
जौनपुर उत्तर प्रदेश के 80 संसदीय सीटों में से एक है और इसकी संसदीय सीट संख्या 73 है. उत्तर प्रदेश के पूर्वी अंचल में इस सीट की अपनी पहचान है. जौनपुर उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहरों में शामिल है. इतिहासकारों के अनुसार गुप्त काल के दौरान यहां पर बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में यह शहर 'मनइच' तक जुड़ा रहा. मुस्लिम आक्रमणकारियों के आक्रमण से पहले यहां भार, कोइरी गुज्जर, प्रतिहार और गहरवारों का आधिपत्य बना रहा. इस शहर की महत्ता सल्तनत काल में तुगलक शासनकाल में काफी बढ़ गई थी. शहर की स्थापना 14वीं शताब्दी में फिरोज शाह तुगलक ने अपने चचेरे भाई सुल्तान मुहम्मद की याद में की थी. सुल्तान मुहम्मद का असली नाम जौना खां था. उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम जौनपुर रखा गया.
1818 में जौनपुर बना जिला
14वीं सदी के अंत में मलिक सरवर शर्की ने जौनपुर को शर्की साम्राज्य में शामिल किया और उसे अपने साम्राज्य की राजधानी बनाई. इस शहर की महत्ता सल्तनत युग के अलावा मुगल काल में बनी रही. सन 1526 में बाबर ने पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराने के बाद जौनपुर पर विजय पाने के लिए उन्होंने अपने पुत्र हुमायूं को वहां भेजा जहां उसने जीत हासिल की थी. करीब डेढ़ सदी तक मुगल सल्तनत का अंग रहने के बाद 1722 ई में जौनपुर अवध के नवाब के हिस्से में आ गया.
1775 से लेकर 1788 ईस्वी तक जौनपुर वाराणसी के अधीन रहा. बनारस के अंग्रेजों के कब्जे में जाने के बाद यह शहर भी अंग्रेज हुकूमत के अधीन आ गया. सन 1818 में जौनपुर पहली बार डिप्टी कलेक्टरशिप बना और बाद में इसे अलग जिला बना दिया गया. 1820 में आजमगढ़ को जौनपुर जिले के अधीन लाया गया, लेकिन पहले 1822 में आजमगढ़ के कुछ हिस्से को अलग कर दिया गया, बाद में 1830 में इसे जौनपुर से पूरी तरह से अलग कर दिया गया.
विधानसभा में कांटेदार मुकाबला
गोमती नदी के किनारे बसा ऐतिहासिक रूप से चर्चित यह शहर अपने चमेली के तेल, तंबाकू की पत्तियों, इमरती और मिठाइयों के लिए लिए प्रसिद्ध है. जौनपुर जिला वाराणसी मंडल के उत्तरी-पश्चिमी भाग में स्थित है. जौनपुर जिले में 2 संसदीय क्षेत्र और कुल 9 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. जौनपुर के अलावा मछलीशहर एक और संसदीय क्षेत्र है.
जौनपुर संसदीय क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र (बादलपुर, शाहगंज, जौनपुर, मल्हानी और मुंगरा बादशाहपुर) आते हैं. बदलापुर विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के रमेश चंद्र मिश्रा विधायक हैं. उन्होंने 2017 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के लालजी यादव को 2.372 मतों के अंतर से हराया था. शाहगंज विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के शैलेंद्र यादव का कब्जा है जिन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राणा अजित प्रताप सिंह को 9,162 मतों के अंतर से हराया था. जौनपुर से भारतीय जनता पार्टी ने 2017 चुनाव में जीत हासिल की है. बीजेपी की ओर से गिरीश चंद्र यादव ने कांग्रेस के नदीम जावेद को 12,284 मतों के अंतर से धूल चटाई थी.
मल्हानी विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी की पकड़ है और यहां से पारसनाथ यादव विधायक हैं. पारसनाथ ने निषाद पार्टी के धनंजय सिंह को 21,210 मतों के अंतर से हराया था. 2017 विधानसभा चुनाव में मुंगरा बादशाहपुर से बहुजन समाज पार्टी की सुषमा पटेल ने बीजेपी की सीमा द्विवेदी को 5,920 मतों के अंतर से हराकर जीत हासिल की थी. जौनपुर संसदीय क्षेत्र के 5 विधानसभा सीटों पर कड़ी लड़ाई है यहां के 2-2 सीटों पर बीजेपी और सपा का कब्जा है तो एक पर बसपा ने पकड़ बनाए रखी है. अब सपा-बसपा का गठबंधन हो जाने से यहां का मुकाबला रोचक हो गया है.
संसदीय इतिहासः राजनीतिक पृष्ठभूमि
जहां तक जौनपुर संसदीय सीट का सवाल है तो यहां से भारतीय जनता पार्टी के कृष्णा प्रताप सिंह सांसद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में जौनपुर संसदीय सीट से 21 प्रत्याशी मैदान में थे जिसमें कृष्णा प्रताप सिंह ने बहुजन समाज पार्टी के सुभाष पांडे से चुनौती से पार पाते हुए जीत हासिल की थी. कृष्णा ने 1,46,310 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी. कृष्णा को 3,67,149 (36.45%) मत मिले जबकि सुभाष को 2,20,839 (21.93%) मत मिले. चुनाव में सपा तीसरे और आम आदमी पार्टी पांचवें स्थान पर रही थी. बीजेपी ने 2014 में 15 साल बाद यह सीट अपने नाम किया था.
इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में बसपा के धनंजय सिंह ने सपा के पारसनाथ को हराया था. इस सीट से कांग्रेस ने जीत की शुरुआत की थी, लेकिन 1984 के बाद उसे यहां से एक बार भी जीत नहीं मिली है. 1962 में जनसंघ के ब्रह्मजीत भी विजयी रहे हैं. बीजेपी ने 1989 में राजा यघुवेंद्र दत्ता के रूप में यहां से पहली बार जीत हासिल की थी. हालांकि 1991 में जनता दल ने बीजेपी से यह सीट छीन ली थी. 1996 में बीजेपी ने फिर से इस सीट पर कब्जा जमाया. 1996 से लेकर यहां की लड़ाई द्वीपक्षीय रही है और 4 चुनावों में एक बार बीजेपी तो एक बार सपा ने यह सीट जीता. 2009 में यह सिलसिला बसपा की जीत के बाद टूट गया. 2014 में बीजेपी ने यह सीट फिर से अपने नाम की. 1957 से लेकर 2014 तक 15 बार यहां लोकसभा चुनाव हो चुके हैं.
सामाजिक ताना-बाना
2011 के जनगणना के आधार पर जौनपुर की कुल आबादी 44 लाख से ज्यादा (4,494,204) है, जिसमें महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. 2,220,465 पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 2,273,739 है. यहां पर लिंगानुपात भी सकारात्मक है क्योंकि एक हजार पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 1,024 है. जिले की साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत के करीब है और यह 71.55 फीसदी है जिसमें शिक्षित पुरुषों की संख्या 83.80 फीसदी और महिलाओं की संख्या 59.81 फीसदी है.
जौनपुर जिले में धर्म आधारित आबादी के लिहाज से देखा जाए तो यहां पर हिंदू बहुसंख्यक हैं और उनकी संख्या 88.59 फीसदी है, जबकि मुस्लिमों की आबादी 10.76 फीसदी है. बाकी अन्य धर्म वालों की संख्या नगण्य है.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
जौनपुर के सांसद कृष्णा प्रताप सिंह किसान और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने पीएचडी की डिग्री हासिल की हुई है. कृष्णा प्रदेश के युवा सांसदों में से एक हैं. उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी है.
बतौर सांसद कृष्णा प्रताप सिंह की उपस्थिति संसद में बेहद शानदार रही है. वह पहली बार संसद के लिए चुने गए हैं. कृष्णा केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स की स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य भी हैं. लोकसभा में 8 जनवरी 2019 तक उनकी उपस्थिति 93 फीसदी रही है. अब तक के 16 सत्रों में 6 बार वो 100 फीसदी उपस्थित रहे, जबकि 2016 के बजट सत्र के पहले चरण के दौरान उनकी उपस्थिति 75 फीसदी रही जो उनके संसदीय करियर का न्यूनतम उपस्थिति रिकॉर्ड है.
उनकी लोकसभा में उपस्थिति शानदार तो रही है, लेकिन उन्होंने बहस में ज्यादा हिस्सा नहीं लिया. उन्होंने महज 5 बहस में भाग लिया, जबकि 112 बार सवाल पूछे. सवाल पूछने के मामले में उत्तर प्रदेश के सांसदों का औसत 193 और राष्ट्रीय औसत 285 है.
पूर्वांचल के खास संसदीय सीटों में गिने जाने वाले जौनपुर में इस बार चुनाव रोमांचक होने के आसार हैं. बीजेपी का मुकाबला करने के लिए सपा-बसपा ने प्रदेश में गठबंधन कर लिया है. ऐसे में बीजेपी को इन दो ताकतवर दलों का मुकाबला करना होगा तो साथ ही कांग्रेस भी यहां अपना ताल ठोक सकती है. बीजेपी यहां से एक बार भी लगातार 2 बार चुनाव नहीं जीत सकी है. बदले राजनीतिक समीकरण में सभी की नजर इस पर रहेगी कि क्या बीजेपी पहली बार लगातार जीत दर्ज कर पाएगी.