
मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट देश की हाईप्रोफाइल सीटों में से एक है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज यहां की सांसद हैं. विदिशा बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीटों में से एक मानी जाती है. कांग्रेस इस सीट पर हमेशा से ही कमजोर रही है. यहां से राज्य के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी सांसद रह चुके हैं. सुषमा स्वराज यहां से लगातार दो चुनाव जीत चुकी हैं. 2014 के पहले 2009 के चुनाव में भी उन्होंने यहां पर जीत हासिल की थी.
इस बार इस सीट से बीजेपी किसको मैदान में उतारेगी ये देखने वाली बात होगी, क्योंकि सुषमा स्वराज लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला ले चुकी हैं. बीते साल उन्होंने कहा था कि उम्मीदवारों का चयन पार्टी द्वारा होता है लेकिन मैंने अपना मन बना लिया है कि मैं अगला चुनाव नहीं लड़ूंगी. सुषमा ने यह भी कहा कि उन्होंने अपने फैसले से पार्टी को अवगत करा दिया है.
सामाजिक ताना-बाना
विदिशा मध्य प्रदेश के प्रमुख शहरों में से एक है. ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र मध्यभारत का सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जा सकता है. यह शहर पहले दो नदियों के संगम पर बसा हुआ था, जो कालांतर में दक्षिण की ओर बढ़ता जा रहा है. इन प्राचीन नदियों में एक छोटी-सी नदी का नाम वैस है. इसे विदिशा नदी के रूप में भी जाना जाता है.
2011 की जनगणना के मुताबिक विदिशा की जनसंख्या 2489435 है.यहां की 81.39 फीसदी आबादी ग्रामीण और 18.61 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. विदिशा में 18.68 फीसदी लोग अनुसूचित जाति के हैं और 5.84 अनुसूचित जनजाति के हैं. चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 में यहां पर कुल 16,34,370 मतदाता थे. इनमें से 7,61,960 महिला मतदाता और 8,72,410 पुरुष मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 65.68 फीसदी मतदान हुआ था.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
विदिशा में पहला चुनाव 1967 में हुआ. पहले चुनाव में भारतीय जनसंघ के एस.शर्मा ने जीत हासिल की थी. इसके अगले चुनाव में भी भारतीय जनसंघ को ही जीत मिली. नामी मीडिया हाउस इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के फाउंडर रामनाथ गोयनका इस सीट से जीतकर सांसद बने.
कांग्रेस इस सीट पर सिर्फ दो बार ही जीतने में कामयाब रही है. उसको पहली सफलता यहां पर 1980 के चुनाव में मिली, जब भानु प्रताप कृष्ण गोपाल ने बीजेपी के राघवजी को हराया था. इसके अगले चुनाव 1984 में भी भानुप्रताप ने राघवजी को हराया और दूसरी बार कांग्रेस को इस सीट पर सफलता दिलाई. हालांकि राघवजी ने इसके अगले चुनाव में बदला लिया और भानुप्रताप को 1 लाख से ज्यादा वोटों से हराया.
साल 1991 में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी यहां से मैदान में उतरे. यहां की जनता ने उनको निराश नहीं किया. वाजयेपी ने कांग्रेस के भानुप्रताप शर्मा को 1 लाख से ज्यादा वोटों से मात देकर यहां के सांसद बने.
बीजेपी ने इसके अगले चुनाव में शिवराज सिंह चौहान को यहां से टिकट दिया. इस बार भी विदिशा की जनता ने इस बार बीजेपी उम्मीदवार को ही चुना और पहली बार शिवराज इस सीट से जीतकर संसद पहुंचे. वह इसके बाद लगातार 3 बार यहां के सांसद चुने गए.
1991,1996,1998 और 2004 में शिवराज ने लगातार विदिशा सीट पर जीत हासिल की. और हर बार उन्होंने कांग्रेस के अलग-अलग उम्मीदवार को पटखनी दी. 2006 में राज्य का सीएम बनने के बाद शिवराज को यह सीट छोड़नी पड़ी. और यहां पर उपचुनाव हुआ.
उपचुनाव में बीजेपी ने यहां से रामपाल सिंह को उतारा. रामपाल के सामने कांग्रेस के राजश्री रुद्र प्रताप सिंह थे. रामपाल ने रुदप्रताप को इस चुनाव में करारी मात दी. इसके अगले चुनाव 2009 में बीजेपी ने यहां से दिग्गज नेता सुषमा स्वराज को मैदान में उतारा.
अब जब वाजपेयी और शिवराज जैसे दिग्गज नेता पहले ही इस सीट से जीतकर संसद पहुंच चुके थे तो बीजेपी को उम्मीद थी यहां की जनता उनको निराश नहीं करेगी. और हुआ भी वैसा ही. विदिशा की जनता ने सुषमा स्वराज को 3.50 लाख से ज्यादा वोटों से जीताकर अपना सांसद बनाया.
2009 में जब बीजेपी को देश में हार का सामना करना पड़ा था तब भी विदिशा ने पार्टी को खुश होने का मौका दिया. सुषमा इसके बाद 2009 में लोकसभा में विपक्ष की नेता बनीं.
2014 में जब पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी और ऐसे में बीजेपी ने एक बार फिर विदिशा सीट से सुषमा स्वराज को उतारने का फैसला लिया. इस चुनाव में सुषमा की पकड़ और मजबूत हुई और 4 लाख वोटों से जीत मिली.
विदिशा लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. भोजपुर, विदिशा, इच्छावर, सांची,बासौदा, खाटेगांव, सिलवनी, बुधनी यहां की सीटें हैं. इन 8 सीटों में से 6 पर बीजेपी और 2 पर कांग्रेस का कब्जा है.
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में सुषमा स्वराज ने कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह को हराया. बता दें लक्ष्मण सिंह कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्य के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के भाई हैं.
इस चुनाव में सुषमा स्वराज को 7,14,348(66.55 फीसदी) वोट मिले. वहीं लक्ष्मण सिंह को 3,03,650(28.29 फीसदी) वोट मिले. सुषमा स्वराज की जीत 4 लाख से ज्यादा वोटों से हुई थी.
2009 के चुनाव में भी सुषमा स्वराज को जीत मिली थी. उन्होंने सपा के चौधरी मुनाब्बर सलीम को 3.50 लाख से ज्यादा वोटों से करारी मात दी. सुषमा को 4,38,235(78.8 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं चौधरी मुनाब्बर सलीम को सिर्फ 48,391(8.7 फीसदी) वोट मिले.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
67 साल की सुषमा स्वराज की गिनती देश के दिग्गज नेताओं में होती है. पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से कानून की पढ़ाई कर चुकीं सुषमा स्वराज दिल्ली की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं. वे 2009 के लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी के 19 सदस्यीय चुनाव-प्रचार-समिति की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. सुषमा स्वराज 15वीं लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं. 2014 में जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो सुषमा स्वराज को विदेश मंत्री की जिम्मेदारी मिली. उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया.
उनके क्षेत्र के विकास की बात करें तो इसके लिए उनको 22.50 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. जो कि ब्याज की रकम मिलाकर 22.71 करोड़ हो गई थी. इसमें से उन्होंने 22.03 यानी मूल आवंटित फंड का 96.11 फीसदी खर्च किया. उनका करीब 69 लाख रुपये का फंड बिना खर्च किए रह गया.