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क्यों पंचर हुई साइकिल और हाथी का निकला दम, 3 जून को मायावती करेंगी मंथन

बसपा अध्यक्ष मायावती ने 3 जून को दिल्ली में बैठक बुलाई है. लोकसभा चुनाव के बाद बसपा की यह पहली समीक्षा बैठक है, जिसमें मायावती ने अपने सभी नवनिर्वाचित सांसदों, लोकसभा प्रत्याशियों, जोनल इंचार्ज और जिलाध्यक्षों को बैठक में बुलाया है.

अखिलेश यादव और मायावती अखिलेश यादव और मायावती
कुमार अभिषेक
  • नई दिल्ली,
  • 31 मई 2019,
  • अपडेटेड 3:04 PM IST

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद विपक्षी दलों में समीक्षा का दौर जारी है. ऐसे में लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के अश्वमेध का रथ रोकने और अपने सियासी वजूद को दोबारा पाने से लिए बसपा अध्यक्ष मायावती ने सपा से सारी दुश्मनी भुलाकर हाथ मिलाया. इसके बावजूद नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर में सपा-बसपा गठबंधन पूरी तरह धराशायी हो गया. इस करारी हार से सपा के बाद अब बसपा भी हार की समीक्षा के लिए 3 जून यानी सोमवार को बैठक करने जा रही है.

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बसपा अध्यक्ष मायावती ने 3 जून को दिल्ली में बैठक बुलाई है. लोकसभा चुनाव के बाद बसपा की यह पहली समीक्षा बैठक है, जिसमें मायावती ने अपने सभी नवनिर्वाचित सांसदों, लोकसभा प्रत्याशियों, जोनल इंचार्ज और जिलाध्यक्षों को बैठक में बुलाया है. माना जा रहा है कि इस बैठक में बसपा सुप्रीमो इस बात पर मंथन करेंगी कि लोकसभा चुनाव में उनकी उम्मीद के मुताबिक नतीजा क्यों नहीं आया.

बता दें कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी गठबंधन ने 64 सीट जीती हैं. बीजेपी 62 और उसकी सहयोगी अपना दल 2 सीट जीतने में कामयाब रही. सपा-बसपा गठबंधन महज 15 सीट ही जीत पाया. इसमें बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें मिली हैं.

जबकि, मायावती-अखिलेश दोनों नेताओं ने 50 से ज्यादा सीट जीतने का मंसूबा पाल रखा था. लेकिन चुनावी नतीजे उनकी सोच के विपरीत आए हैं. ऐसे में दोनों दलों को बड़ा झटका लगा है. लेकिन 2019 चुनाव में बसपा के सांसदों की संख्या शून्य से 10 पर पहुंच गई है.

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बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने जीते हुए सभी 10 सांसदों के साथ रविवार को बैठक कर उनके साथ आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श किया था. लोकसभा चुनावों में प्रदेश में बसपा ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ा था. जबकि सपा ने 37 सीटों पर किस्मत आजमाई थी.

दरअसल 2012 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से लगातार बसपा का ग्राफ गिरता जा रहा था. हालत यह हो गई थी कि 2014 के लोकसभा में बसपा खाता भी नहीं खोल सकी थी. इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा महज 19 सीटें ही जीत सकी थी. इस तरह 2019 का लोकसभा चुनाव बसपा के लिए नई उम्मीद लेकर आया था, लेकिन साइकिल और हाथी का गठबंधन फुस्सा हो गया.

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