
पश्चिम बंगाल में मालदा जिले की दोनों संसदीय सीटें उत्तर और दक्षिणी मालदा लोकसभा सीटें आगामी चुनावों में सबसे ज्यादा चर्चा के केंद्र में रहने वाली हैं. मुस्लिम बहुल इस इलाके में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अपनी सक्रियता दिखा रही है. 22 जनवरी 2019 को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की मालदा में आयोजित रैली इसकी एक बानगी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी बंगाल की जिन सीटों पर फोकस कर रही है, उनमें से ज्यादातर सीटें उत्तर बंगाल, दक्षिण बंगाल और जंगलमहल के जनजातीय वर्चस्व वाले जिले की हैं. बीजेपी मुख्य रूप से बालुरघाट, कूच बिहार, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, पुरुलिया, झारग्राम, मेदिनीपुर, कृष्णानगर, हावड़ा सीट पर फोकस कर रही है. इनमें मालदा जिला भी शामिल है.
राजनीतिक तस्वीर
साल 2009 में हुए परिसीमन में मालदा लोकसभा सीट दो हिस्सों में बंट गई. इनमें एक मालदा उत्तर लोकसभा सीट और दूसरी मालदा दक्षिण लोकसभा सीट बनीं. इस सीट पर ज्यादातर समय कांग्रेस का कब्जा रहा है. पहले लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक दो बार ही ऐसे मौके आए जब इस सीट पर माकपा के उम्मीदवार जीतने में कामयाब रहे. 1971 और 1977 के आम चुनावों माकपा के दिनेश चंद्र जोरदार लगातार चुनाव जीतते रहे.
पहले लोकसभा चुनाव 1951 में कांग्रेस के टिकट पर सुरेंद्र मोहन घोष चुनाव जीते थे. उनके बाद 1957 और 1962 के चुनावों में कांग्रेस से रेणुका राय चुनाव जीतीं. 1967 के चुनाव में कांग्रेस ने यू. रॉय को मैदान में उतारा जिन्होंने जीत हासिल की. 1971 और 1977 में कांग्रेस इस सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी. इसके बाद ए.बी.ए. घनी खान चौधरी 1980, 1984, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 तक लगातार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतते रहे. वह यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे. 2005 में उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के अबु हसेम खान चौधरी ने जीत हासिल की थी.
आम, जूट और सिल्क के उत्पादन के लिए मशहूर मालदा पर इसलिए भी सबकी निगाहें होंगी क्योंकि इस क्षेत्र में बीजेपी, वाम मोर्चे के साथ तृणमूल कांग्रेस की भी नजर है. असल में, मालदा लंबे समय से कांग्रेस का गढ़ बना हुआ है, जहां न लेफ्ट दलों का जोर चलता है और न ही पश्चिम बंगाल में मजबूत होने के बावजूद तृणमूल का वहां जादू चल पा रहा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 2011 से पश्चिम बंगाल की सत्ता में हैं, लेकिन मालदा की सियासत में उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को जगह नहीं मिल सकी है. पश्चिम बंगाल का मालदा जिला बांग्लादेश की सीमा से सटा हुआ है, जहां आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है.
वर्ष 1980 से 2005 तक गनी खान चौधरी मालदा इलाके से चुनकर लोकसभा पहुंचते रहे हैं. 2005 में चौधरी के निधन के बाद से उनका परिवार यहां काबिज है. मालदा जिले में दो लोकसभा सीटें हैं. इनमें एक उत्तर मालदा सीट, जहां से गनी खान चौधरी की भतीजी मौसम नूर कांग्रेस से सांसद हैं और दूसरी, दक्षिण मालदा सीट से उनके भाई अबु हासेमखान चौधरी कांग्रेस से सांसद हैं. हालांकि 2009 के लोकसभा चुनाव से उनके भाइयों और भतीजी के बीच दरार पड़ गई है. 2015 में उनके भाइयों में से एक ने पार्टी छोड़ दी और टीएमसी में शामिल हो गए.
सामाजिक ताना-बाना
जनगणना 2011 के मुताबकि मालदा उत्तर लोकसभा क्षेत्र की कुल आबादी 23,37,850 है. इसमें 93.71% आबादी गांवों में निवास करती है जबकि 6.29% आबादी शहरी है. इनमें अनुसूचित जाति और जनजाति का अनुपात क्रमशः 23.3 और 10.05 फीसदी का है. अगर मोटे तौर पर पूरे जिले की आबादी देखी जाए तो उसमें 51.27 फीसदी मुस्लिमों की हिस्सेदारी है जबकि 47.99 फीसदी हिन्दू हैं. बहरहाल बता दें कि 2017 की मतदाता सूची के मुताबिक मालदा उत्तर लोकसभा क्षेत्र में 15,71,541 वोटर्स हैं, जो 1575 मतदान केंद्रों के जरिये अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं.
मालदा उत्तर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत सात विधानसभा सीटें आती हैं. हबीबपुर अनुसूचित जनजाति, गजोल और मालदा विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं. जबकि चंचल, हरीशचंद्रपुर, मालतीपुर और रतुआ सामान्य सीटें हैं. हबीबपुर और गजोल विधानसभा सीट अभी माकपा के पास है.
2014 के लोकसभा चुनावों में 81.6 फीसदी लोगों ने वोटिंग में हिस्सा लिया था, जबकि 2009 के आम चुनावों में यह आंकड़ा 83.69 फीसदी का था. पिछले आम चुनावों में तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी, माकपा और कांग्रेस को क्रमशः 16.97%, 15.39%, 27.77% और 33.41% वोट मिले थे. 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस को 47.77 प्रतिशत वोट मिले जबकि माकपा को 41.24, और बीजेपी को 6.67 फीसदी वोट मिले थे. 2009 की तुलना में देखा जाए तो 2014 में कांग्रेस के मत प्रतिशत में कमी आई है.
2014 का जनादेश
मालदा उत्तर संसदीय क्षेत्र में पूर्व रेल मंत्री और कांग्रेस नेता गनी खान चौधरी की बेटी मौसम नूर 2006 से ही सांसद हैं. 2005 में गनी खान चौधरी के निधन के बाद हुए उप चुनाव में अबु हासेमखान चौधरी लोकसभा के लिए चुने गई थे. 2009 और 2014 के लिए हुए आम चुनावों में भी उनकी बहन मौसम नूर जीत हासिल करने में कामयाब रहीं. मालदा मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और यह इलाका कांग्रेस का गढ़ रहा है, लेकिन अब इस इलाके में सियासी तौर पर दाखिल होने के लिए बीजेपी के साथ तृणमूल कांग्रेस भी जोर आजमाइश कर रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपना चुनावी बिगुल भी मालदा से ही फूंका. 2009 के मुकाबले 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस के वोट प्रतिशत में जो कमी देखी गई वह उसके लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
मालदा उत्तर संसदीय क्षेत्र के लिए सांसद निधि के तहत 27.50 करोड़ रुपये निर्धारित हैं इसमें 15 करोड़ रुपये का फंड जारी किया गया था जिसमें बतौर सांसद मौसम नूर ने 77.34 फीसदी फंड का इस्तेमाल किया है. मौसम नूर सदन की कार्यवाही के दौरान 47 प्रतिशत ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा पाई हैं, लेकिन इस दौरान उन्होंने जमकार सवाल पूछे और डिबेट में हिस्सा लिया. 8 जनवरी 2019 के आंकड़े बताते हैं कि उन्होंने लोकसभा की 8 बहसों में हिस्सा लिया जबकि सुरक्षा, नेशनल हाइवे, श्रम कानूनों, बीमा और महिलाओं के मुद्दों समेत तमाम मसलों पर 240 सवाल पूछे हैं. हालांकि वह सदन में एक भी प्राइवेट बिल पेश नहीं कर पाईं.