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लखनऊ लोकसभा सीट: अटल की सियासी विरासत पर किसकी चलेगी सियासत

देश की हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सीट का भी नाम आता है. बीजेपी की ओर से पहले प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी की भी राजनीतिक कर्मभूमि रही है. सपा और बसपा इस सीट पर आज तक अपना खाता भी नहीं खोल सकी हैं.

राजनाथ सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी (फोटो-getty image) राजनाथ सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी (फोटो-getty image)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 14 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 7:47 AM IST

देश की हाई प्रोफाइल लोकसभा सीटों में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सीट का भी नाम आता है. गोमती के किनारे बसे लखनऊ को नवाबों का शहर कहा जाता है. मान्यता है कि इसे भगवान राम के अपने छोटे भाई लक्ष्मण ने बसाया था तो कुछ लोग इसे लखन पासी के शहर के तौर पर भी जानते हैं. यहां की दशहरी आम और चिकन की कढ़ाई और लखनऊ का गलावटी कबाब मशहूर है.

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बीजेपी की ओर से पहले प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी की भी राजनीतिक कर्मभूमि रही है. सपा और बसपा इस सीट पर आज तक अपना खाता भी नहीं खोल सकी हैं. यहां पर 1991 से लगातार बीजेपी का कब्जा है. मौजूदा समय में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह लखनऊ से सासंद है.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

आजादी के बाद लखनऊ संसदीय सीट पर कुल 16 बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. इनमें सबसे ज्यादा 7 बार बीजेपी और 6 बार कांग्रेस जीत हासिल की है. इसके अलावा जनता दल, भारतीय लोकदल और निर्दलीय ने एक-एक बार जीत दर्ज की है.

लखनऊ लोकसभा सीट पर पहली बार 1952 में चुनाव हुए तो कांग्रेस से शिवराजवती नेहरू जीतकर पहली बार सांसद बनने का गौरव हासिल किया. इसके बाद कांग्रेस ने लगातार तीन बार जीत हासिल की, लेकिन 1967 में हुए आम चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार आनंद नारायण ने जीत का परचम लहराया. इसके बाद 1971 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस की शीला कौल सांसद बनी.

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आपातकाल के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में हेमवती नंदन बहुगुणा भारतीय लोकदल से जीतकर संसद पहुंचे. हालांकि 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर शीला कौल को यहां से चुनावी मैदान में उतारकर वापसी की. वह 1984 में चुनाव जीतकर तीसरी बार सांसद बनने में कामयाब रहीं. 1989 में कांग्रेस की हाथों से जनता दल के मानधाता सिंह ने यह सीट ऐसा छीना कि फिर दोबारा कांग्रेस यहां से वापसी नहीं कर सकी.

90 के दशक में बीजेपी के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने लखनऊ संसदीय सीट से मैदान में उतरकर जीत का जो सिलसिला शुरू किया थो फिर वो थमा नहीं. पिछले सात लोकसभा चुनाव से बीजेपी लगातार जीत दर्ज कर रही है. अटल बिहारी वाजपेयी लगातार पांच बार सांसद चुने गए. इसके बाद 2009 में उनकी राजनीतिक विरासत संभालने के लिए  लालजी टंडन को बीजेपी ने मैदान में उतारा तो उन्होंने जीत दर्ज की. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने किस्मत आजमाई और उन्होंने कांग्रेस की रीता बहुगुणा को करारी मात देकर लोकसभा पहुंचे.

सामाजिक ताना-बाना

लखनऊ लोकसभा सीट पर 2011 के जनगणना के मुताबिक कुल जनसंख्या 23,95,147 है. इसमें 100 फीसदी शहरी आबादी है. लोकसभा सीट पर 2017 के मुताबिक 19,49,226 मतदाता और 1,748 मतदान केंद्र हैं. अनुसूचित जाति की आबादी 9.61 फीसदी हैं और अनुसूचित जनजाति की आबादी 0.02 फीसदी है. इसके अलावा ब्राह्मण और वैश्य मतदाता निर्णयक भूमिका में है. जबकि 21 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है.

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लखनऊ लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य और लखनऊ कैंट विधानसभा सीट शामिल है. पांचों विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है.

2014 का जनादेश

2014 के लोकसभा चुनाव में लखनऊ संसदीय सीट पर 53.02  फीसदी मतदान हुए थे. इस सीट पर बीजेपी के राजनाथ सिंह ने कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को 2 लाख 72 हजार 749 वोटों से मात देकर जीत हासिल की थी.

बीजेपी के राजनाथ सिंह को 5,61,106 वोट मिले

कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को 2,88,357 वोट मिले

बसपा की निखिल दूबे को  64,449 वोट मिले

सपा के अभिषेक मिश्रा को 56,771  वोट मिले

सांसद का रिपोर्ट कार्ड

गृह मंत्री राजनाथ सिंह 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही केंद्रीय मंत्री बने हुए हैं, ऐसे में बतौर मंत्री उनकी उपस्थिति दर्ज नहीं है.

सांसद निधि से खर्च का सवाल है तो राजनाथ सिंह ने पांच साल में मिले 25 करोड़ सांसद निधि में से 17.42 करोड़ रुपये विकास कार्यों पर खर्च किया है. इस तरह से वह करीब 70 फीसदी सांसद निधि खर्च कर सके हैं.

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