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कैराना लोकसभा: 11 अप्रैल को मतदान, तबस्सुम हसन समेत 13 उम्मीदवार मैदान में

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होना है, जिसमें से एक कैराना लोकसभा सीट भी है. इस सीट से कुल 13 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं.

तबस्सुम हसन समेत कैराना सीट पर 13 उम्मीदवार मैदान में (Photo: PTI) तबस्सुम हसन समेत कैराना सीट पर 13 उम्मीदवार मैदान में (Photo: PTI)
अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 31 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 9:07 PM IST

कैराना उपचुनाव में मिली हार के बाद अब बीजेपी ने यहां से उम्मीदवार बदलकर पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश की है. पार्टी ने यहां से प्रदीप चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. जबकि सपा ने तबस्सुम हसन को मैदान में उतारा है. वहीं मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए कांग्रेस प्रत्याशी हरेंद्र मलिक ने भी पूरा जोर लगा रखा है.

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दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होना है, जिसमें से एक कैराना लोकसभा सीट भी है. इस सीट से कुल 13 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं. हालांकि मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा-बसपा गठबंधन के बीच है. साल 2018 में हुए कैराना उपचुनाव में आरएलडी के टिकट पर तबस्सुम हसन ने जीत दर्ज की थी. हालांकि, टिकटों के ऐलान से ठीक पहले वो आरएलडी छोड़ एसपी में चली गईं और अब एसपी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं.  

बीजेपी ने प्रदीप चौधरी पर लगाया दांव

2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हुकुम सिंह ने कैराना सीट से बाजी मारी थी. लेकिन उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में सपा के समर्थन से यह सीट आरएलडी जीतने में कामयाब रही थी. आरएलडी के टिकट पर तबस्सुम हसन ने बीजेपी की उम्मीदवार मृगांका सिंह को 44618 वोटों से शिकस्त दी थी. अब बीजेपी ने गंगोह से विधायक प्रदीप चौधरी पर दांव लगाया है. प्रदीप चौधरी नकुड़ और गंगोह से तीन बार विधायक रह चुके हैं.

गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले प्रदीप आरएलडी, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में भी रह चुके हैं. 2016 में प्रदीप चौधरी बीजेपी में शामिल हुए और 2017 में वह गंगोह से विधायक चुने गए. जातीय समीकरण के लिहाज से इस सीट पर सबसे ज्यादा 5 लाख मुस्लिम मतदाता हैं. जबकि करीब 4 लाख बैकवर्ड (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) वोटर्स हैं.

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट राजनीतिक लिहाज से काफी अहम सीट है. यह लोकसभा सीट 1962 अस्तित्व में आई. पहले ही चुनाव में इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी. उसके बाद इस सीट पर सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी और कांग्रेस के पास ही रही. लेकिन 1996 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की, 1998 में भारतीय जनता पार्टी, फिर लगातार दो बार राष्ट्रीय लोक दल, 2009 में बहुजन समाज पार्टी और 2014 में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. 2018 में जब उपचुनाव हुए तो बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी.

कैराना लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं. पांच में से चार विधानसभा सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थीं. इनमें नकुड़ BJP, गंगोह BJP, कैराना SP, थाना भवन BJP, शामली BJP के खाते में ही गई थीं. कैराना लोकसभा सीट पश्चिमी उत्तर प्रदेश को प्रभावित करने वाली सीट है. 2014 के आंकड़ों के अनुसार इस सीट पर कुल 15,31,755 वोटर थे. इनमें 8,40,623 पुरुष और 6,91,132 महिला वोटर थीं. 2018 में हुए उपचुनाव में इस सीट पर 4389 वोट नोटा को डाले गए थे.

सांसद तबस्सुम हसन के बारे में

मौजूदा सांसद तबस्सुम हसन राजनीति परिवार से ही आती हैं. 2018 का उपचुनाव तबस्सुम ने राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार के तौर पर जीतीं. लेकिन इससे पहले वह 2009 में बहुजन समाज पार्टी की तरफ से जीत दर्ज कर चुकी हैं. 2014 में उनके ही बेटे नाहिद हसन ने ही हुकुम सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा था. इतना ही नहीं कैराना सीट से ही तबस्सुम हसन के ससुर चौधरी अख्तर हसन सांसद रह चुके हैं. तबस्सुम के पति मुनव्वर हसन भी कैरान से दो बार विधायक, दो बार सांसद रह चुके हैं.

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संसद में तबस्सुम हसन को काफी ही कम समय मिला. वो सिर्फ दो ही सदनों में हिस्सा ले पाईं, इस दौरान उन्होंने 4 सवाल पूछे. सितंबर, 2018 में तबस्सुम को संसद की ह्यूमन रिसॉर्स डेवलेपमेंट की स्टैंडिंग कमेटी में शामिल किया. वह दो बार कैराना से सांसद रहने के अलावा शामली से जिला पंचायत का चुनाव भी जीत चुकी हैं.

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