
2014 में पटियाला लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी के डॉ. धर्मवीर गांधी करीब 3 लाख 65 हजार 664 वोट लेकर विजयी रहे थे. अब गांधी भी AAP में नहीं हैं और दीपेंद्र सिंह ढिल्लों भी शिरोमणि अकाली दल को छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और अब वो कांग्रेसी उम्मीदवार सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी परनीत कौर के लिए प्रचार करेंगे. खबरों की मानें तो AAP की ओर से डॉ. बलबीर सिंह का नाम भी जोरों पर है.
2014 का जनादेश
दरअसल इस सीट को AAP ने 2014 में अपने नाम कर लिया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां से आम आदमी पार्टी के डॉ धर्मवीर गांधी को शानदार जीत मिली थी. लेकिन 2016 में पार्टी से बगावत कर चुके गांधी को AAP ने निलंबित कर दिया. पार्टी ने इन्हें और हरिंदर सिंह खालसा को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी निलंबित कर दिया. इनपर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप था.
वहीं कांग्रेस में भी टिकट के होड़ मची है, पूर्व सांसद परनीत कौर के साथ-साथ 4 बार विधायक रहे रणदीप नाभा भी इस सीट के लिए दावेदारी ठोक रहे हैं. लेकिन कांग्रेस ने अभी तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है. इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने के लिए AAP को शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिलने वाली है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
पटियाला लोकसभा सीट पर AAP के डॉ. धर्मवीर गांधी ने कांग्रेस के परनीत कौर को हराकर बाजी मारी थी. आम आदमी पार्टी को यहां 32.6 फीसदी मत शेयरों के साथ 3,65,671 वो मिले थे. कांग्रेस की परनीत कौर को 30.8 फीसद मत शेयर के साथ 3,44,729 वोट मिले और अकाली दल के दीपेंद्र सिंह ढिल्लों को 30.3 फीसदी मत शेयर के साथ 340109 वोट मिले थे.
वहीं 2009 में इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा था. कांग्रेस की परनीत कौर को यहां पर 50.7 फीसदी मत शेयर के साथ 4,74,188 मत मिला था. जबकि अकाली दल के प्रेम सिंह को 40.3 फीसदी वोट शेयर के साथ कुल 3,76,799 वोट प्राप्त हुआ था. इन आंकड़ों से साफ हो जाता है कि 2019 में पटियाला लोकसभा सीट पर मुकाबला रोमांचक होने वाला है.
सामाजिक ताना-बाना
इस लोकसभा सीट के अंदर कुल 9 विधानसभा सीटें हैं. जिनके नाम नाभा, डेराबस्सी, पटियाला, पटियाला ग्रामीण, समाना, घनौर, राजपुरा, सनौर, शुत्राना. इन 9 सीटों में से 2 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.
आजादी के बाद से इस लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा कांग्रेस का कब्जा रहा है, उसके बाद अकाली दल का नंबर आता है. 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान यहां कुल 13,44,864 मतदाता हैं, जिसमें पुरुष वोटर्स 7,05,182 और महिला वोटर्स 6,39682 थीं. साल 2014 में इस सीट पर 70.3 फीसदी यानी 11,20,933 वोट पड़े थे.
1952 से अब तक पटियाला लोकसभा सीट पर 16 बार चुनाव हुए, जिसमें 10 बार कांग्रेस, चार बार अकाली और एक बार निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं. कांग्रेस के अचिंत यहां के पहले सांसद थे. 1977 तक यहां कांग्रेस का ही दबदबा रहा, 1977 में अकाली दल के गुरचरन सिंह सिंह टोहड़ा ने कांग्रेस के प्रभुत्व को खत्म किया.
खास आंकड़े
मौजूदा वक्त में यहां की लड़ाई काफी अहम है, हालांकि कांग्रेस ने अब तक उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है. लेकिन सूबे में कांग्रेस की वापसी से यह तय है कि लड़ाई AAP से हटकर कांग्रेस बनाम अकाली हो गई है. 2014 में चुनाव के दौरान यहां कुल 1558 बूथ बनाए गए थे. 16वीं लोकसभा के सांसद डॉ धर्मवीर गांधी ने अपने सांसद निधि कोष से 97.53 फीसदी रकम विकास के कामों में इस्तेमाल किया है.
पटियाला का इतिहास
ये पंजाब का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. चंडीगढ़ से 70 किलोमीटर दूर स्थित ये शहर परंपरा और पंजाब के इतिहास के दृष्टि से काफी अहम माना जाता है. बता दें, देश का पहला डिग्री कॉलेज मोहिंदर कॉलेज की स्थापना 1870 में पटियाला में की गई थी. पटियाला की अपनी एक अलग संस्कृति है, जिसमें यहां के लोगों की विशेषता को दर्शाती है. पटियाला के वास्तुशिल्प में जाट शैली दिखाई पड़ता है, लेकिन यह शैली भी स्थानीय परंपराओं में ढलकर एक नया रूप ले चुकी है. पटियाला का किला मुबारक परिसर तो सुंदरता की खान और पर्यटकों के खास आकर्षण का केंद्र है.