वापसी नहीं कर सकी.

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1989 से महंत अवैद्यनाथ ने यहां से हिंदू महासभा उम्मीदवार के तौर पर जीत दर्ज की. इसके बाद 1991 में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया और 1991 और 1996 में जीत का परचम लहराया. 1998 में योगी आदित्यनाथ उनके राजनीतिक विरासत के तौर पर उतरे और इस पर लगातार जीतते रहे तथा 2014 तक लगातार पांच बार इस सीट से सांसद चुने गए. लेकिन सीएम बनने के बाद 2017 में उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया और 2018 में बसपा के समर्थन से सपा से प्रवीण कुमार निषाद यहां सांसद बने.

सामाजिक ताना-बाना

गोरखपुर संसदीय सीट पर 2011 की जनगणना के अनुसार 19.5 लाख मतदाता हैं. इस सीट पर सबसे ज्यादा निषाद समुदाय के वोटर हैं. गोरखपुर सीट पर करीब 3.5 लाख वोट निषाद जाति के लोगों का है. उसके बाद यादव और दलित मतदाताओं की संख्या है. दो लाख के करीब ब्राह्मण मतदाता हैं. इसके अलावा करीब 13 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं.

गोरखपुर लोकसभा सीट के तहत सूबे की पांच विधानसभा सीट आती है. इनमें कैम्पियरगंज, पिपराइच, गोरखपुर नगरीय, गोरखपुर ग्रामीण और सहजनवां सीट है. मौजूदा समय में इन सभी पांचों सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.

2014 और 2018 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर सीट पर बीजेपी योगी आदित्यनाथ ने सपा की राजमति निषाद को 3,12,783 वोट से मात दी थी, लेकिन 2018 में हुए उपचुनाव में सपा के प्रवीण निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला को कांटेदार मुकाबले में 21,881 मतों से मात दे दिया. इस जीत के साथ ही सपा पहली बार गोरखपुर सीट से खाता खोलने में कामयाब रही.

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सपा के प्रवीण निषाद को 4,56,513 वोट मिले

बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला को 4,34,632 वोट मिले

कांग्रेस के डॉ. सुरहिता करीम को 18,858 वोट मिले

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