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2014 के मेनिफेस्टो में BJP ने इकोनॉमी पर किए थे ये वादे, कितने हुए पूरे?

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले यूपीए सरकार के दौर में पॉलिसी पैरालिसिस और भ्रष्टाचार की खबरों का बोलबाला था. ऐसे में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में अर्थव्यवस्था में बदलाव के लिए कई बड़े वादे किए थे. आइए जानते हैं कि इनमें से कितने वादे पूरे हुए.

नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था में बदलाव के लिए कई बड़े वादे किए थे नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था में बदलाव के लिए कई बड़े वादे किए थे
दिनेश अग्रहरि
  • नई दिल्ली,
  • 08 अप्रैल 2019,
  • अपडेटेड 11:02 AM IST

पांच साल पहले जब बीजेपी लोकसभा चुनाव 2014 के लिए अपना घोषणापत्र लेकर आई तो उसे कारोबार और उद्योग जगत के लिए काफी अनुकूल माना जा रहा था. कारोबार जगत को मोदी सरकार से काफी उम्मीदें भी थीं. इस मेनिफेस्टो में बीजेपी ने भारत दुनिया की एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने और रोजगार बढ़ाने जैसे तमाम वादे किए थे. आज पांच साल बाद जब बीजेपी 2019 के लिए घोषणापत्र जारी कर रही है तो इस बात की समीक्षा करते हैं कि उसने इनमें से कौन से आर्थ‍िक वादे पूरे किए.

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महंगाई पर अंकुश

यूपीए सरकार के कार्यकाल में देश में महंगाई चरम पर पहुंच गई थी. इसलिए बीजेपी का सबसे बड़ा वादा यह भी था कि सरकार बनने के बाद वह महंगाई पर नियंत्रण करेगी. बीजेपी ने कहा था कि जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाएगा. तमाम अनुकूल परिस्थ‍ितियों और सरकारी प्रयास की वजह से इसमें सफलता भी मिली है. थोक मूल्य आधारित सालाना महंगाई दर फरवरी 2019 में महज 2.93 फीसदी थी. हालांकि, विशेष अदालतों का गठन नहीं हो पाया है.

नौकरियां ही नौकरियां

बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में युवाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार देने का वादा किया था. बीजेपी ने कहा था कि श्रम आधारित मैन्युफैक्चरिंग और टूरिज्म को बढ़ावा देकर रोजगार बढ़ाने की कोशि‍श की जाएगी. एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंजों को रोजगार केंद्रों में बदलने की बात कही गई थी. स्टार्ट अप इंडिया, मुद्रा लोन, स्किल इंडिया जैसी योजनाओें से युवाओं में रोजगार के अवसर बढ़ाने के प्रयास किए गए हैं. लेकिन रोजगार के मोर्चे पर मोदी सरकार को सबसे ज्यादा आलोचना का शिकार होना पड़ा. विपक्ष रोजगार के मोर्चे पर सरकार पर सबसे ज्यादा हमलावर रहा. मोदी सरकार पर आंकड़े छिपाने के आरोप लगे. देश में जॉबलेस ग्रोथ होने यानी अर्थव्यवस्था में तरक्की के बावजूद रोजगार में खास बढ़त न होने के आरोप लगे.  

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कालाधन वापस लाएंगे

बीजेपी ने वादा किया था कि देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा और काले धन को वापस लाया जाएगा. बीजेपी ने ऐसा तंत्र बनाने का वादा किया था, जिससे भ्रष्टाचार करने की गुंजाइश ही न रहे. बीजेपी ने कहा था कि वह विदेशी बैंको में जमा काला धन वापस लाने के लिए वह प्रतिबद्ध है और इसे प्रतिबद्धता के आधार पर किया जाएगा. काला धन वापस लाने के लिए एक टास्क फोर्स बनाने का वादा किया गया था. ऑपरेशन क्लीन मनी, नोटबंदी, बेनामी कानून में बदलाव आदि से देश में काले धन पर अंकुश के लिए सरकार के तमाम प्रयास सफल रहे हैं. सरकार बनते ही एक टास्क फोर्स का गठन भी कर दिया गया था, लेकिन विदेश से काला धन लाने में अभी कुछ खास सफलता नहीं मिल पाई है.

एनपीए में कमी लाएंगे

साल 2014 के अपने घोषणापत्र में बीजेपी ने कहा था कि वह ऐसे कदम उठाएगी जिससे बैंकों के एनपीए में कमी आए. लेकिन इस मोर्चे पर सरकार को विफल कहा जा सकता है. बैंकों का एनपीए लगातार बढ़ रहा है. साल 2014 में देश में बैंकों का कुल एनपीए 2.92 लाख करोड़ रुपये का था. सितंबर 2016 में सभी बैंको का कुल एनपीए 7.07 लाख करोड़ रुपये था. मार्च 2018 तक देश के सभी बैंकों का कुल एनपीए 10 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया था. हालांकि सितंबर 2018 तक यह थोड़ा घटकर 9.99 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा. सरकार ने बैड लोन के मामले में रिजर्व बैंक को दखल देने के लिए ज्यादा अधिकार दिए हैं और बैंकों के बहीखाते को दुरुस्त करने के लिए साल 2017 में करीब 32 अरब डॉलर का रीकैपिटलाइजेशन प्लान मंजूर किया गया.

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कर व्यवस्था और जीएसटी

बीजेपी ने साल 2014 के अपने घोषणापत्र में कहा था कि यूपीए के टैक्स आतंक से व्यापारी वर्ग में हताशा आई है और निवेश के वातावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. बीजेपी सभी राज्य सरकारों को जीएसटी के लिए तैयार करेगी और जीएसटी को प्रभावी तरीके से लागू करेगी. बीजेपी ने इस वादे को पूरा भी किया है. देश में जीएसटी को प्रभावी तरीके से लागू किया गया है और इससे पूरे देश में एक टैक्स प्रणाली लागू हो गई है. हालांकि, इसकी दरों में बदलाव और तर्कसंगतता को लेकर विपक्ष सरकार की आलोचना भी करता रहा है. यह भी आरोप लगाया जाता है कि सरकार ने बिना खास तैयारी के अचानक जीएसटी लागू कर दिया जिससे व्यापारी वर्ग को काफी परेशानी हुई.

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई के मोर्चे पर बीजेपी ने 2014 के घोषणापत्र में कहा था कि एफडीआई केवल उन्हीं क्षेत्रों में लाया जाएगा, जहां नौकरी और पूंजी का निर्माण हो. जहां आधारभूत ढांचे के लिए तकनीकी और विशेषज्ञ ज्ञान की जरूरत हो. यह कहा गया कि बीजेपी छोटे और मझोले दुकानदारों के हितों का ध्यान रखेगी. बीजेपी सरकार ने रक्षा, विमानन और ई-कॉमर्स के क्षेत्र में 100 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी दी है. फार्मा में 74 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी दी गई है.

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पूर्व यूपीए सरकार के कार्यकाल में मल्टी-ब्रांड रिटेल में एफडीआई का रास्ता खोलने का फैसला हुआ. इस फैसले के विरोध में तब विपक्ष में बैठी एनडीए ने यूपीए सरकार पर मल्टीनेशनल कंपनियों के दबाव में आने का आरोप लगाया था. लेकिन सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार ने सिंगल ब्रांड रिटेल में 100 फीसदी एफडीआई को मंजूरी दे दी. मल्टी ब्रांड के क्षेत्र में किसी भारतीय रिटेल कंपनी में अधिकतम 51% एफडीआई की अनुमति है. निर्माण क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश को मंजूरी दे दी गई. इसके अलावा सरकार ने एयर इंडिया में भी 49 फीसदी एफडीआई की मंजूरी देकर इसके निजीकरण का रास्ता खोल दिया.

स्वदेशी, मेक इन इंडिया और ब्राण्ड इंडिया

स्वेदशी, ब्राण्ड इंडिया और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए बीजेपी ने घोषणापत्र में वादा किया था कि व्यापार के लिए बेहतर वातावरण बनाया जाएगा और लाल फीताशाही को कम किया जाएगा. पर्यावरण मंजूरी की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की बात की गई थी. विनिर्माण को शक्तिशाली बनाकर मांग-आपूर्ति के बीच खाई को पाटने की बात कही गई थी. भारत को विनिर्माण का केंद्र बनाने का वादा किया गया था. राज्य व केंद्र स्तर पर सिंगल विंडो सिस्टम लाने की बात कही गई थी. इन प्रयासों में बीजेपी सरकार को काफी हद तक कामयाबी मिली है.

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पीएम मोदी ने शपथ ग्रहण करने के कुछ ही महीनों बाद सितंबर 2014 में मेक इन इंडिया पहल की शुरुआत की. इसका लक्ष्य भारत को डिजाइन एवं मैन्यफैक्चरिंग का वैश्विक हब बनाना था. इस योजना के लॉन्च होने के बाद भारत को सितंबर 2014 से फरवरी 2016 के बीच ही 16.40 लाख करोड़ रुपये के निवेश की प्रतिबद्धता मिली है. साल 2015 में भारत एफडीआई के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया था. मेक इन इंडिया की वजह से ही साल 2017-18 में भारत में आने वाला एफडीआई बढ़कर 62 अरब डॉलर तक पहुंच गया. एक अनुमान के अनुसार, मेक इन इंडिया की वजह से 2014 से 2018 के बीच घरेलू मोबाइल हैंडसेट और कम्पोनेंट मैन्युफैक्चररर्स का करीब 3 लाख करोड़ रुपये बचा है जो पैसा उन्हें विदेश भेजना पड़ता.

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