
असम की सिलचर लोकसभा सीट पर रोचक मुकाबला होने के आसार हैं. 1980 से अब तक यहां की राजनीति सिर्फ दो नेताओं के ही इर्द-गिर्द रही है. ये दो नेता कांग्रेस के संतोष मोहन देव और बीजेपी के कबिंद्र पुरकायस्था हैं. लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस उम्मीदवार सुष्मिता देव को बीजेपी के राजदीप रॉय से कड़ी टक्कर मिल सकती है. बीजेपी ने कबिंद्र पुरकायस्था का टिकट काटकर इस सीट से नया चेहरा उतारा है.
एआईयूडीएफ ने इस बार सिलचर से कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है जबकि पिछले चुनाव में वह तीसरे नंबर की पार्टी थी. इसके अलावा ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस, नेशनल पीपुल्स पार्टी, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) के अलावा 8 निर्दलीय भी चुनाव मैदान में हैं.
बता दें कि असम की पांच सीटों पर 18 अप्रैल को दूसरे फेज में मतदान होना है. 10 मार्च को लोकसभा चुनाव 2019 की घोषणा होने के बाद देश, चुनावी माहौल में आ गया है. 19 मार्च को इस सीट के लिए नोटिफिकेशन निकला, 26 मार्च को नोमिनेशन की अंतिम तारीख, 27 मार्च को उम्मीदवारों की अंतिम लिस्ट पर मुहर लगी. अब 18 अप्रैल के मतदान के लिए सभी दलों ने अपनी ताकत झोंक दी है. लोकसभा चुनाव 2019 के दूसरे चरण में 13 राज्यों की 97 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है. मतदान का परिणाम 23 मई को आना है.
असम की सिलचर संसदीय सीट पर लड़ाई हमेशा बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रही है. 1980 से अब तक यहां की राजनीति सिर्फ दो नेताओं के ही इर्द-गिर्द रही है. ये दो नेता कांग्रेस के संतोष मोहन देव और बीजेपी के कबिंद्र पुरकायस्था हैं. 2014 में संतोष मोहन देव ने अपनी सियासी विरासत बेटी सुष्मिता देव को सौंप दी. पार्टी ने उन्हें टिकट दिया और वे उम्मीदों पर खरी उतरती हुई संसद पहुंचीं.
कांग्रेस इस सीट पर अब तक सर्वाधिक 8 बार जीत दर्ज कर चुकी है. यहां की 7 विधानसभा सीटों में से 6 पर बीजेपी का कब्जा है. असम की सिलचर संसदीय सीट काछार जिले में आती है. क्षेत्रफल और जनसंख्या के लिहाज से ये असम का दूसरा सबसे बड़ा शहर है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
1977 में इस सीट पर पहली बार लोकसभा चुनाव हुए. इसमें कांग्रेस प्रत्याशी राशिदा चौधरी ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1980, 1985 और 1989 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी संतोष मोहन देव लगातार तीन बार सांसद बने. 1991 में बीजेपी ने पहली बार इस सीट पर जीत दर्ज की. बीजेपी प्रत्याशी कबिंद्र पुरकास्था संसद पहुंचे. 1996 के चुनाव में संतोष मोहन ने फिर वापसी की. 1998 में कबिंद्र ने फिर से संतोष मोहन देब को हराकर संसद का रुख किया. 1999 और 2004 के चुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस प्रत्याशी संतोष मोहन देव ने वापसी की. 2009 के चुनाव में कबिंद्र पुरकायस्था ने एयूडीएफ प्रत्याशी बदरुद्दीन अजमल को 41 हजार 470 वोटों से हरा दिया. 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर से इस सीट पर कब्जा किया. संतोष मोहन देव ने बेटी सुष्मिता देव को अपनी राजनीतिक विरासत सौंपते हुए पार्टी का टिकट थमाया. पिता की विरासत को बखूबी संभालते हुए वे संसद पहुंचीं.
सामाजिक ताना-बाना
2011 में हुई जनगणना में इस सीट पर जनसंख्या 16 लाख 77 हजार 821 थी. यहां 81.2 फीसदी ग्रामीण और 18.8 फीसदी शहरी आबादी है. इस सीट पर 14.54 फीसदी एससी और 1.3 फीसदी एसटी हैं.
इस सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 10 लाख 60 हजार 175 थी, जिसमें 5 लाख 54 हजार 540 पुरुष और 5 लाख 5 हजार 558 महिलाएं हैं. पिछले चुनाव में 4310 मतदाताओं ने सभी प्रत्याशियों को खारिज कर दिया था. 2018 की वोटरलिस्ट के मुताबिक इस सीट पर मतदाताओं की संख्या 11 लाख 64 हजार 573 है. 2009 में इस सीट पर कुल 70.37 और 2014 में 75.46 फीसदी वोट डाले गए थे.
2014 का जनादेश
16वें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सुष्मिता देव ने बीजेपी प्रत्याशी को 35 हजार 241 वोटों के अंतर से हराया. सुष्मित देव को कुल 3 लाख 36 हजार 451 वोट मिले, जबकि दूसरे नंबर पर रहे कबिंद्र पुरकायस्था को 3 लाख 1 हजार 210 वोट मिले. तीसरे नंबर पर 85 हजार 530 वोटों के साथ एआईयूडीएफ प्रत्याशी कुतुब अहमद मजूमदार रहे.
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