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अररिया लोकसभा सीट: आरजेडी के M-Y समीकरण की काट निकाल पाएगा एनडीए?

बिहार के सीमांचल क्षेत्र में स्थित अररिया मुस्लिम बहुल सीट है. यहां 45 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम और यादव मतदाता हैं. इस समीकरण की बदौलत आरजेडी की स्थिति यहां मजबूत है.

तेजस्वी यादव के साथ सरफराज आलम(File Photo) तेजस्वी यादव के साथ सरफराज आलम(File Photo)
संदीप कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 08 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 3:57 PM IST

बिहार में नेपाल की तराई से सटा हुआ अररिया जिला पहले पूर्णिया का हिस्सा था जिसे 1990 में जिला बना दिया गया. यह ज़िला प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की कर्मभूमि रहा है. 2001 की जनगणना के मुताबिक इस जिले की जनसंख्या 1587348 है. बाढ़ प्रभावित इस इलाके में रोजगार और नौकरी के लिए पलायन सबसे बड़ी समस्या है.

अररिया सीमांचल क्षेत्र का हिस्सा है और यह क्षेत्र मुस्लिम बहुल है. 45 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम और यादव मतदाता यहां हैं. मुस्लिम और यादव वोटों के समीकरण से यहां आरजेडी के तस्लीमुद्दीन ने 2014 में जीत हासिल की.

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2014 के लोकसभा चुनाव में अररिया सीट पर आरजेडी ने फतह हासिल की थी जब मोहम्मद तस्लीमुद्दीन ने बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह को हराया था. लेकिन तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद यह सीट खाली हो गई और मार्च 2018 में यहां उपचुनाव कराए गए. जिसमें आरजेडी के उम्मीदवार और तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम विजयी रहे. उपचुनाव में आरजेडी के सरफराज आलम ने बीजेपी के प्रदीप सिंह को 61,788 मतों के बड़े अंतर से हराया.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

इस सीट के इतिहास पर अगर नजर डालें तो 1967 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के तुलमोहन सिंह ने चुनाव जीता. इसके बाद फिर 1971 के चुनाव में भी वे विजयी रहे. 1977 में यहां से भारतीय लोक दल के महेंद्र नारायण सरदार विजयी रहे. इसके बाद 1980 और 1984 के चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के डुमर लाल बैठा के हाथ जीत लगी. इसके बाद के तीन चुनावों 1989, 1991 और 1996 में जनता दल के टिकट पर सुखदेव पासवान इस सीट से जीतकर दिल्ली गए. 1998 में बीजेपी के रामजी दास ऋषिदेव जीते. फिर 1999 के चुनाव में सुखदेव पासवान आरजेडी के टिकट पर जीते. लेकिन 2004 के चुनाव में सुखदेव पासवान बीजेपी के खेमे से उतरे और फिर इस सीट पर कब्जा किया.

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2009 के चुनाव में बीजेपी ने प्रदीप कुमार सिंह को उतारा और ये सीट जीतने में फिर कामयाब रही. 2014 के चुनाव में आरजेडी ने इस सीट से मोहम्मद तस्लीमुद्दीन को उतारा. मुस्लिम-यादव वोटों के समीकरण से तस्लीमुद्दीन इस सीट को जीतने में कामयाब रहे. उनके निधन के बाद फिर मार्च 2018 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमें आरजेडी के टिकट पर तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम बीजेपी-जेडीयू उम्मीदवार को हराने में कामयाब रहे.

इस सीट का समीकरण

अररिया सीट आजादी के बाद के शुरुआती दशकों में कांग्रेस का गढ़ बनी रही. इसके बाद जनता दल और फिर बीजेपी ने यहां से जीत हासिल की. वर्तमान हालात में एमवाई समीकरण के कारण आरजेडी की यहां काफी मजबूत स्थिति है. अररिया में वोटरों की कुल संख्या 1,311,225 है. इसमें से महिला मतदाता 621,510 और पुरुष मतदाता 689,715 हैं.

विधानसभा सीटों का समीकरण

अररिया लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं- नरपतगंज, रानीगंज(सुरक्षित), फारबिसगंज, अररिया, जोकिहाट और सिकटी. जिसमें से 4 पर NDA काबिज है वहीं 1 सीट कांग्रेस और एक आरजेडी के पास है.

2018 उपचुनाव का नतीजा

मार्च 2018 के उपचुनाव में अररिया लोकसभा सीट पर कुल सात उम्मीदवार चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे थे. लेकिन सीधा मुकाबला राष्ट्रीय जनता दल के सरफराज आलम और भाजपा-जेडीयू के संयुक्त उम्मीदवार प्रदीप सिंह के बीच माना जा रहा था. भाजपा के प्रदीप सिंह को 447546 वोट मिले और राजद प्रत्याशी सरफराज आलम को 509334 वोट मिले. सरफराज आलम 61788 वोटों से ये चुनाव जीत गए.

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2014 चुनाव का जनादेश

इससे पहले साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से दूरी बनाकर जेडीयू ने अकेले चुनाव लड़ा था. इन हालात में मोदी लहर के बावजूद तस्लीमुद्दीन चुनाव जीत गए थे. तस्लीमुद्दीन को 41 प्रतिशत वोट मिले थे. इस चुनाव में आरजेडी के तस्लीमुद्दीन को 407978, बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह को 261474, जेडीयू के विजय कुमार मंडल को 221769 और बीएसपी के अब्दुल रहमान को 17724 वोट मिले थे. वहीं, साल 2009 के लोकसभा चुनाव में 282742 वोट हासिल कर बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह जीते थे. एलजेपी के जाकिर हुसैन खान को 260240 और कांग्रेस के शकील अहमद खान को 49649 मत मिले थे.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

सरफराज आलम अररिया से आरजेडी के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे. वे आरजेडी के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के बेटे हैं. इससे पहले विधायक के रूप में सरफराज आलम सियासत में उतरे थे. साल 2000 में आरजेडी के टिकट पर और 2010 और 2015 में वे जेडीयू के टिकट पर जोकीहाट सीट से जीतकर बिहार विधानसभा पहुंचे थे. 2016 में उन्हें जेडीयू से सस्पेंड कर दिया गया. फरवरी 2018 में सरफराज आलम फिर आरजेडी में शामिल हो गए. मार्च 2018 में आरजेडी ने उनके पिता के निधन के बाद लोकसभा उपचुनाव में उतारा और अररिया से जीतकर सरफराज आलम लोकसभा के सदस्य बने. लोकसभा सदस्य के रूप में उन्होंने अबतक सदन में 10 सवाल पूछे हैं.

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