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कैसे हुआ था देश में पहला लोकसभा चुनाव? जानें कुछ दिलचस्प बातें...

General Election 1952 पहले चुनाव में ढाई लाख मतदान केंद्र बने, साढ़े सात लाख बैलेट बॉक्स बनाए गए, तीन लाख से ज्यादा स्याही के पैकटों का इस्तेमाल हुआ. इतना ही नहीं चुनाव आयोग को करीब 16000 लोगों को अनुबंध के तहत 6 महीने काम पर लगाना पड़ा.

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मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 22 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 7:43 AM IST

16वीं लोकसभा के खत्म होते ही देश में आम चुनाव का बिगुल फूंका जा चुका है. नेताओं के भाषण, रैलियां और चुनावी दौरे अपने चरम पर हैं. साथ-साथ आम जनता भी पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुकी है. चुनाव को लेकर देश में क्या चल रहा है इस बारे में आप फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप के जरिए जान ही रहे हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि आजाद भारत में जब पहली बार आम चुनाव कैसे हुए थे. कितने दिनों में हुए और कितनी पार्टियों ने उसमें किस्मत आजमाई थी. देश के पहले चुनाव से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से यहां पढ़ें...

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1950 में संविधान लागू होने के बाद 1951 में देश में पहली बार आम चुनाव हुए, जो 1952 तक चले. अक्टूबर 1951 में आम चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई जो पांच महीने तक चली और फरवरी 1952 में खत्म हुई. पहली बार जब चुनाव हुए तो कुल 4500 सीटों के लिए वोट डाले गए, इनमें से 489 लोकसभा की और बाकी विधानसभा सीटें थीं.

1951 के आम चुनाव में 14 राष्ट्रीय पार्टी, 39 राज्य स्तर की पार्टी और निर्दलीय उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई. इन सभी दलों के कुल 1874 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे थे. राष्ट्रीय पार्टियों में मुख्य तौर पर कांग्रेस, सीपीआई, भारतीय जनसंघ और बाबा साहेब अंबेडकर की पार्टी शामिल थी. इसके अलावा भी अकाली दल, फॉरवर्ड ब्लॉक जैसी पार्टियां चुनाव में शामिल हुई थीं.

लोकसभा की 489 सीटों में से 364 कांग्रेस के खाते में गई थीं, यानी जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में कांग्रेस को संपूर्ण बहुमत मिला था. कांग्रेस के बाद सीपीआई दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी जिसे 16 सीटें मिलीं, सोशलिस्ट पार्टी को 12 और 37 सीटों पर निर्दलीयों ने जीत दर्ज की थी. भारतीय जनसंघ ने 94 सीटों पर चुनाव लड़ा और तीन ही सीटें जीतीं.

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पहले चुनाव के दौरान कुल 17 करोड़ वोटर थे, लेकिन मतदान सिर्फ 44 फीसदी ही हुआ था. चुने गए 489 सांसदों में से 391 सामान्य, 72 एससी और 26 एसटी जाति से थे. तब मतदान करने की उम्र भी 18 साल नहीं थी, 21 साल से ऊपर के लोगों को ही वोट देने दिया जाता था.

पहले चुनाव के समय सुकुमार सेन देश के पहले चुनाव आयुक्त थे, चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग को भी काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. तब ईवीएम को लेकर लड़ाई नहीं होती थी, क्योंकि ठप्पा लगाने के लिए कोई दूसरा ऑप्शन ही नहीं था और बैलेट पेपर से मतदान होता था.

पहले चुनाव में ढाई लाख मतदान केंद्र बने, साढ़े सात लाख बैलेट बॉक्स बनाए गए, तीन लाख से ज्यादा स्याही के पैकटों का इस्तेमाल हुआ. इतना ही नहीं चुनाव आयोग को करीब 16000 लोगों को अनुबंध के तहत 6 महीने काम पर लगाना पड़ा. तब देश की साक्षरता काफी कम थी, इसलिए आयोग की तरफ से गांव-गांव में नुक्कड़ नाटक करवा कर लोगों को वोट डालने के लिए कहा गया.  

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