
राजस्थान की जालौर लोकसभा सीट पर 29 अप्रैल को चौथे चरण में मतदान हुए. इस सीट पर कुल 65.66 फीसदी मतदान रिकॉर्ड किया गया. वहीं, पूरे इस चरण में राजस्थान में कुल 68.09 प्रतिशत मतदान रहा. चौथे चरण में 9 राज्यों की 71 लोकसभा सीटों पर मतदान हुए. चौथे चरण में मतदान का प्रतिशत 61.97 रहा. अब 23 मई को वोटों की गिनती होगी और चुनाव के नतीजे घोषित किए जाएंगे.
वहीं, चुनाव आयोग ने शांतिपूर्ण मतदान कराने के लिए सुरक्षा के पुख्त बंदोबस्त किए थे. जालौर संसदीय क्षेत्र में भारी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती की गई थी. जालौर लोकसभा सीट से 15 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. यह सीट कभी बूटा सिंह का गढ़ रही है. इस बार यहां से कांग्रेस ने पूर्व विधायक रतन देवासी को टिकट दिया है, जबकि बीजेपी ने लगातार दो बार से सांसद देवजी पटेल पर तीसरी बार दांव लगाया है.
राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान चढ़ा राजनीतिक पारा अब तक बरकरार है. विधानसभा चुनाव में मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस पार्टी उत्साहित है और लोकसभा चुनाव में जीत का दम भर रही है. वहीं, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) विधानसभा चुनाव में मिली हार की भरपाई करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है.
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राजस्थान की सभी 25 सीटों पर जीत का परचम लहराया था, लेकिन 2018 में हुए लोकसभा उपचुनाव में अलवर और अजमेर सीट कांग्रेस ने हथिया ली थी. राजस्थान की जालौर लोकसभा सीट शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रही है, लेकिन साल 2004 से यहां पर बीजेपी का कब्जा है. बीजेपी के देवीजी पटेल पिछले दो बार से यहां से जीत दर्ज कर रहे हैं.
जालौर लोकसभा सीट आजादी के बाद से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट थी, लेकिन 2009 से यह सीट सामान्य हो गई है. इस सीट पर कुल 16 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, जिनमें से 8 बार कांग्रेस, 4 बार बीजेपी, एक बार स्वतंत्र पार्टी, एक बार भारतीय लोक दल और एक बार निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है. यहां से साल 1952 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी भवानी सिंह जीते थे.
इसके बाद 1957,1962, 1971, 1980, 1984, 1991, 1996, 1998, 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. साल 1967 में स्वतंत्र पार्टी, 1977 में बीएलडी जीती थी, तो वहीं 1989, 2004, 2009 और 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना झंडा गड़ा था. इस लिहाज से पिछले 3 बार से जालौर सीट पर लगातार बीजेपी का कब्जा है.
अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के कारण जालौर लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है. पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व राज्यपाल बूटा सिंह जालौर लोकसभा का चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. बूटा सिंह के वर्चस्व को तोड़ने के लिए बीजेपी में उनके कद का कोई बड़ा दलित नेता नहीं था. लिहाजा साल 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दक्षिण भारत से पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को दलित चेहरे के तौर पर बूटा सिंह के खिलाफ खड़ा किया था.
हालांकि बंगारू लक्ष्मण को हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद साल 2004 के लोकसभा चुनाव में बंगारू लक्ष्मण की पत्नी सुशीला बंगारू को जालौर में बीजेपी का उम्मीदवार बनाया गया. साल 2004 के चुनाव में सुशीला बंगारू ने बूटासिंह हराकर जालौर की पहली महिला सांसद बनीं.
इस संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की 8 सीटें आती हैं, जिनमें से 6 सीटों पर पटेल और चौधरी समाज का अच्छा खासा प्रभाव है. इसके बाद यहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वोट निर्णायक माने जाते हैं. इन 8 विधानसभा सीटों में से 5 सीटें जालौर जिले और 3 सीटें सिरोही जिले में आती हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 8 में से 6 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसके अलावा एक सीट कांग्रेस के खाते में गई थी, जबकि एक सीट पर निर्दलीय ने जीत दर्ज की थी. इस लिहाज से जालौर-सिरोही के मौजूदा सियासी समीकरण में बीजेपी का पलड़ा भारी है.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक जालौर की जनसंख्या 28 लाख 65 हजार 076 है, जिसका 87.42 प्रतिशत हिस्सा शहरी और 12.58 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण है. वहीं 19.51 फीसदी आबादी अनुसूचित और 16.45 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है.
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