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MP: लोकसभा चुनाव से पहले सवर्णों को साधने में जुटी बीजेपी, ओबीसी वोटों पर कांग्रेस का फोकस

लोकसभा चुनाव के लिए विधानसभा चुनाव में हार से सबक लेते हुए बीजेपी ने सवर्ण समुदाय के लिए 10 फीसदी का दांव चला है. वहीं,  कांग्रेस अपने राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने के लिए बीजेपी के परंपरागत ओबीसी वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए आरक्षण के दायरे को दोगुना करने का ऐलान कर दिया है.

मध्य प्रदेश सीएम कमलनाथ (फोटो-PTI) मध्य प्रदेश सीएम कमलनाथ (फोटो-PTI)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 08 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 8:31 AM IST

लोकसभा चुनाव 2019 से ठीक पहले मध्य प्रदेश की सियासत आरक्षण के इर्द-गिर्द घूमने लगी है. विधानसभा चुनाव में हार से सबक लेते हुए बीजेपी ने सवर्ण समुदाय के लिए 10 फीसदी का दांव चला है. जबकि कांग्रेस अपने राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने के लिए बीजेपी के परंपरागत वोटबैंक को अपने पाले में लाने की कवायद में जुटी है. दलित और आदिवासियों को जोड़ने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ओबीसी समुदाय को साधने के लिए उनके आरक्षण के दायरे को दोगुना करने का ऐलान कर दिया है.

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मध्य प्रदेश में ओबीसी समुदाय की आबादी करीब 52 फीसदी है, जिसे 14 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. कांग्रेस ने चुनाव से ऐन पहले ओबीसी का आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने की बात कही है. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पहले भोपाल में पार्टी के ओबीसी सम्मेलन में 27 फीसदी आरक्षण देने का ऐलान किया है. इसके बाद बुधवार को सागर की शासकीय बैठक में कमलनाथ ने फिर इसी बात को दोहराया.

दरअसल मध्य प्रदेश में बीजेपी दलित, आदिवासियों और ओबीसी को साधकर 15 साल तक सत्ता पर काबिज रही है. लेकिन पिछले साल आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी के परंपरागत वोटबैंक में कांग्रेस सेंधमारी करने में कामयाब रही थी. दलित और आदिवासी बहुल सीटों पर बीजेपी का सफाया हो गया.

हालांकि बीजेपी ओबीसी बहुल सीटों को बचाने में काफी हद तक कामयाब रही. लेकिन लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कमलनाथ ने ओबीसी आरक्षण का दांव चलकर बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. कांग्रेस का तर्क है कि शिवराज सिंह चौहान ओबीसी होते हुए भी ओबीसी के आरक्षण के दायरे को नहीं बढ़ा सके हैं. जबकि मध्य प्रदेश में ओबीसी समुदाय अपने आरक्षण के दायरे को बढ़ाने की मांग लंबे समय से करता रहा है.

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कमलनाथ ने ओबीसी आरक्षण के साथ ही ये भी घोषणा की है कि राज्य सरकार सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान भी लागू करेगी. कमलनाथ ने कहा कि उनकी सरकार समाज में सभी वर्गों को आगे बढ़ने के अवसर देना चाहती है.

दरअसल, पिछले साल आखिर में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार की मुख्य वजह सवर्ण समुदाय की नाराजगी को माना गया था. ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले गरीब सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण का ऐलान कर सियासत का मास्टर स्ट्रोक चला.

कांग्रेस ने बीजेपी के इस दांव का काट तलाश ली है. बीजेपी ने जहां गरीब सवर्णों को 10  आरक्षण देने का कानून बनाया वहीं कांग्रेस ने अपने ओबीसी चेहरों के जरिए ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की चाल चल दी. .

जबकि, मध्य प्रदेश बिजेपी पिछड़ा वर्ग मोर्चा के अध्यक्ष भगत सिंह कुशवाह ने आरोप लगाया कि 'कमलनाथ और कांग्रेस सरकार की नीयत में खोट है, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा लागू गरीब सवर्णों के आरक्षण को लटकाने की कमलनाथ सरकार ने कोशिश तो की लेकिन दबाव पड़ने के बाद गरीब सवर्णो के आरक्षण को लागू करने की घोषणा कर दी है.

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गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में रामजी महाजन आयोग ने साल 1998 में पिछड़ा वर्ग को 14 फीसदी के बजाय 27 फीसद आरक्षण देने की सिफारिश की थी, लेकिन इसके खिलाफ लोग अदालत चले गए और यह सिफारिश आज तक लागू नहीं हो सकी. सूबे में मौजूदा समय में अनुसूचित जाति को 16, जनजाति को 20 और पिछड़ा वर्ग को 14 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा है.  इस तरह तीनों वर्गो को मिलाकर 50 फीसद आरक्षण पहुंच रहा है. लेकिन मोदी सरकार ने 10 फीसद गरीब सवर्ण समुदाय को आरक्षण देकर इस दायरे को बढ़ा दिया है. यही वजह है कि अब कमलनाथ ने ओबीसी के दायरे को दोगुना करना का फैसला किया है.

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