
इलाहाबाद लोकसभा सीट पर बीजेपी ने योगी सरकार में मंत्री रीता बहुगुणा जोशी को मैदान में उतारा है, जो कभी कांग्रेस के टिकट पर किस्मत आजमा चुकी हैं. वहीं, कांग्रेस ने योगेश शुक्ला पर दांव लगाया है, जो मुरली मनोहर जोशी के बाद 2009 में बीजेपी से चुनाव मैदान में उतरे थे. इस तरह से इलाहाबाद की सियासी लड़ाई में चेहरे वही लेकिन जंग नई है.
इलाहाबाद लोकसभा सीट पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, जनेश्वर मिश्रा, मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनीतिक दिग्गजों के साथ-साथ अमिताभ बच्चन की कर्मभूमि रही है. इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से रीता बहुगुणा जोशी, बीजेपी से योगेश शुक्ला और सपा से राजेंद्र प्रताप सिंह पटेल उर्फ खरे यहां मैदान में हैं.
इस सीट पर कांग्रेस की हालत बेहद दिलचस्प है. 'बहुगुणा परिवार' की राजनीतिक विरासत को यूपी में संभाल रहीं रीता बहुगुणा जोशी और अशोक वाजपेयी कभी एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते थे. लेकिन आज दोनों ही नेता कांग्रेस छोड़कर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं. 2014 में इलाहाबाद सीट से कांग्रेस से चुनाव लड़ने वाले नंद गोपाल नंदी भी हाथ का साथ छोड़कर कमल थामकर योगी सरकार में मंत्री हैं.
रीता बहुगुणा जोशी के पिता हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. रीता खुद भी इलाहाबाद सीट से 1999 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव में किस्मत आजमा चुकी हैं. लेकिन वह यहां से जीतकर संसद नहीं पहुंच सकी हैं. हालांकि इलाहाबाद से मेयर का चुनाव जीतने में जरूर सफल रही थीं.
अशोक वाजपेयी की मां राजेंद्र कुमारी वाजपेयी भी केंद्रीय मंत्री और उपराज्यपाल रह चुकी हैं. अशोक वाजपेयी इलाहाबाद की सियासत में अच्छी खासी दखल रखते थे. मौजूदा समय में बीजेपी से राज्यसभा सदस्य हैं. वहीं, बसपा से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले नंदी भी कांग्रेस से होते हुए बीजेपी का दामन थामकर सूबे में मंत्री बने हुए हैं.
दूसरी ओर बीजेपी से अपनी राजनीतिक पारी शुरू करने वाले योगेश शुक्ला कांग्रेस में शामिल होकर चुनाव मैदान में उतरे हैं. योगेश शुक्ला 2009 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद सीट से बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन मुरली मनोहर जोशी की राजनीतिक विरासत को वह आगे नहीं बढ़ा सके. उन्हें सपा के रेवती रमण सिंह के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा. करीब 60 हजार वोटों से साथ वो तीसरे नंबर पर रहे. 25 साल से बीजेपी से जुड़े रहे योगेश शुक्ला इस बार टिकट की आस लगाए हुए थे. लेकिन पार्टी ने रीता बहुगुणा को मैदान में उतारा तो नाराज होकर उन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया.
वैसे योगेश शुक्ला के लिए इलाहाबाद में कांग्रेस की वापसी कराना आसान नहीं है. यहां कांग्रेस आख़िरी चुनाव 1984 में जीती थी, तब अमिताभ बच्चन ने लोकदल उम्मीदवार और रीता बहुगुणा जोशी के पिता हेमवती नंदन बहुगुणा को हराया था. हालांकि 1971 में बहुगुणा ने इलाहाबाद सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की थी.
बहुगुणा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके थे, कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते थे. बाद में कांग्रेस छोड़कर अलग हो गए. लेकिन 1989 का चुनाव उनकी पत्नी और रीता बहुगुणा की मां कमला बहुगुणा ने कांग्रेस पार्टी से लड़ा लेकिन वो जनता दल उम्मीदवार जनेश्वर मिश्र से हार गईं.
ऐसे में रीता बहुगुणा जोशी की चुनौती भी इतनी आसान नहीं है जितनी कि समझी जा रही है. महागठबंधन की ओर से सपा ने जहां कुर्मी प्रत्याशी के तौर पर राजेंद्र प्रताप सिंह पटेल को उतारा है, जिनके भतीजे प्रवीण पटेल फूलपुर सीट से बीजेपी के विधायक हैं. दलित, मुस्लिम, कुर्मी और यादव मतों को वह एकजुट करने में कामयाब रहते हैं और कांग्रेस के योगेश शुक्ला ब्राह्मण मतों में सेंधमारी करते हैं तो रीता की राह आसान नहीं होगी.
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