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कालाहांडी लोकसभा सीट: बदलाव की बाट जोहता दाना मांझी का गांव

Kalahandi Lok Sabha constituency कालाहांडी के मेलघर गांव में रहने वाले दाना मांझी वहीं शख्स है जिसे अपनी मृत पत्नी को ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिला तो उसने 12 किलोमीटर तक अपने कंधे पत्नी की लाश ढोई. इस घटना के बाद दाना मांझी की माली हालत तो बदली, लेकिन उनका गांव और ये पूरा जिला अभी भी गुलाम भारत की इस 'विरासत' को ढो रहा है.

कालाहांडी का नागरिक दाना मांझी (फाइल फोटो) कालाहांडी का नागरिक दाना मांझी (फाइल फोटो)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 04 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 1:26 PM IST

ज्यादा साल नहीं गुजरे जब कालाहांडी का नाम सुनते ही दिमाग में एक ऐसी तस्वीर उभरती थी, जहां भूख, अभाव और बेचारगी पसरी हुई थी. लेकिन पिछले 10 से 15 सालों में कालाहांडी इस धारणा को तोड़ने में सफल हुआ है. अब यहां से भूखमरी की खबरें सुनने को नहीं मिलती हैं. पर आदिवासी बहुल ओडिशा जिले की अधिकतर आबादी आज भी लाल कार्ड के तहत मिलने वाले अनाज से ही अपना पेट भरती है. पहले के बरक्श आज बदलाव यह हुआ है कि अब सरकारी योजनाएं भूले-भटके भारत के इस सुदूर गांव तक भी पहुंच जाती हैं. हालांकि यहां के लोग अभी भी गरीबी के दुश्चक्र से बाहर नहीं निकल पाए हैं.

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साल 2016 में सामने आई दाना मांझी ती कहानी इसकी तस्दीक करती है. कालाहांडी के मेलघर गांव में रहने वाले दाना मांझी वहीं शख्स है जिसे अपनी मृत पत्नी को ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिला तो उसने 12 किलोमीटर तक अपने कंधे पत्नी की लाश ढोई. इस घटना के बाद दाना मांझी की माली हालत तो बदली, लेकिन उनका गांव और ये पूरा जिला अभी भी गुलाम भारत की इस 'विरासत' को ढो रहा है. जब इसकी तस्वीर मीडिया में आई तो देश से लेकर विदेश तक चर्चा हुई. 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस, बीजेपी और बीजेडी के बीच त्रिकोणीय मुकाबले के आसार दिख रहे हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

कालाहांडी लोकसभा सीट पर 1990 के बाद बीजेपी, कांग्रेस और बीजू जनता दल का दबदबा रहा है. इससे पहले इस सीट पर गणतंत्र परिषद और स्वतंत्र पार्टी के कैंडिडेट जीतते रहे हैं. आजादी के बाद पहली बार 1952 में हुए लोकसभा चुनाव में गणतंत्र परिषद का कैंडिडेट चुनाव जीता. 1957 में भी गणतंत्र परिषद के उम्मीदवार को जीत मिली. इसके बाद 1962 से लेकर 1971 तक स्वतंत्र पार्टी के प्रताप केशरी देव चुनाव जीतते रहे. 1977 में स्वतंत्र देव ही निर्दलीय चुनाव जीते. 1980 और 1984  के चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली. 89 में जनता दल के टिकट पर भक्त चरण दास चुनाव जीते. 1991 में कांग्रेस के सुभाष चंद्र नायक ने जीत हासिल की. 1996 में भक्त चरण दास फिर चुनाव जीते, लेकिन इस बार वे समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) के सीट पर चुनाव लड़े थे.

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1998 में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की. विक्रम केशरी देव इस सीट से सांसद बने. इसके बाद मतदाताओं ने लगातार दो और बार उन्हें सांसद चुना. विक्रम केशरी देव बीजेपी के टिकट पर 1999 और 2004 का भी चुनाव जीते. 2009 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर भक्त चरण दास ने फिर वापसी की और चुनाव जीत गए.

बता दें कि इस सीट पर 2014 में पहली बार बीजू जनता दल ने खाता खोला. हालांकि 2014 में इस सीट पर चुनाव जीतने वाले अर्का केशरी देव के पिता बिक्रम केशरी देव बीजेपी के टिकट पर कालाहांडी से 3 बार सांसद रह चुके थे. बिक्रम केशरी देव का 7 अक्टूबर 2009 में निधन हो गया था. इसके बाद अर्का केशरी देव ने 2013 में बीजेडी में शामिल हो गए.

सामाजिक तानाबाना

कालाहांडी जिले की अर्थव्यवस्था खेती पर आधारित है. यहां पर धान और कपास की फसल प्रमुख रुप से होती है. अगर मॉनसून के महीने को छोड़ दें तो इस क्षेत्र का मौसम लगभग गरम ही रहता है. भारतीय कृषि मानसून का जुआ है. ये कहावत यहां एक दम सटीक बैठती है. बारिश ना होने की वजह से किसानों को अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है. यहां पर वन से मिलने वाले उपज भी किसानों के आय का जरिया है. इनमें महुआ, केंदु पत्ता, लकड़ी और बांस प्रमुख है. कालाहांडी से पेपर की मिल के लिए कच्चे माल की सप्लाई होती है.

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कालाहांडी की जनसंख्या लगभग 21 लाख 87 हजार है. यहां की लगभग 93 फीसदी जनसंख्या गांवों में रहती है. पूरी आबादी का 16.86 प्रतिशत अनुसूचित जाति है, जबकि लगभग 30 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है.  कालाहांडी जिले की साक्षरता 59.22 प्रतिशत है.

कालाहांडी लोकसभा के तहत विधानसभा की 7 सीटें हैं. ये सीटे हैं नुआपाड़ा, खरियार, लांजीगढ़, जूनागढ़, धर्मगढ़, भवानी पटना और नरला. 2014 के विधानसभा चुनाव में  नुआपाड़ा, खरियार सीट से बीजेपी के कैंडिडट जीते थे. जबकि बाकी पांच सीटों पर बीजू जनता दल के कैंडिडेट्स ने जीत हासिल की थी.

2014 लोकसभा चुनाव के मुताबिर इस सीट पर 14 लाख 74 हजार 135 मतदाता थे. यहां पर पुरुष मतदाताओं की संख्या 7 लाख 50 हजार 694 है, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 7 लाख 23 441 है. 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 75.81 फीसदी मतदान हुआ था.

2014 का जनादेश

2014 में इस सीट पर मोदी का असर देखने को तो मिला, लेकिन बीजेपी कैंडिडेट प्रदीप कुमार नायक चुनाव जीत नहीं सके. उन्हें अर्का केशरी देव ने 56 हजार 347 वोटों से हराया. अर्का केशरी देव को 3 लाख 70 हजार 871 वोट मिले, जबकि प्रदीप कुमार नायक को 3 लाख 14 हजार 524 वोट मिले. कांग्रेस के भक्त चरण दास 3 लाख 07 हजार 967 वोट लाकर तीसरे नंबर पर रहे.

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सांसद का रिपोर्ट कार्ड

बीजेडी सांसद अर्का केशरी देव की 16वीं लोकसभा में मौजूदगी 85.67 प्रतिशत रही. वे सदन की 321 बैठकों में 275 दिन मौजूद रहे. अर्का केशरी देव ने सदन में 114 सवाल पूछे. इन्होंने लोकसभा की 28 डिबेट्स में हिस्सा लिया. सांसद अर्का केशरी देव द्वारा सांसद निधि फंड से 16.58 करोड़ रुपये विकास के अलग अलग काम पर खर्च किए.  

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