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ग्वालियर लोकसभा सीट: सिंधिया राजघराने के गढ़ में वाजपेयी भी दिखा चुके हैं दम

ग्वालियर लोकसभा सीट सिंधिया परिवार का गढ़ मानी जाती है. ग्वालियर को राज्य का सबसे प्रभावशाली संसदीय क्षेत्र माना जाता है. ग्वालियर सीट पर अधिकतर समय सिंधिया राजघराने का ही राज रहा है. मध्य प्रदेश की यह सीट राज्य ही नहीं देश की वीवीआईपी सीटों में से एक है.

अटल बिहारी वाजपेयी(फोटो- Reuters) अटल बिहारी वाजपेयी(फोटो- Reuters)
देवांग दुबे गौतम
  • नई दिल्ली,
  • 02 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 3:21 PM IST

मध्य प्रदेश की ग्वालियर लोकसभा सीट सिंधिया परिवार का गढ़ मानी जाती है. ग्वालियर को राज्य का सबसे प्रभावशाली संसदीय क्षेत्र माना जाता है. ग्वालियर सीट पर अधिकतर समय सिंधिया राजघराने का ही राज रहा है. मध्य प्रदेश की यह सीट राज्य ही नहीं देश की वीवीआईपी सीटों में से एक है. इस सीट से देश के कई दिग्गज नेता सांसद रह चुके हैं.

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया, कांग्रेस के दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया, यशोदाराजे सिंधिया जैसे दिग्गज इस सीट से जीतकर संसद पहुंच चुके हैं. फिलहाल मोदी सरकार में मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर यहां के सांसद हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

ग्वालियर में पहला चुनाव साल 1957 में हुआ. यहां पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के सूरज प्रसाद ने जीत हासिल की थी. इसके अगले चुनाव में कांग्रेस ने यहां से विजयाराजे सिंधिया को उतारा. विजयाराजे ने जनसंघ के माणिक चंद्रा को हराकर पहली बार इस सीट से सांसद बनीं. 1967 के चुनाव में कांग्रेस के हाथ से यह सीट निकल गई और जनसंघ ने जीत हासिल की. 1967 में जीतने वाली जनसंघ ने इसके अगले चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को टिकट दिया. वाजपेयी जनसंघ की उम्मीदों पर खरे उतरते हुए यहां पर विजयी पर रहे. उन्होंने कांग्रेस के गौतम शर्मा को हराया. वाजयेपी को हालांकि इस सीट पर निराशा भी हाथ लगी, जब 1984 के चुनाव में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया ने उन्हें शिकस्त दी.

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1984 में पहली बार यहां से जीतने वाले सिंधिया इसके अगले 4 चुनावों में भी जीत हासिल किए. 1999 के चुनाव में बीजेपी ने यह सीट कांग्रेस से छिन ली.  जयभान सिंह ग्वालियर से बीजेपी के टिकट पर जीतने वाले पहले सांसद बने. हालांकि इसके अगले चुनाव 2004 में उनको हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस के रामसेवक सिंह ने उनको शिकस्त दी.

2001 में माधवराव सिंधिया का निधन कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका रहा. कांग्रेस ने इस क्षेत्र का एक दिग्गज नेता खो दिया, जिसका असर यहां साफतौर पर देखने को भी मिला. 2007 में यहां पर उपचुनाव हुआ. और बीजेपी ने टिकट दिया माधवराव सिंधिया की बहन यशोदाराजे सिंधिया को. यशोदाराजे सिंधिया ने इस चुनाव में कांग्रेस के अशोक सिंह को मात दी. यहां से ग्वालियर में अब बीजेपी मजबूत होना शुरू हुई. 2009 के चुनाव में बीजेपी ने यहां से एक बार यशोदाराजे को टिकट दिया. उन्होंने एक बार फिर अशोक सिंह को मात दी.

यशोदाराजे सिंधिया यहां से लगातार दो चुनाव जीतकर बीजेपी को इस सीट पर मजबूत कर चुकी थीं. 2014 में बीजेपी ने यहां से नरेंद्र सिंह तोमर को मैदान में उतारा. यशोदाराजे जो बीजेपी को यहां पर मजबूत कर चुकी थीं, उसी को आगे बढ़ाते हुए तोमर ने कांग्रेस के अशोक सिंह को हराया. ग्वालियर के राजनीतिक इतिहास को देखा जाए तो यहां पर किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा है. यहां पर एक परिवार का दबदबा रहा है. बीजेपी की ओर से जहां यशोदाराजे सिंधिया यहां से सांसद बन चुकी हैं तो कांग्रेस की ओर से माधवराव सिंधिया और उनकी मां विजयाराजे सिंधिया यहां से सांसद रह चुकी हैं.

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इस सीट पर 4 बार बीजेपी को जीत मिली, 2 बार जनसंघ को तो 8 बार कांग्रेस को जीत मिली है. हालांकि इस सीट पर हाल के चुनावों में कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई है. पिछले 3 चुनावों से यहां पर बीजेपी को जीत मिलती आ रही है. ग्वालियर और शिवपुरी जिले के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. ग्वालियर के अंदर ग्वालियर ग्रामीण, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर दक्षिण, भितरवार, डबरा सीटें आती हैं तो वहीं करेरा और पोहारी सीटें शिवपुरी में आती हैं. यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर कांग्रेस और 1 पर बीजेपी का कब्जा है.

2014 का जनादेश

2014 के चुनाव में नरेंद्र सिंह तोमर ने कांग्रेस के अशोक सिंह को शिकस्त दी थी. इस चुनाव में तोमर को जहां 442796(44.69 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं अशोक सिंह को 413097(41.69 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 29699 वोटों का था. वहीं बसपा 6.88 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थी. इससे पहले 2009 के चुनाव में राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया की बहन यशोदाराजे सिंधिया यहां से चुनाव जीती थीं.

उन्होंने कांग्रेस के अशोक सिंह को हराया था. इस चुनाव में सिंधिया को 252314(43.19 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं अशोक सिंह को 225723(38.64 फीसदी) वोट मिले थे. सिंधिया ने अशोक सिंह को 26591 वोटों से मात दी. वहीं बसपा 13.09 फीसदी वोटों के साथ इस बार भी तीसरे स्थान पर रही थी.

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सामाजिक ताना-बाना

ग्वालियर और इसका किला उत्तर भारत के प्राचीन शहरों के केन्द्र रहे हैं. यह शहर गुर्जर प्रतिहार, तोमर तथा कछवाहा राजवंशो की राजधानी रहा है.संगीत के क्षेत्र में ग्वालियर की एक अलग पहचान है. ग्वालियर घराना, खयाल घरानो में एक ऐसा पुराना घराना है, जहां से कई महान संगीतज्ञ निकले हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक ग्वालियर की जनसंख्या 2730472 है.

यहां की 51.04 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 48.96 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. ग्वालियर में 19.59 फीसदी लोग अनुसूचित जाती के हैं और 5.5 फीसदी लोग अनुसूचित जनजाति के हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर  यहां पर 1877003 मतदाता थे. इनमें से 1024155 पुरूष और 852848 महिला मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 52.79 फीसदी वोटिंग हुई थी.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

56 साल के नरेंद्र सिंह तोमर 2014 का चुनाव ग्वालियर से लड़ते हुए जीत हासिल किए. इससे पहले 2009 का चुनाव वो मुरैना सीट से लड़े थे और वहां पर भी विजयी रहे थे. तोमर मोदी मंत्रिमंडल में केंद्रीय ग्रामीण विकास, पंचायती राज स्वच्छता एवं पेयजल मंत्री हैं. उन्होंने स्नातक की शिक्षा ग्रहण की है. वह पहले राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं. तोमर पहली बार 1998 में ग्वालियर से विधायक निर्वाचित हुए और इसी क्षेत्र से वर्ष 2003 में दूसरी बार चुनाव में जीत हासिल किए. इस दौरान वे उमा भारती, बाबूलाल गौर और शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री भी रहे. उन्हें वर्ष 2008 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष, सोमनाथ चटर्जी ने उत्कृष्ट मंत्री के रूप में सम्मानित किया था.

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नरेंद्र सिंह तोमर को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 17.50 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 17.88 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 13.20 यानी मूल आवंटित फंड का 75.44 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 4.68 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.

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