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सीवान लोकसभा सीट: शहाबुद्दीन फिर बनेंगे बीजेपी के लिए 'ट्रंप' कार्ड!

राजनीति में एमए और पीएचडी करने वाले शहाबुद्दीन ने बाहुबल के जरिए सीवान में अपना दबदबा कायम किया. तब माना गया कि सीवान में नक्सलवाद के बढ़ते प्रभाव के डर से हर वर्ग और जाति के लोगों ने शहाबुद्दीन को समर्थन किया.

बाहुबली शहाबुद्दीन का सीवान में रहा है दबदबा बाहुबली शहाबुद्दीन का सीवान में रहा है दबदबा
संदीप कुमार सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 14 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 4:32 PM IST

सीवान बिहार का एक ऐसा हाईप्रोफाइल संसदीय सीट है जिसके नतीजों पर पूरे देश की निगाह रहती है. कारण है इस सीट का बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन का मजबूत गढ़ होना.

सीवान बिहार के सारण प्रमंडल के अंतर्गत एक जिला तथा शहर है. इसके उत्तर में बिहार का गोपालगंज जिला और पूर्व में बिहार का सारण जिला स्थित है तो दक्षिण में उत्तर प्रदेश का देवरिया और पश्चिम में बलिया जिला स्थित है. सीवान देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की जन्मस्थली भी है.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि

एक समय सीवान पूर्व सांसद जर्नादन तिवारी के नेतृत्व में जनसंघ का गढ़ हुआ करता था. लेकिन 1980 के दशक के आखिर में मोहम्मद शहाबुद्दीन के उदय के बाद जिले की सियासी तस्वीर बदल गई. बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन 1996 से लगातार चार बार सांसद बने. राजनीति में एमए और पीएचडी करने वाले शहाबुद्दीन ने बाहुबल के जरिए सीवान में अपना दबदबा कायम किया. तब माना गया कि सीवान में नक्सलवाद के बढ़ते प्रभाव के डर से हर वर्ग और जाति के लोगों ने शहाबुद्दीन को समर्थन किया.

लेकिन सीवान के चर्चित तेजाब कांड के मामले में शहाबुद्दीन को उम्र कैद की सजा होने के बाद यहां की सियासी तस्वीर में बड़ा बदलाव देखने को मिला. शहाबुद्दीन के जेल जाने के बाद यहां ओमप्रकाश यादव का उभार हुआ. 2009 में पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ओमप्रकाश यादव चुनाव जीत गए और शहाबुद्दीन के प्रभाव को चुनौती देते हुए नजर आए. 2014 में ओमप्रकाश यादव बीजेपी के टिकट पर दोबारा जीते.

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सीवान संसदीय सीट के इतिहास पर अगर गौर करें तो 1957 के चुनाव में सीवान सीट से कांग्रेस के झूलन सिंह विजयी रहे. इसके बाद 1962, 1967, 1971 और 1980 के चुनाव में कांग्रेस के मोहम्मद युसूफ यहां से चुनकर संसद गए. 1984 में कांग्रेस के मोहम्मद गफूर चुनाव जीतकर दिल्ली गए. 1989 के चुनाव में बीजेपी ने सीवान से अपना खाता खोला और जर्नादन तिवारी लोकसभा पहुंचे. 1991 में जनता दल के बृष्ण पटेल यहां से सांसद बने.

1996 के चुनाव में सीवान संसदीय सीट के इतिहास में शहाबुद्दीन की एंट्री हुई. जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे बाहुबली शहाबुद्दीन ने बीजेपी के जर्नादन तिवारी को करारी शिकस्त दी. इसके बाद जब लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर आरजेडी बनाई तो शहाबुद्दीन ने 1996, 1999 और 2004 का चुनाव आरजेडी के टिकट पर जीता. इसके बाद शहाबुद्दीन को तेजाब कांड में सजा हो गई और चुनाव लड़ने पर रोक लग गई. यहीं से सीवान सीट पर ओमप्रकाश यादव की किस्मत खुली. अगले दो चुनाव यानी 2009 में निर्दलीय और 2014 में बीजेपी के टिकट पर ओमप्रकाश यादव ने शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब को हराकर चुनाव जीता.

इस सीट का समीकरण

बता दें कि 2014 लोकसभा चुनाव में कुल वोटर्स 15,63,860 वोटर्स थे. इनमें से 8,84,021 वोटर्स वोट देने के लिए मतदान केंद्र तक पहुंचे थे.

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विधानसभा सीटों का समीकरण

सीवान संसदीय क्षेत्र के तहत 6 विधानसभा सीटें आती हैं- सीवान, जीरादेई, दरौली, रघुनाथपुर, दरौंदा और बरहड़िया. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में इन 6 में तीन सीटों पर जेडीयू के उम्मीदवार जीते. जबकि एक-एक सीट बीजेपी-आरजेडी और सीपीआई(ML)(L) के खाते में गईं.

2014 चुनाव का जनादेश

अगर 2014 के चुनाव की बात करें तो सीवान के सांसद ओमप्रकाश यादव को 3,72,670 वोट मिले थे. उन्‍होंने राजद की हीना शहाब को 1 लाख 13 हजार वोटों से हराया. राजद प्रत्‍याशी हीना शहाब को 2,58,823 वोट मिले थे. वहीं सीपीआई माले के अमरनाथ यादव ने 81 हजार वोट और जेडीयू के मनोज सिंह ने 79,239 वोट हासिल किए.

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

सीवान के सांसद ओमप्रकाश यादव बीएससी तक पढ़ाई किए हुए हैं. वे सीवान से दो बार चुनकर संसद गए. 16वीं लोकसभा के दौरान उन्होंने 48 बहसों में हिस्सा लिया. विभिन्न मुद्दों पर 18 प्राइवेट मेंबर बिल वे संसद में लेकर आए. 5 साल में संसद के पटल पर जनता से जुड़े 335 सवाल उन्होंने पूछे.

इन आरोपों से घिरे हैं सांसद

सीवान के सांसद ओमप्रकाश यादव सोलर घोटाले के आरोप से घिरे हैं. दरअसल, 2017 में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था. इसमें बताया गया था कि सांसद ओमप्रकाश यादव की दूसरे राज्य में सोलर कंपनी है. उसी से खरीदारी कर अपने संसदीय क्षेत्र में सोलर लाइट सांसद निधि से लगवा रहे हैं. हालांकि इन आरोपों पर सांसद बार—बार सफाई भी देते रहे हैं लेकिन विरोधियों के लिए 2019 में यह अहम मुद्दा बन सकता है. वहीं दस सालों से सांसद ओमप्रकाश यादव के खिलाफ इलाके में एंटी इनकंबेंसी का माहौल भी है.

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