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Exit Poll: बंगाल में बीजेपी की दमदार दस्तक, दीदी राज के खात्मे की आहट

चुनाव खत्म होने  के बाद अंतिम परिणाम तो 23 मई को आएंगे लेकिन आजतक-एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के आंकड़े तस्दीक कर रहे हैं कि ममता का किला ध्वस्त हो रहा है.

ममता बनर्जी (फाइल फोटो) ममता बनर्जी (फाइल फोटो)
कुणाल कौशल
  • कोलकाता,
  • 20 मई 2019,
  • अपडेटेड 1:15 PM IST

लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान अगर कोई एक राज्य सबसे ज्यादा चर्चा के केंद्र में रहा तो वो है पश्चिम बंगाल. चुनाव खत्म होने के बाद आजतक-एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के आंकड़े पश्चिम बंगाल में जहां बीजेपी की दमदार दस्तक की तरफ संकेत दे रहे हैं वहीं 'दीदी' राज के खात्मे की तरफ भी इशारा कर रहे हैं. 

चुनाव की जगह युद्ध भूमि में तब्दील हो चुके 'दीदी' के गढ़ पश्चिम बंगाल में चुनाव के हर चरण में हिंसा की तस्वीरों ने पूरे देश में सुर्खियां बटोरी. बीजेपी इस चुनाव में पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा मेहनत करती नजर आई थी. अब केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को उसके संघर्ष का फल मिलता दिख रहा है.

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चुनाव खत्म होने के बाद अंतिम परिणाम तो 23 मई को आएंगे लेकिन आजतक-एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के आंकड़े तस्दीक कर रहे हैं कि ममता का किला ध्वस्त हो रहा है.

क्या कहता है बंगाल का एग्जिट पोल

आजतक-एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक, बीजेपी पश्चिम बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 19 से 23 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है. वहीं राज्य में सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस  (टीएमसी) को महज 19 से 22 सीटों से संतोष करना पड़ सकता है .

देश में सबसे बड़े विपक्षी दल की भूमिका निभाने वाली कांग्रेस को बंगाल में सिर्फ एक सीटें मिलने का अनुमान है. वहीं राज्य में करीब 34 सालों तक सत्ता चलाने वाली सीपीएम और सीपीआई को महज एक सीट मिलता दिख रहा है.

हमारे एग्जिट पोल के आंकड़ों के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी का वोट शेयर  41-41 फीसदी तक रह सकता है जबकि यूपीए को 7 फीसदी वोट शेयर मिलने का अनुमान है.  वहीं सीपीएम-सीपीआई और अन्य को  5 से 6 फीसदी वोट शेयर मिलने का अनुमान है.

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खासबात यह है कि देश के लगभग हर एग्जिट पोल में पश्चिम बंगाल में टीएमसी के मुकाबले बीजेपी बढ़त बनाती हुई नजर आ रही है जबकि बीते चुनाव में उन्हें पश्चिम बंगाल में सिर्फ 2 सीटों से संतोष करना पड़ा था और मोदी लहर के बावजूद टीएमसी  ने 33 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

क्यों ढह गया ममता का किला ?

पश्चिम बंगाल में 34 सालों से सत्ता पर जमी सीपीएम सरकार को ममता ने साल 2011 में उखाड़ फेंका था और विधानसभा चुनाव में 294 में से 184 सीटों पर कब्जा जमा कर पहली बार राज्य की मुख्यमंत्री बनीं. ममता बनर्जी ने सिंगूर प्लांट से लेकर सीपीएम की खराब नीतीयों को सामने रखकर मां, माटी मानुष का नारा दिया था जिसने उन्हें सत्ता तक पहुंचा दिया.

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस कई दशकों से हाशिये पर ही रही है. ऐसे में बंगाल जैसे बड़े राज्य में अपनी जमीन तलाशती बीजेपी ने महसूस किया कि वो वहां टीएमसी का विकल्प बना जा सकता है. जैसे सीपीएम को सत्ता से बेदखल करने के लिए टीएमसी एक विक्लप के तौर पर उभरी वैसे ही बीजेपी ने भी राज्य में अपनी जड़े मजबूत करने के लिए लोगों के बीच खुद को एक विकल्प के तौर पर रखना शुरू किया. 

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पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में रहने वाले हिन्दुओं को अपना आधार बनाकर बीजेपी ने ममता बनर्जी पर पक्षपात करने का आरोप लगाया. चाहे दुर्गा पूजा हो या फिर फिर सरस्वती पूजा. मूर्ति विसर्जन पर रोक और मुहर्रम को मिलने वाली छूट को लेकर उपजे विवाद को बीजेपी ने वहां मुद्दा बनाया और आरोप लगाया कि ममता बनर्जी सिर्फ एक समुदाय विशेष के लिए काम कर रही हैं.

बंगाल में बीजेपी पर क्यों बढ़ा लोगों का विश्वास

रामनवमी की शोभा यात्रा हो या फिर प्रतिमा विसर्जन इस मुद्दे पर ममता के फैसले और जिद्द को बीजेपी ने हाई कोर्ट तक में चुनौती दी जहां से ममता बनर्जी की छवि को धक्का पहुंचा. बीजेपी वहां के बहुसंख्यक हिन्दुओं में यह भरोसा कायम करने में कामयाब होने लगी की टीएमसी उनके खिलाफ पक्षपात वाला बर्ताव कर रही है.

बीजेपी के विरोध को सत्ताधारी टीएमसी के कार्यकर्ता बर्दाश्त नहीं कर पाए और वहां दोनों पार्टियों के बीच हिंसा का दौर शुरू हो गया. आए दिन वहां बीजेपी नेता और कार्यकर्ताओं की हत्या होने लगी जिसको लेकर पीएम मोदी और अमित शाह ने ममता पर आरोप लगाया कि वो जितना बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हिंसा करेंगी बीजेपी राज्य में उतनी ही मजबूत होगी.

यह ठीक वैसा ही फॉर्मूला था जो टीएमसी ने सीपीएम को उखाड़ने के लिए अपनाई थी. जिस वक्त टीएमसी सीपीएम के खिलाफ संघर्ष कर रही थी उस वक्त टीएमसी और सीपीएम के बीच काफी हिंसा होती थी जिसमें दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता मारे जाते थे.

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अवैध घुसपैठियों पर ममता बनर्जी के खिलाफ बीजेपी का हल्लाबोल

पश्चिम बंगाल और कोलकाता में बांग्लादेश से आने वाले अवैध नागरिकों (मुस्लिम) को लेकर ममता बनर्जी का रुख हमेशा नरम रहा है जबकि रोजगार की कमी और गरीबी से जूझ रहे बंगाल में बीजेपी ने वादा किया अगर वो सत्ता में आई तो बंगाल में भी एनआरसी लागू करेंगे और सभी अवैध घुसपैठियों को देश से बाहर करेंगे.

ममता बनर्जी ने बंगाल में एनआरसी का सख्त विरोध किया और कहां कि वो राज्य में एनआरसी को कभी लागू नहीं होने देंगी. बीजेपी ने ममता बनर्जी के इस रुख पर आरोप लगाया कि वो कोलकाता और बंगाल में अवैध बांग्लादेशी लोगों को बसाना चाहती हैं जो राज्य और देश के लिए खतरा होगा.  बीजेपी को इससे फायदा मिला और न सिर्फ बंगाल में वो मजबूत होती दिख रही है बल्कि अब ममता बनर्जी को सत्ता के मामले में भी टक्कर देती हुई नजर आ रही है.

अब ममता के लिए क्या है रास्ता ?

अगर एग्जिट पोल के ये आंकड़े चुनाव परिणाम में तब्दील हो जाते हैं तो जहां एक तरफ केंद्र में नरेंद्र मोदी और मजूबत होंगे वहीं राज्य में ममता बनर्जी की साख गिरेगी और उनका मोदी विरोध कमजोर पड़ जाएगा.  2021 में होने वाले राज्य के विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी की टीएमसी को बीजेपी से कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ेगा.

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चुनाव परिणाम अगर बीजेपी के पक्ष में जाता है तो दोनों पार्टियों में निश्चित तौर पर संघर्ष बढ़ेगा और राज्य में राजनीतिक हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हो सकती है. दूसरा रास्ता यह हो सकता है कि भविष्य की राजनीति में अपना वजूद बनाए रखने के लिए ममता बनर्जी बीजेपी के सामने हथियार डाल दे और वाजपेयी सरकार की तरह एक बार फिर एनडीए का हिस्सा बन जाएं.

ममता बनर्जी के पास एक रास्ता यह भी हो सकता है कि वो राज्य में आने वाले दिनों में कांग्रेस से गठबंधन कर पश्चिम बंगाल में बीजेपी के खिलाफ अपने तेवर को और कड़ा कर पूरी ताकत से विरोध में उतर आएं और राज्य से लगभग खत्म हो चुकी सीपीएम पार्टी भी अप्रत्यक्ष तौर पर उनका साथ दे.

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