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कंधमाल लोकसभा सीट: उपचुनाव में जीती BJD, अब सहानुभूति वोटों का आसरा

kandhamal lok sabha constituency ओडिशा के नयागढ़ राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाली राजेश्वरी सिंह को पति हेमेंद्र नारायण सिंह के निधन के बाद बेमन से सियासत में आना पड़ा. 47 साल की प्रत्यूषा  राजेश्वरी सिंह को एक बेटा और एक बेटी है. स्विमिंग और योग में दिलचस्पी रखने वाली प्रत्यूषा राजेश्वरी सिंह वाइल्ड लाइफ एडवेंचरर भी हैं.

फोटो-Facebook/pratyusharsingh फोटो-Facebook/pratyusharsingh
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 03 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 4:15 PM IST

कंधमाल लोकसभा सीट का गठन 2008 के परिसीमन के बाद हुआ. इससे पहले ये सीट वजूद में नहीं था. हालांकि कंधमाल जिला 1 जनवरी 1994 को ही वजूद में आया था. कंधमाल जिला धर्मान्तरण और क्रिश्चयन मिशनरियों की गतिविधियों को लेकर चर्चा में रहता है. ये मुद्दा यहां पर कई बार कानून व्यवस्था से जुड़े सवाल खड़े कर चुका है. कंधमाल नक्सल प्रभावित इलाका भी रहा है. 2017 में सुरक्षाबलों पर नक्सलियों के हमले में एक जवान की मौत हो गई थी. 2018 में सेना ने यहां 6 माओवादियों को मार गिराया था.

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अबतक के चुनाव में इस सीट पर बीजू जनता दल ने अपना दबदबा बना रखा है. 2019 में बीजेडी के वर्चस्व को बीजेपी और कांग्रेस से चुनौती मिलती दिख रही है.

राजनितिक पृष्ठभूमि

2008 में वजूद में आने के बाद 2009 में कंधमाल लोकसभा सीट पर पहली बार चुनाव हुए. इस चुनाव में बीजद के टिकट पर रूद्र माधव रे चुनाव जीते. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी विरोधी गतिविधियों की वजह से उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया. 2014 में ही इस सीट पर हुए उपचुनाव में वह बीजेपी के टिकट पर लड़े, लेकिन हार गए. 31 मई 2016 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया.

सामाजिक ताना-बाना

कंधमाल लोकसभा क्षेत्र का विस्तार ओडिशा के 4 जिलों बौध, गंजाम, कंधमाल और नयागढ़ में है. 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 17 लाख 1 हजार 708 है। यहां की 92 फीसदी जनसंख्या गांवों में रहती है, मात्र 8 फीसदी आबादी को ही शहरों में रहने का मौका मिल पाता है. कंधमाल की लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति है, जबकि अमूमन 30 फीसदी हिस्सा अनुसूचित जनजाति का है.

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कंधमाल लोकसभा के तहत विधान सभा की 7 सीटें आती हैं. ये सीटें हैं-बलिगुड़ा, जी उदयगिरि, फुलबनी, ये तीनों सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 2014 के विधानसभा में इस सीट पर ने जीत हासिल की थी. दूसरी सीटें हैं कांतमाल, बौद्व, भंजनगर और दसपल्ला. यह सीट अनुसूचित जाति के लिए रिज़र्व है. 2014 में हुए विधान सभा चुनाव में जी उदयगिरि को छोड़कर सीटों पर बीजेडी ने जीत हासिल की थी. जी उदयगिरि सीट कांग्रेस के खाते में गई थी.

2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बीजद के हेमेंद्र चरण सिंह ने जीत हासिल की. उन्हें 4 लाख 21 हजार 458 वोट मिले. दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के हरिहर कर्ण, जिन्हें 2 लाख 40 हज़ार 411 वोट मिले. एक लाख 8 हजार 744 वोट लाकर बीजेपी के सुकान्त कुमार पाणिग्रही ने तीसरा पोजिशन हासिल किया. 2014 में यहां मतदान का प्रतिशत 73.43 रहा.

2014 का उपचुनाव

लोकसभा चुनाव के मात्र 4 महीनों के अंदर इस सीट पर फिर से चुनाव कराने की ज़रुरत आ पड़ी क्योंकि 5 सितम्बर 2014 को सांसद हेमेंद्र चरण सिंह की मौत हो गई थी. उपचुनाव में बीजद ने उनकी पत्नी प्रत्यूषा राजेश्वरी सिंह को टिकट दिया. सहानुभति लहर में वह लगभग तीन लाख वोट से जीतीं. उन्हें 4 लाख 77 हजार 529 वोट मिले. इस उपचुनाव में बीजेपी तीसरे से दूसरे नंबर पर आ गई, जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई. उपचुनाव में बीजेपी के रूद्र माधव रे को 1 लाख 78 हजार 661 वोट मिले. कांग्रेस उम्मीदवार अभिमन्यु बहेरा को 90 हजार 536 वोट मिले.

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सांसद का रिपोर्ट कार्ड

ओडिशा के नयागढ़ राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाली राजेश्वरी सिंह को पति हेमेंद्र नारायण सिंह के निधन के बाद बेमन से सियासत में आना पड़ा. 47 साल की प्रत्यूषा  राजेश्वरी सिंह को एक बेटा और एक बेटी है. स्विमिंग और योग में दिलचस्पी रखने वाली प्रत्यूषा राजेश्वरी सिंह वाइल्ड लाइफ एडवेंचरर भी हैं.

सांसद प्रत्यूषा राजेश्वरी सिंह अपने कार्यकाल में लोकसभा की 285 बैठकों में 251 दिन मौजूद रहीं. संसद में उनहोंने 187 सवाल पूछे. वह संसद की 18 डिबेट्स में ही शिरकत कीं. अगर सांसद निधि फंड की बात करें तो उन्होंने 16 करोड़ 10 लाख रुपये विकास के अलग अलग कार्यों पर खर्च किए. सोशल मीडिया पर भी वह सक्रिय हैं, फेसबुक पर Partyusha Rajeshwari Singh के नाम से उनका अकाउंट है.

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