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सतना लोकसभा: अर्जुन सिंह यहां से जीतने वाले आखिरी कांग्रेसी, 28 साल से पड़ा है सूखा

पूरे सतना जिले को कवर करने वाला सतना लोकसभा क्षेत्र मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से एक है. इस सीट से कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह सांसद रह चुके हैं. कांग्रेस की ओर से इस सीट पर जीत दर्ज करने वाले अर्जुन सिंह आखिरी नेता थे. 1991 के चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की थी.

अर्जुन सिंह(फोटो- Reuters) अर्जुन सिंह(फोटो- Reuters)
देवांग दुबे गौतम
  • नई दिल्ली,
  • 06 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 4:23 PM IST

पूरे सतना जिले को कवर करने वाला सतना लोकसभा क्षेत्र मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से एक है. इस सीट से कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह सांसद रह चुके हैं. कांग्रेस की ओर से इस सीट पर जीत दर्ज करने वाले अर्जुन सिंह आखिरी नेता थे. 1991 के चुनाव में उन्होंने जीत हासिल की थी. फिलहाल इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और गणेश सिंह यहां के सांसद हैं. पिछले 3 चुनावों से सतना में गणेश सिंह का ही जादू चलता आया है. कांग्रेस का उनको हराने का हर दांव यहां पर फेल रहा है.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि

सतना में पहला लोकसभा चुनाव साल 1967 में हुआ. पहले चुनाव में कांग्रेस के डीवी सिंह को जीत मिली. उन्होंने भारतीय जनसंघ के वीबीएस देव को मात दी. इसके अगले चुनाव में कांग्रेस को यहां पर हार मिली और जनसंघ के नरेंद्र सिंह को जीत मिली. 1977 में यहां पर हुए चुनाव में भारतीय लोकदल ने बाजी मारी और सुखेंद्र सिंह सांसद बने. शुरुआती 3 चुनाव में यहां पर 3 अलग-अलग पार्टियों को जीत मिली.

1980 में कांग्रेस ने यहां पर वापसी की और गुलशेर अहमद यहां से जीतने में सफल रहे. 1984 में कांग्रेस ने यहां से अजीज कुरैशी को मैदान में उतारा. अजीज कुरैशी ने बीजेपी के बृजेंद्र पाठक को शिकस्त देते हुए सतना के सांसद बने. हालांकि अगले चुनाव 1989 में अजीज कुरैशी को हार का सामना करना पड़ा.  बीजेपी के सुखेंद्र सिंह यहां के सांसद बने.

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1991 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से दिग्गज नेता अर्जुन सिंह को उतारा. अर्जुन सिंह पार्टी की फैससे को सही साबित करते हुए यहां पर जीत हासिल की. उन्होंने बीजेपी के सुखेंद्र सिंह को हराया. 1996 में यहां पर बसपा ने बीजेपी और कांग्रेस दोनों का खेल बिगाड़ा. बसपा के सुखलाल कुशवाहा यहां से जीतने में सफल रहे. हालांकि 1998 में बीजेपी ने यहां पर वापसी की और तब से ही यह सीट उसी के पास है.

बीजेपी यहां पर पिछले 5 चुनाव में जीत हासिल कर चुकी है. इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी(बसपा) का भी अच्छा खासा प्रभाव है. उसको इस सीट पर एक बार जीत मिली चुकी है तो वहीं 2009 के चुनाव में बसपा इस सीट पर दूसरे स्थान पर थी. सतना लोकसभा सीट पर 6 बार बीजेपी को, 4 बार कांग्रेस को, 1 बार बसपा को और 1 बार भारतीय जनसंघ को जीत मिल चुकी है. सतना लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत विधानसभा की 7 सीटें आती हैं. चित्रकूट, नागौद, रामपुर-बाघेलान,रायगांव, मैहर, सतना और अमरपाटन यहां पर आने वालीं विधानसभा सीटें हैं. इन 7 विधानसभा सीटों में से 5 पर बीजेपी और 2 पर कांग्रेस का कब्जा है.

2014 का जनादेश

2014 के चुनाव में बीजेपी के गणेश सिंह ने अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह को हराया था. इस चुनाव में गणेश सिंह को 3,75,288 वोट मिले थे तो वहीं कांग्रेस के अजय सिंह को 3,66,600 वोट मिले थे. गणेश सिंह ने 8,688 वोटों से अजय सिंह को हराया था.  

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इससे पहले के चुनाव यानी 2009 में भी गणेश सिंह को जीत मिली थी. तब उन्होंने बसपा के सुखलाल कुशवाहा को हराया था.गणेश सिंह को इस चुनाव में 1,94,624 वोट मिले थे तो वहीं सुखलाल कुशवाहा को 1,90,206 वोट मिले थे.

सामाजिक ताना-बाना

2011 की जनगणना के मुताबिक सतना की जनसंख्या 2228935 है. यहां की 78.72 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 21.28 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. सतना में 17.88 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जाति और 14.36 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति के लोगों की है. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 के चुनाव में यहां पर 14,58, 084 थे. इसमें  6,86,058 महिला मतदाता और 7,72,027 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 62.65 फीसदी वोटिंग हुई थी.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

57 साल के गणेश सिंह 2014 का लोकसभा चुनाव जीतकर तीसरी बार सांसद बने. एलएलबी की पढ़ाई कर चुके गणेश सिंह की संसद में उपस्थिति 88 फीसदी रही है. इस दौरान उन्होंने 145 बहस में हिस्सा लिया. गणेश सिंह संसद में 386 सवाल भी किए. उन्होंने निर्भया फंड,पीएम उज्जवला योजना, मेक इन इंडिया प्रोग्राम, नौकरी में आरक्षण जैसे मामलों पर सवाल किया.

सांसद गणेश सिंह(फोटो- Twitter)

गणेश सिंह को उनके निर्वाचन क्षेत्र के विकास के लिए 25 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 26.23 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 22.52 यानी मूल आवंटित फंड का 88.26 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 3.71 करोड़ रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.

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