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संभल लोकसभा सीट: समाजवादी पार्टी के गढ़ में क्या फिर खिलेगा कमल?

Sambhal Loksabha constituency 2019 का लोकसभा चुनाव अपने आप में ऐतिहासिक होने जा रहा है. लोकसभा सीटों के लिहाज से सबसे बड़ा प्रदेश उत्तर प्रदेश की संभल लोकसभा सीट क्यों है खास, इस लेख में पढ़ें...

संभल लोकसभा सीट संभल लोकसभा सीट
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 31 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 5:10 PM IST

समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाने वाले संभल पर 2019 लोकसभा चुनाव में सभी की नजर होगी. मुस्लिम बहुल इलाका होने के बावजूद 2014 के चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी, जिसे समाजवादी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका माना गया. यहां से बीजेपी के सत्यपाल सैनी चुनाव जीतकर आए. इस सीट से समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और दिग्गज नेता प्रोफेसर रामगोपाल यादव भी सांसद चुने जा चुके हैं.

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संभल लोकसभा सीट का इतिहास

सामान्य सीट संभल 1977 में अस्तित्व में आई, इमरजेंसी के बाद देश में पहली बार चुनाव हो रहे थे यहां से चरण सिंह की पार्टी ने जीत दर्ज की. उसके बाद 1980, 1984 में लगातार कांग्रेस फिर 1989, 1991 में जनता दल ने ये सीट जीती. 1996 में बाहुबली डीपी यादव ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर इस सीट पर कब्जा किया.

1998 में ये सीट वीआईपी सीटों की गिनती में आ गई, तत्कालीन समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने 1998, 1999 में यहां से चुनाव जीता. 2004 में उनके भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव यहां से सांसद चुने गए. लेकिन 2009 में ये सीट बहुजन समाज पार्टी के खाते में गई.

संभल लोकसभा सीट का समीकरण

रामपुर, अमरोहा और मुरादाबाद जैसी सीटों से सटी हुई संभल लोकसभा में भी मुस्लिम वोटरों का वर्चस्व है. यही कारण रहा कि भारतीय जनता पार्टी के लिए ये सीट मुश्किल मानी जाती थी. लेकिन 2014 में बीजेपी ने यहां फतह हासिल की.

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संभल में कुल 16 लाख से अधिक वोटर हैं, इनमें करीब नौ लाख पुरुष और 7 लाख महिला हैं. 2014 में यहां 62.4 फीसदी मतदान हुआ था, इनमें से 7658 वोट NOTA को गए थे. यहां करीब 40 फीसदी हिंदू आबादी और 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी है.

संभल लोकसभा के अंतर्गत कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें कुन्दरकी, बिलारी, चंदौसी, असमोली और संभल शामिल हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ चंदौसी विधानसभा ही भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थी, जबकि अन्य सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा.

चंद वोटों से जीते थे बीजेपी के सत्यपाल

मुस्लिम बहुल इस सीट पर 2014 में मुकाबला काफी कांटेदार रहा था. भारतीय जनता पार्टी के सत्यपाल सैनी और समाजवादी पार्टी के शफीक उर रहमान बर्क के बीच जीत-हार में सिर्फ 5000 वोटों का अंतर था. लोकसभा में इतने अंतर को मामूली ही माना जाता है. वहीं बहुजन समाज पार्टी के अकील उर रहमान खान तीसरे नंबर पर रहे थे. राजनीतिक पंडितों का मानना था कि सपा और बसपा में यहां मुस्लिम वोट बंट गए थे यही कारण रहा कि बीजेपी को फायदा मिला और वह जीत गई थी.

2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे

सत्यपाल सैनी, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 360,242, 34.1%

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शफीक उर रहमान बर्क, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 355,068, 33.6%

अकील उर रहमान खान, बहुजन समाज पार्टी, कुल वोट मिले 252,640, 23.9%

सांसद सत्यपाल सैनी का प्रोफाइल

यहां से सांसद सत्यपाल सैनी ने 2014 में ही पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था, वह 2004 में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. इलाके में सैनी समाज की तादाद काफी अधिक है और सत्यपाल उनमें लोकप्रिय भी हैं. 2014 के चुनाव में वह अगड़े-पिछड़ी जातियों को साथ लाने में कामयाब हुए थे, यही कारण रहा कि मुस्लिम बहुल इलाके में भी जीत कर आए. ADR के मुताबिक, सत्यपाल सैनी के पास 1.9 करोड़ की संपत्ति है. इनमें से 1.15 करोड़ की संपत्ति अचल है.

पहली बार सांसद चुने गए सत्यपाल सैनी ने 16वीं लोकसभा में कुल 67 बहस में हिस्सा लिया, इस दौरान उन्होंने 179 सवाल भी पूछे. सैनी ने सरकार की ओर से तीन बिल पेश किए और 3 प्राइवेट मेंबर बिल भी रखे. सांसद निधि के तहत मिलने वाले 25 करोड़ रुपये के फंड में से उन्होंने कुल 79.24 फीसदी रकम खर्च की.

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