
मध्य प्रदेश की राजगढ़ लोकसभा सीट राज्य की वीआईपी सीटों में से एक है. यह क्षेत्र कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के दबदबे वाला क्षेत्र है. इस सीट पर अगर किसी पार्टी ने सबसे ज्यादा राज किया है तो वह कांग्रेस ही है. दिग्विजय खुद 2 बार यहां से सांसद चुने जा चुके हैं तो वहीं उनके भाई लक्ष्मण सिंह 5 बार इस सीट से जीतकर संसद पहुंच चुके हैं. हालांकि यहां पर दोनों भाइयों को हार का भी सामना करना पड़ा है. फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और रोडमल नागर यहां के सांसद हैं.
सामाजिक ताना-बाना
राजगढ़ जिला राज्य का अहम शहर है. यह एक छोटा-सा जिला है लेकिन एक साफ-सुथरा है. राजगढ मे नेवज नदी बहती है, जिसे शास्त्रों में 'निर्विन्ध्या' कहा गया है. राजगढ़ जिले में स्थित नरसिंहगढ़ के किले को कश्मीर ए मालवा कहा जाता है. ये मध्य प्रदेश का सर्वाधिक रेगिस्तान वाला जिला है.ये जिला मालवा पठार के उत्तरी छोर पर पार्वती नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है.
2011 की जनगणना के मुताबिक राजगढ़ में 24,89,435 जनसंख्या है. यहां की 81.39 फीसदी जनसंख्या ग्रामीण इलाके में रहती है और 18.61 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. इस क्षेत्र में गुर्जर, यादव और महाजन वोटर्स की संख्या अच्छी खासी है. ये चुनाव में किसी भी उम्मीदवार की जीत में अहम भूमिका निभाते हैं.
राजगढ़ में 18.68 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग हैं और 5.84 अनुसूचित जनजाति के हैं. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में इस सीट पर 15,78,748 मतदाता थे. इनमें से 7,51747 महिला मतदाता और 8,27,001 पुरुष मतदाता थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 57.75 फीसदी मतदान हुआ था.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
साल 1962 में यहां पर हुए पहले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार भानुप्रकाश सिंह को जीत मिली. उन्होंने कांग्रेस के लिलाधर जोशी को हराया था. कांग्रेस को इस सीट पर पहली बार जीत 1984 में मिली, जब दिग्विजय सिंह ने बीजेपी के जमनालाल को मात दी थी.
हालांकि इसका अगला चुनाव दिग्विजय सिंह हार गए थे. बीजेपी के प्यारेलाल खंडेलवाल ने कांग्रेस के इस दिग्गज नेता को हरा दिया था. इसके बाद 1991 में दिग्विजय सिंह ने इस हार का बदला लिया और प्यालेलाल को हरा दिया.
दिग्विजय के मध्य प्रदेश का सीएम बनने के बाद यह सीट खाली हो गई और 1994 में यहां पर उपचुनाव हुआ. कांग्रेस की ओर से दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह मैदान में उतरे और बीजेपी के दत्ताराय रॉव को मात दे दी.
1994 में जीत हासिल करने के बाद लक्ष्मण सिंह ने 1996, 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में भी जीत हासिल की. 2004 के चुनाव में सिंह को जीत तो मिली थी, लेकिन उन्होंने इस बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव पर लड़ा था.
इसके अगले चुनाव में भी वह बीजेपी के टिकट पर लड़े और इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस के नारायण सिंह ने उन्हें मात दी. इस सीट पर कांग्रेस को 6 बार जीत मिली है और बीजेपी को 3 बार. ऐसे में देखा जाए तो इस सीट पर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है.
राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 7 सीटें आती हैं. चचौड़ा, ब्यावरा, सारंगपुर, राघोगढ़, राजगढ़, सुसनेर, नरसिंहगढ़ और खिलचीपुर यहां की विधानसभा सीटें हैं. इन 8 सीटों में से 5 पर कांग्रेस और 2 पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि 1 सीट पर निर्दलीय विधायक है.
2014 का जनादेश
2014 के चुनाव में बीजेपी के रोडमल नागर ने कांग्रेस अंलाबे नारायण सिंह को हराया था. इस चुनाव में नागर को 5,96,727(59.04 फीसदी) वोट मिले थे और अंलाबे नारायण को 3,67,990(36.41 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 2,28,737 वोटों का था. तीसरे स्थान पर बसपा रही थी. उसको 1.37 फीसदी वोट मिले थे.
इससे पहले 2009 के चुनाव में कांग्रेस के नारायण सिंह ने जीत हासिल की थी. उन्होंने बीजेपी के लक्ष्मण सिंह को हराया था. इस चुनाव में नारायण सिंह को 3,19,371(49.11 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं लक्ष्मण सिंह को 2,94,983( 45.36 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच 24388 वोटों का था.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
59 साल के रोडमल नागर 2014 में जीतकर पहली बार सांसद बने. संसद में उनकी उपस्थिति 95 फीसदी रही. इस दौरान उन्होंने 261 बहस में हिस्सा लिया.उन्होंने 463 सवाल भी किए, जो दिखाता है कि वे संसद में काफी सक्रिय रहे.
उन्होंने 1 प्राइवेट मेंबर भी संसद में लाया. उन्होंने आयुष्मान भारत योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, कच्चे तेल की कीमत जैसे अहम मुद्दों पर संसद में सवाल किया. रोडमल नागर को उनके निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 25.35 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 22.50 यानी मूल आवंटित फंड का 90.02 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 2.84 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.