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जीतन राम मांझी: क्या इस चुनाव में मांझी अपनी नैया लगा पाएंगे पार

जीतन राम मांझी महागठबंधन के दलित चेहरे के तौर पर अपनी जगह बनाई है. जीतन राम मांझी इस बार गया सुरक्षित सीट से चुनावी मैदान में हैं और उनका मुकाबला जेडीयू उम्मीदवार विजय कुमार मांझी से है.यानि कि इस बार मुकाबला मांझी बनाम मांझी का है.

जीतन राम मांझी जीतन राम मांझी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 10 अप्रैल 2019,
  • अपडेटेड 4:21 PM IST

बिहार की गया लोकसभा सीट पर इस बार मांझी बनाम मांझी के बीच चुनावी मुकाबला है. गया सुरक्षित सीट पर महागठबंधन की ओर से हिदुस्तान आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मैदान में हैं और उनका मुकाबला एनडीए की ओर से जेडीयू उम्मीदवार विजय कुमार मांझी के से है.

जीतन राम मांझी महागठबंधन के दलित चेहरे के तौर पर अपनी जगह बनाई है. मजदूरी से जिंदगी के सफर की शुरुआत कर डाक विभाग में में क्लर्क बने और राजनीति के मैदान में उतरकर सूबे की कमान तक संभाली. जीतन राम मांझी बिहार की सियासत में एक जाना पहचाना नाम बन चुके हैं.

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80 के दशक में राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाले जीतन राम मांझी कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू की राज्य सरकारों में मंत्री का पद संभाल चुके हैं. छह बार विधायक रहे मांझी पहली बार कांग्रेस की चंद्रशेखर सिंह सरकार में 1980 में मंत्री बने थे और उसके बाद बिंदेश्वरी दुबे की सरकार में मंत्री रहे. इसके बाद नीतीश सरकार में मंत्री बने और 2014 के बाद मांझी मुख्यमंत्री बने.

बिहार के गया जिला के खिजरसराय के महकार गांव के मुसहर जाति में जीतन राम मांझी का जन्म हुआ. मुसहर जाति के लोग चूहा पकड़ने और उन्हें खाने के लिए जाने जाते हैं. उनके पिता रामजीत राम मांझी एक खेतिहर मजदूर थे. जीतन राम मांझी को भी बचपन में जमीन मालिक द्वारा खेतों में काम पर लगा दिया जाता था, लेकिन उनके मन में ललक ने उन्हें काबिल बनाया.

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गरीब परिवार से आने वाले मांझी को 1968 में डाक एवं तार विभाग में लिपिक की नौकरी मिली ,लेकिन 1980 में वे नौकरी छोड़कर कांग्रेस पार्टी के उस आंदोलन का हिस्सा बन गए, जिसमें 'आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे' में शामिल हो गए. इसके बाद 1980 में पहला चुनाव लड़ा और जीतकर मंत्री बने. इसके बाद मांझी को अपने राजनीतिक जीवन में कई उतार-चढाव का सामना करना पड़ा था.

इसके बाद राबड़ी देवी की सरकार में मंत्री बने और फिर नीतीश का दामन थाम लिया और उनके करीबी बन गए. इसी का नतीजा है कि नीतीश ने जब सीएम के पद से इस्तीफा दिया देकर अपनी कुर्सी उन्हें सौंपी. हालांकि जब नीतीश ने बाद में उनसे इस्तीफा देने के लिए कहा तो वो चुनौती बनकर उनके सामने खड़े हो गए. इस बार के सियासी संग्राम में नीतीश कुमार की पार्टी के खिलाफ ही चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं.

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