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लोकसभा चुनाव 2019: बिहार में एनडीए के रथ को रोकना बड़ी चुनौती

सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए एनडीए और यूपीए अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं, साथ ही क्षेत्रीय दल भी अपना-अपना दांव आजमा रहे है. ज्यादातर राज्यों में पार्टियों की बीच होने वाले गठबंधन पर मुहर लग चुकी है और उनके बीच सीटों का बंटवारा भी हो चुका है, लेकिन बिहार में यूपीए के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है.

बिहार में एनडीए में नीतीश कुमार की वापसी हुई है (फाइल-PTI) बिहार में एनडीए में नीतीश कुमार की वापसी हुई है (फाइल-PTI)
दीपू राय
  • नई दिल्ली,
  • 20 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 9:01 PM IST

देशभर में गठबंधनों का दौर चल रहा है. सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए एनडीए और यूपीए अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं, साथ ही क्षेत्रीय दल भी अपना-अपना दांव आजमा रहे हैं. ज्यादातर राज्यों में पार्टियों की बीच होने वाले गठबंधन पर मुहर लग चुकी है और उनके बीच सीटों का बंटवारा भी हो चुका है, लेकिन बिहार में यूपीए के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है.

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'जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक रहेगा बिहार में लालू', नब्बे के दशक के इस नारे की धमक 2009 और 2014 लोकसभा चुनावों के नतीजों के साथ ही फीकी सी पड़ने लगी. अगर सिर्फ 2014 के आंकड़ों को ही आधार मानें तो 2019 में एनडीए गठबंधन एक बार फिर यूपीए गठबंधन पर भारी पड़ता नजर आ रहा है. वर्तमान एनडीए में बीजेपी और एलजेपी के अलावा नीतीश कुमार की जद (यू) को 2014 में मिले वोट को आधार बनाए तो एनडीए, यूपीए से बहुत आगे जाता दिखता है.

2014 लोकसभा चुनाव में मिले वोट के आधार पर बिहार की वर्तमान एनडीए (बीजेपी+एलजेपी+जद(यू) और यूपीए (कांग्रेस+आरजेडी+ लेफ्ट+RLSP+एनसीपी) का वोट प्रतिशत

Note: All figures are in percent; Data source: ECI_2014; Left: CPI+CPI (M) +CPI (ML)

2014 के चुनाव में जहां मुकाबला त्रिकोणीय था, इस बार हालात बदले-बदले से हैं. पिछले बार जेडीयू, बीजेपी और आरजेडी गठबंधन ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला, मोदी लहर में बीजेपी ने एलजेपी और आरएलएसपी के साथ मिलकर 40 में से 31 सीटें जीत ली थीं. इस बार भी एनडीए को सबसे ज्यादा फायदा जेडीयू के साथ आने से हो रहा है, लेकिन यहां ये बताना जरूरी है कि 2014 लोकसभा चुनावों से पहले ही नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का विरोध कर एनडीए से किनारा कर लिया था और बीजेपी ने नीतीश विरोध के नाम पर चुनाव लड़ा था.

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अगर 2014 के आंकड़ों के आधार पर आंकलन करें और मौजूदा गठबंधन के वोटों को जोड़ दें तो 2019 में एनडीए गठबंधन बीजेपी की 22 में से 21, एलजेपी की छह और जेडीयू की दो सीटें बचा सकता है बल्कि लालू यादव की आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) की जीती अररिया, बांका, भागलपुर और मधेपुरा सीटों पर भी खतरा बन सकते हैं. 2014 में आरजेडी ने 40 में से सिर्फ इन 4 सीटों पर जीत हासिल की थी.

2014 में जनता दल यूनाइटेड ने अकेले चुनाव लड़ते हुए दो सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि चार सीटों पर वो दूसरे नंबर पर और 29 सीटों पर तीसरे पायदान पर रही. जेडीयू के एनडीए में आ जाने से कांग्रेस की दो में से एक सुपौल सीट और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी की कराकट सीट पर भी एनडीए मजबूत दावेदारी पेश कर सकती है. 2014 की लोकसभा में आरएलएसपी ने दो सीटें जीती थीं.

इंडिया टुडे की डाटा इंटेलिजेंस यूनिट (डीआईयू) ने बिहार की 40 सीटों पर पिछले चुनावों में पड़े वोटों की पड़ताल की. हमने आंकड़ों को नए गठबंधन के समीकरण के हिसाब से वोट शेयरों में संभावित बदलाव को आधार बनाया है.

इस पड़ताल के बाद ये अनुमान लगाया जा सकता है कि जेडीयू के आने से बिहार में एनडीए गठबंधन को बड़ी मजबूती मिलने जा रही है. हालांकि अगर महागठबंधन में कम्युनिस्ट पार्टियां या बीएसपी शामिल होती है तो कुछ सीटों पर उलटफेर दिख सकता है. वोटों के लिहाज से देखें तो जीतन मांझी की नई पार्टी ‘हम’ और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के महागठबंधन में आने से दो सीटों पर मामूली बदलाव हो सकता है.

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इन सब समीकरणों के बावजूद अगर नीतीश कुमार और बीजेपी एक-दूसरे को अपने वोट ट्रांसफर करवाने में कामयाब रहे तो एनडीए को 40 में से 35 सीटों पर कामयाबी मिल सकती है, हालांकि इनमें से दस सीटों पर मामला काफी नजदीकी है. यहां के जातीय समीकरण और उम्मीदवारों का चयन भी एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.

एलजेपी की मौजूदा सीट समस्तीपुर, जेडीयू की नालंदा और बीजेपी की बेगुसराय, मधुबनी, सारण, झंझारपुर, सासाराम, औरंगाबाद, खगड़िया और उजियारपुर सीट पर कड़े मुकाबले के आसार हैं. हालांकि पार्टी को भागलपुर, दरभंगा, गया, गोपालगंज, हाजीपुर, जमुई और झंझारपुर जैसी सीटों पर जेडीयू के साथ का सीधा फायदा मिल सकता है जहां बीजेपी की जीत का अंतर कम था.

ये भी सच है कि नीतीश कुमार के साथ एंटी इनकमबेंसी का फैक्टर भी जुड़ा है. बीजेपी को फायदे के साथ-साथ नीतीश कुमार के साथ का नुकसान भी हो सकता है.

बिहार के चुनाव की सबसे खास बात है कि पिछले चुनावों में जीत हासिल करने वाली तकरीबन सभी पार्टियां चाहे वो बीजेपी हो, आरजेडी, जनता दल यूनाइटेड या कांग्रेस, सभी का वोट शेयर 30 फीसदी से ज्यादा था. बीजेपी रामविलास पासवान की एलजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हुए 22 सीटों पर जीत की थी जबकि एलजेपी 7 सीटों पर लड़ते हुए 6 पर जीत हासिल किया था. आरजेडी 27 सीटों पर दूसरे नंबर पर थी, लेकिन जेडीयू जो 2014 का चुनाव अकेले लड़ी थी वो केवल 2 सीट जीत पाई थी.

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हर चुनाव अलग होता है और हर चुनाव की तासीर भी अलग होती है. आज आरजेडी सुप्रीमो चारा घोटाले में रांची की जेल और अस्पतालों में सजा काट रहे हैं, कमान बेटे तेजस्वी के हाथ में है. तेजस्वी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक-दूसरे का साथ तो दे रहे हैं लेकिन सीटों का बंटवारा खबर लिखे जाने तक नहीं पाया है. दोनों नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी और सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और उपचुनाव में जीत से उनके हौसले भी बढ़े हुए हैं.

बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश से लगे बिहार की बक्सर सीट को बचाना है. जहां लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल पिछले चुनावों में दूसरे नंबर पर थी और वोट शेयर में करीब चौदह फीसदी का अंतर था, लेकिन तीसरे नंबर पर बीएसपी का उम्मीदवार था जिसका वोट शेयर बीस फीसदी था, यानी आरजेडी से थोड़ा सा कम.

अगर बीएसपी आरजेडी के साथ गठबंधन कर लेती है तो बीजेपी के लिए इस सीट को बचाना मुश्किल हो सकता है.

बक्सर के अलावा जहानाबाद, कटिहार, किशनगंज, सीतामढ़ी जैसी सीटें यूपीए के खाते में बनी रह सकती हैं. इन पांच में से दो सीटें- जहानाबाद और सीतामढ़ी उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी के पास है. आरएलएसपी ने 2014 का चुनाव एनडीए के साथ मिलकर लड़ा था. अब उपेंद्र कुशवाहा लालू यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हैं. ये भी सच है कि 2014 में एनडीए में आने से पहले उपेंद्र कुशवाहा एक क्षेत्रीय नेता जिनकी कोई खास पहचान नहीं थी, लेकिन मोदी लहर पर सवार होकर वो न सिर्फ संसद पहुंचे बल्कि उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया और मंत्री के तौर पर उनकी अच्छी खासी पहचान बन गई. अब कुशवाहा मोदी के खिलाफ हैं और उनके सामने इस बात की चुनौती है कि वो अपने वोटबैंक को साध कर रख सकें.

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एनडीए के तीनों प्रमुख दलों ने 2019 के लिए उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं. बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड 17-17 सीटों पर जबकि पासवान की पार्टी 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

बिहार में कुल सात चरणों में चुनाव होने जा रहे हैं. पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को और अंतिम यानी सातवां चरण में 19 मई को वोट डाले जाएंगे.

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