Advertisement

ममता बनर्जी की कोलकाता रैली में विपक्ष जितना एकजुट दिख रहा है, उतना है क्या?

Mamata Banerjee Rally in Kolkata कोलकाता में ममता बनर्जी की रैली में 22 दलों के 44 नेता पहुंचे. सबने मिलकर शक्ति प्रदर्शन किया, लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि क्या मोदी के खिलाफ विपक्ष का एक उम्मीदवार उतारेगा. हालांकि, ऐसा होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि देश की 44 प्रतिशत सीटों पर बीजेपी के खिलाफ अकेला महागठबंधन बनता नहीं दिख रहा है.

रैली में 22 दलों के 44 नेता पहुंचे (फोटो-ट्विटर) रैली में 22 दलों के 44 नेता पहुंचे (फोटो-ट्विटर)
aajtak.in
  • कोलकाता,
  • 19 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 9:49 PM IST

कोलकाता में ममता बनर्जी की मेगा रैली के बाद अब सवाल उठने लगा है कि क्या विपक्ष सच में एकजुट है? ममता के बुलावे पर 22 दलों के 44 नेता कुछ इस तेवर में कोलकाता में जमा हुए थे कि भले हमारे दिल मिले न मिले, लेकिन हाथ जरूर मिलने चाहिए. ममता बनर्जी ने मोदी रोको अभियान का सबसे बड़ा शक्ति प्रदर्शन तो कर दिया है, लेकिन नेताओं का एक मंच पर इकट्ठा हो जाना और चुनाव के मैदान में जाना दो अलग-अलग बातें हैं. क्योंकि मोदी के खिलाफ 'विपक्ष का एक उम्मीदवार' अब तक की तस्वीर के मुताबिक नामुमकिन लगता है.

Advertisement

मोदी को हटाने का विपक्ष का मकसद तो साफ है, लेकिन तरीका क्या हो? क्या यूपी जैसा फॉर्मूला बने, जहां विपक्ष के दो ताकतवर दल आपस में मिल गए हैं, लेकिन यहां कांग्रेस गठबंधन में शामिल नहीं है. मजबूर कांग्रेस को अकेले ही 80 सीटों पर लड़ने का दम भरना पड़ रहा है. कांग्रेस को कई राज्यों में बीजेपी के साथ उनसे भी लड़ना है जो मोदी को हटाना चाहते हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के अलावा ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और दिल्ली शामिल हैं.

इन राज्यों में त्रिकोणीय लड़ाई

मसलन 21 सीटों वाले ओडिशा में कांग्रेस को बीजेडी से भी लड़ना है और बीजेपी से भी. 17 सीटों वाले तेलंगाना में टीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी दोनों के खिलाफ ताल ठोक चुकी है. 25 सीटों वाले आंध्र प्रदेश में भी सिर्फ चार दिनों की दोस्ती के बाद टीडीपी और कांग्रेस का साथ अलग हो गया, जो मिलकर बीजेपी को वहां सेंधमारी नहीं करने देना चाहते. 7 सीटों वाले दिल्ली में कुछ दिनों पहले तक बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मिल जाने की सुगबगाहट जरूर थी, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं होगा, ये तय है.

Advertisement

44 फीसदी सीटों पर अकेला महागठबंधन नहीं

42 लोकसभा सीटों वाले जिस बंगाल को देश ने विपक्षी एकता का महासागर बनते देखा है, वहां भी तृणमूल और कांग्रेस साथ-साथ आ जाएं, ये अब तक तय नहीं है. लेफ्ट तो तृणमूल से अलग रहेगा ही, लेकिन वो कांग्रेस के साथ जाएगा या अकेले दम पर तृणमूल और बीजेपी से दो-दो हाथ करेगा, इस पर तस्वीर साफ नहीं हुई है. कुल मिलाकर तिकोनी लड़ाई वाले 9 राज्य हैं, जहां कुल 237 सीटें है. यानी 543 सीटों में से 44 प्रतिशत सीटों पर बीजेपी के खिलाफ अकेला महागठबंधन बनता नहीं दिखता.

कहीं कांग्रेस बनाम बीजेपी तो कहीं कांग्रेस बनाम लेफ्ट

14 सीटों वाले असम में सिटीजनशिप बिल के बाद एजीपी और बीजेपी से अलग जरूर हुई है, 11 सीटों वाले छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और बीजेपी के साथ बीएसपी और अजित जोगी की पार्टी साथ-साथ हैं. 20 सीटों वाले केरल में बीजेपी की कोई खास ताकत नहीं, जबकि वहां आमने-सामने कांग्रेस की अगुवाई वाला फ्रंट और लेफ्ट की अगुवाई वाला फ्रंट है.

बीजेपी के खिलाफ बिखरा विपक्ष

48 सीटों वाले महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के रास्ते अलग-अलग दिख रहे हैं. यहां जरूर कांग्रेस-एनसीपी साथ है. कर्नाटक, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर में भी लड़ाई में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष बिखरा रह सकता है. लेकिन कोलकाता मानो ये बताने में जुटा था कि ऐसे सारे मसले सुलझा लिए जाएंगे.

Advertisement

बिहार में एकजुट है महागठबंधन

एनडीए के खिलाफ एकजुट महागठबंधन बनाने की सबसे सुनहरी तस्वीर बिहार से दिख रही है, जहां कांग्रेस और मोदी विरोध में खड़े दूसरे क्षेत्रीय दल साथ हैं. मध्य प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस सीधे बीजेपी से लड़ेगी. तो पंजाब में बीजेपी-अकाली दल के साथ के बावजूद कांग्रेस अकेले उन पर भारी दिख रही है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement