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2019 लोकसभा चुनाव की दशा और दिशा तय करेगा बिहार, समझें राज्य की सियासत को

देश की सियासत की दिशा और दशा तय करने में हर बार बिहार की बड़ी भूमिका रहती है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं यानी देश की कुल लोकसभा सीटों का तकरीबन 13 फीसदी बिहार से आता है. 2019 चुनाव से पहले भी बिहार की सियासत पर पूरे देश की नजर है. अ

तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव (फोटो-फाइल) तेजस्वी यादव, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव (फोटो-फाइल)
संदीप कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 22 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 11:55 AM IST

बिहार को देश का सियासी प्रयोगशाला ऐसे ही नहीं कहा जाता. देश की सियासत की दिशा और दशा तय करने में हर बार बिहार की बड़ी भूमिका रहती है. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं यानी देश की कुल लोकसभा सीटों का तकरीबन 13 फीसदी बिहार से आता है. 2019 चुनाव से पहले भी बिहार की सियासत पर पूरे देश की नजर है. अभी बाकी राज्यों में राजनीतिक पार्टियों के बीच समीकरण बने भी नहीं थे कि बिहार में चुनावी गठबंधनों की तैयारी सबसे पहले हो गई.

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जेपी की कर्मभूमि बिहार हर बार हर चुनाव में नए तेवर और कलेवर के साथ नई सियासी बयार लेकर आता है. आज बिहार का सियासी सीन भी पिछले चुनाव से बिल्कुल अलग है. सभी दल दो खेमों में बंट चुके हैं. सीधी लड़ाई एनडीए बनाम महागठबंधन के बीच है. सबके अपने सियासी गुणागणित और समीकरण सेट हैं.

खिंची गठबंधनों की लकीर

2019 चुनाव के लिए बिहार में सियासी खेमेबंदी काफी रोचक है. एक तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए जिसमें बीजेपी-जेडीयू और रामविलास पासवान की लोजपा शामिल हैं तो दूसरी ओर महागठबंधन जिसमें राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी, कांग्रेस, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी और जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा शामिल हैं.

2014 से एकदम बदल गए समीकरण

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. 2014 के चुनाव में एनडीए में शामिल दलों में से बीजेपी ने 22, रामविलास पासवान की लोजपा ने 6, आरएलएसपी ने 3 सीटें जीती थीं. मतलब 40 में से एनडीए के खाते में 31 सीटें आई थीं. नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री उम्मीदवारी के बीजेपी के ऐलान के खिलाफ तब नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़ विपक्षी महागठबंधन का हाथ थामा था लेकिन मोदी लहर में सबकुछ बह गया. जेडीयू को 2, आरजेडी को 4, कांग्रेस को 2 और एनसीपी ने बस 1 सीट पर जीत हासिल की थी.

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वहीं, वोट शेयर की बात करें तो बीजेपी को 29.4 फीसदी, लोजपा को 6.4 फीसदी, राष्ट्रीय जनता दल को 6.4 फीसदी, जेडी-यू को 15.8 फीसदी, आरएलएसपी को 3 फीसदी, एनसीपी को 1.2 फीसदी और कांग्रेस को 8.4 फीसदी वोट हासिल हुए थे.

किसका गणित किसपर भारी

हालांकि, 2019 चुनाव से पहले गठबंधनों के समीकरण बदल गए हैं. इस बार एनडीए में बीजेपी, जेडीयू और लोजपा शामिल हैं. जेडीयू और बीजेपी 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इसके अलावा एलजेपी के हिस्से में छह सीटें आई हैं. वहीं महागठबंधन में आरजेडी, कांग्रेस, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी और जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा एक साथ हैं. गठबंधनों का ये बदला हुआ समीकरण न सिर्फ बिहार की बल्कि पूरे देश की सियासत की बदली हुई तस्वीर को प्रस्तुत करता है.

हर बार सियासी पाले बदले और खेल भी बदलता गया

बिहार में बदलते सियासी पाले से काफी कुछ तय होता है. आज भले ही नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू आरजेडी के खिलाफ और बीजेपी के साथ हैं लेकिन 2009 के चुनाव में नीतीश कुमार एनडीए के पाले में थे. इस चुनाव में बीजेपी-जेडीयू को 32 सीटें मिली थीं. जबकि आरजेडी को 4 और कांग्रेस को 2 सीटें हीं मिल सकी थीं. दो सीटें अन्य के खाते में गईं थीं.

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इसी तरह 2004 का चुनाव लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी और कांग्रेस मिलकर लड़ीं थीं और 40 में से 29 लोकसभा सीट जीतने में कामयाब रहे थे. दूसरी ओर बीजेपी-जेडीयू को 11 सीटें मिली थीं.

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