
बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित जगतसिंहपुर ओडिशा की सांस्कृतिक विरासत को संजोए एक समृद्ध जिला है. इस जिले से होकर बहने वाली महानदी की धारा ने यहां बेहद उपजाऊ जमीन दी है. 1999 में आए सुपर साइक्लोन ने जगतसिंहपुर में ज़िन्दगी को तहस-नहस कर दिया था. हालांकि सरकारी प्रयासों की बदौलत कुछ ही महीनों में इस जिले में जिंदगी ने फिर से रफ्तार पकड़ ली. जगतसिंहपुर 1 अप्रैल 1994 को जिला बना. इससे पहले ये कटक का हिस्सा था. जिले के पारादीप में मौजूद पोर्ट, IFFCO की यूरिया फैक्ट्री की वजह से यहां व्यावसायिक गतिविधियों का बढ़िया केंद्र है.
जगतसिंहपुर की सियासत में बीजद, सीपीआई और कांग्रेस का असर रहा है. 2008 से पहले यहां कांग्रेस और सीपीआई के बीच आमने सामने की टक्कर थी, लेकिन 2008 में नवीन पटनायक की पार्टी की एंट्री ने मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया. इसके बाद बीजेपी ने यहां पिछले चुनाव में लाख से ज्यादा वोट पाकर मुकाबला रोमांचक कर दिया है. 2008 तक ये सीट सामान्य वर्ग के लिए था, लेकिन 2009 में इसे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया.
राजनितिक पृष्ठभूमि
जगतसिंहपुर संसदीय सीट का गठन 1977 के लोकसभा चुनाव से पहले हुआ था. पहली बार लोकसभा चुनाव में इंदिरा विरोधी लहर के कारण कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. यहां से जनता पार्टी समर्थित उम्मीदवार को जीत मिली. 1980 और 84 में कांग्रेस के टिकट पर लक्ष्मण मल्लिक चुनाव जीते. 1989 में लोगों का मिजाज बदला और सीपीआई के लोकनाथ चौधरी चुनाव जीते. 1991 में भी एकबार फिर लोकनाथ चौधरी विजयी रहे.
1996 में यहां का समीकरण फिर बदला. कांग्रेस के टिकट पर रंजीब बिस्वाल विजयी रहे. 2008 में बीजू जनता दल (बीजद) ने इस सीट से अपने कैंडिडेट को उतारा, पार्टी ने कांग्रेस का अच्छी टक्कर दी, लेकिन उनका प्रत्याशी हार गया. रंजीब विस्वाल यहां फिर विजयी रहे. 1999 में जब चुनाव हुए तो बीजेडी ने पहली बार यहां अपना खाता खोला. 2004 में भी बीजद ने इस सीट से जीत का सिलसिला कायम रखा. ब्रह्मानंद पांडा यहां से चुनाव जीते. 2009 में लंबे समय बाद इस सीट पर सीपीआई ने वापसी की. विभू प्रसाद तराई यहां से इलेक्शन जीते. 20014 में मतदाताओं का मिजाज एक बार फिर बदला और बीजू जनता दल को यहां से जीत मिली.
सामाजिक ताना-बाना
2011की जनगणना के मुताबिक जगतसिंहपुर की आबादी 19 लाख 93 हजार 228 है . यहां की लगभग 23 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति है, जबकि अनुसूचित जनजाति का आंकड़ा 7.63 प्रतिशत है. यहां की 92 फीसदी आबादी ग्रामीण है, शहरी जनसंख्या का प्रतिशत लगभग 8 है.
2014 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार यहां कुल वोटर्स की संख्या 14 लाख 99 हजार 673 थी. यहां पर पुरुष मतदाताओं की संख्या 7 लाख 97 हजार 923 है. जबकि महिला वोटर्स की संख्या 7 लाख 01 हजार 750 है. 2014 के संसदीय चुनाव में यहां 75.48 प्रतिशत मतदान हुआ था.
जगतसिंहपुर लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की 7 सीटें आती हैं. ये सीटें हैं नीलाई, पारादीप, तिरतोल, बालिकुड़ा ऐरसमा, जगतसिंहपुर, काकतपुर और नीमपारा. 2014 के विधानसभा चुनाव में जगतसिंहपुर सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार ने जीत हासिल की थी, बाकी सभी 6 सीटों पर बीजद के कैंडिडेट जीते थे.
2014 का जनादेश
2009 में बड़े मार्जिन से इस सीट को जीतने वाली सीपीआई 2014 में मोदी लहर में चौथे नम्बर पर चली गई. इस पार्टी को मात्र 18 हजार 099 वोट मिले. हालांकि बीजेपी भी कुछ कमाल नहीं दिखा सकी. पार्टी कैंडिडेट बिधार मल्लिक 1 लाख 17 हजार 448 वोट हासिल कर तीसरे नंबर पर रहे. कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले पूर्व सीपीआई नेता विभू प्रसाद 3 लाख 48 हजार 98 वोट लाकर रनर अप कैंडिडेट बने. बीजद के डॉ कुलमणि समल को 6 लाख 24 हजार 492 वोट मिले. वह 2 लाख 76 हजार 394 वोटों के अंतर से चुनाव जीते.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
पेशे से डॉक्टर कुलमणि समल का संसद में यह पहला कार्यकाल है. 69 साल के डॉ समल सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई की है. दो बेटों और एक बेटियों के पिता डॉ समल अपने इलाके में टीकाकरण और रक्तदान कार्यक्रम से लंबे समय से जुड़े रहे हैं.
संसद में कुलमणि समल का शानदार रिकॉर्ड रहा है. लोकसभा में उनकी हाजिरी 100 फीसदी रही है. वह लोकसभा की सभी 321 बैठकों में मौजूद रहे हैं. सदन में उनके द्वारा 134 सवाल पूछे गए. उन्होंने लोकसभा की 219 चर्चाओं में शिरकत की. अगर सांसद विकास फंड की बात करें तो उन्होंने लगभग 85 फीसदी राशि विकास कार्यों पर खर्च की है. सांसदों के कामकाज पर निगाह रखने वाली वेबसाइट parliamentarybusiness.com के मुताबिक उन्होंने 21 करोड़ 11 लाख रुपये विकास कार्यों पर खर्च किया है.