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शंकर सिंह वाघेला: गोधरा सीट से हारे तो छोड़ दी बीजेपी, कांग्रेस के समर्थन से बने थे मुख्यमंत्री

गुजरात के बड़े नेताओं में शुमार शंकर सिंह वाघेला ने शरद पवार की पार्टी एनसीपी का दामन थाम लिया है. इस बार भी वह साबरकांठा सीट से मैदान में उतर सकते हैं.

शंकर सिंह वाघेला (फाइल फोटो) शंकर सिंह वाघेला (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • अहमदाबाद,
  • 15 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 8:17 AM IST

गुजरात के बड़े नेताओं में शुमार शंकर सिंह वाघेला ने शरद पवार की पार्टी एनसीपी का दामन थाम लिया है. इस बार भी वह साबरकांठा सीट से मैदान में उतर सकते हैं. हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में बतौर कांग्रेस प्रत्याशी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. करीब दो दशक तक कांग्रेस की सियासत करने के बाद वाघेला का एनसीपी में जाना उनके डूबते सियासी सफर को बचाने की कवायद से जोड़कर देखा जा रहा है.

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शंकर सिंह वाघेला ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत इमरजेंसी के दौर से की. गांधी नगर के वासन में राजपूत परिवार में जन्मे वाघेला शुरुआत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सक्रिय सदस्य थे. इमरजेंसी के दौर में वह जेल भी गए. इमरजेंसी के हटने के बाद वह जनपा पार्टी के टिकट पर कपडवंज से पहली बार सांसद बने, लेकिन 1980 के चुनाव में वह सीट हार गए.

वाघेला गुजरात में जनता पार्टी के उपाध्यक्ष थे और 1980 से 1991 तक वे गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के महासचिव और अध्यक्ष रहे. वह 1984 से 1989 तक राज्य सभा के सदस्य भी रहे. 1989 में वाघेला गांधीनगर लोकसभा सीट और 1991 में गोधरा लोकसभा सीट से जीते. 1995 में गुजरात में जब बीजेपी ने 182 में से 121 सीटों पर जीत दर्ज की, तो विधायकों वाघेला को अपना नेता चुना था, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने केशुभाई पटेल को सीएम की कुर्सी दे दी. सितंबर 1995 में वाघेला ने 47 विधायकों के समर्थन के साथ बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर दिया. बाद में समझौते के तौर पर वाघेला के वफादार सुरेश मेहता को सीएम बनाया गया, 1996 का लोकसभा चुनाव वाघेला गोधरा सीट से हार गए और जल्द ही उन्होंने अपने समर्थकों के साथ भारतीय जनता पार्टी छोड़ दी, जिससे सुरेश मेहता की सरकार गिर गई.

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इसके बाद वाघेला ने राष्ट्रीय जनता पार्टी नाम से अपनी पार्टी बनाई और अक्टूबर 1996 में कांग्रेस पार्टी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने. उन्होंने 1997 की शुरुआत में राधनपुर सीट से गुजरात विधानसभा के लिए उपचुनाव जीता, लेकिन अक्टूबर 1997 में गुजरात में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल के बीच उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और उनके साथी बागी पूर्व बीजेपी विधायक दिलीप पारिख सीएम बन गए. पारिख की सरकार भी लंबे समय तक नहीं चली और 1998 में गुजरात विधानसभा के लिए नए सिरे से चुनाव कराना पड़ा. वाघेला ने ये चुनाव नहीं लड़ा. उन्होंने अपनी नई पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया. भाजपा 1998 में गुजरात में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापस आई और केशुभाई पटेल फिर से सीएम बने.

वाघेला 1999 और 2004 में कपड़वंज लोकसभा सीट से से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में जीते. यूपीए सरकार में उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया था. बाद में कपड़वंज सीट परिसीमन में पंचमहल सीट हो गई और वाघेला 2009 के लोकसभा चुनाव में पंचमहल सीट से हार गए थे. 2012 के गुजरात विधानसभा में वह कपडवंज सीट से चुनाव लड़े और जीते. वाघेला गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. इसके साथ ही वह गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने गुजरात में साबरकांठा लोकसभा सीट से 2014 में चुनाव लड़ा और भाजपा उम्मीदवार दिपसिंह शंकरसिंह राठौड़ से हार गए. जुलाई 2017 में 13 विधायकों के साथ उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता के पद से हट गए.

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कांग्रेस छोड़ने के तुरंत बाद उन्होंने 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले जन विकास मोर्चा नाम से एक नया संगठन शुरू किया. चूंकि चुनाव आयोग में उनका संगठन रजिस्टर नहीं था तो उन्होंने अखिल भारतीय हिंदुस्तान कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 95 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. चुनाव में उनकी पार्टी कोई भी सीट नहीं जी पाई. अब वह शरद पवार की एनसीपी में चले गए हैं.

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