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नबरंगपुर लोकसभा सीटः बीजद, बीजेपी, कांग्रेस और बसपा के बीच मुकाबला, कौन मारेगा बाजी?

अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित नबरंगपुर लोकसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही रही है. नबरंगपुर संसदीय क्षेत्र में घुसपैठ करने में ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी को लंबा वक्त लग गया. 2014 में बीजेडी ने एक बेहद कड़े मुकाबले में मात्र 2000 वोट से ये सीट कांग्रेस से छीन ली.

Nabarangpur lok sabha elections 2019 Nabarangpur lok sabha elections 2019
वरुण शैलेश
  • नई दिल्ली,
  • 31 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 4:46 AM IST

ओडिशा के नबरंगपुर लोकसभा सीट पर पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को मतदान होंगे. यहां नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. इस बार आम चुनावों में इस सीट पर समीकरण बदल सकते हैं. क्योंकि बीजू जनता दल (बीजद) के नबरंगपुर के सांसद बलभद्र माझी ने हाल ही में पार्टी से इस्तीफा दे दिया. बलभद्र माझी भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं जबकि बीजद ने रमेश चंद्र माझी को अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस के प्रदीप कुमार माझी मैदान में हैं. बसपा ने अपने उम्मीदवार के तौर पर चंद्रध्वज माझी को उतारा है. इस तरह इस सीट पर बीजद, बीजेपी, कांग्रेस और बसपा के बीच मुकाबला होना है.

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अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित नबरंगपुर लोकसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही रही है. नबरंगपुर संसदीय क्षेत्र में घुसपैठ करने में ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी को लंबा वक्त लग गया. 2014 में बीजेडी ने एक बेहद कड़े मुकाबले में मात्र 2000 वोट से ये सीट कांग्रेस से छीन ली.

इस सीट पर अबतक 15 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, इनमें से 11 बार कांग्रेस जीती है. 1952 में इस सीट पर गणतंत्र परिषद ने जीत हासिल की थी. 1957 में ये सीट परिसीमन की वजह से वजूद में नहीं था. 1962 में हुए चुनाव में यहां से कांग्रेस ने जीत हासिल की. इसके बाद इस सीट से कांग्रेस की जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वो 36 साल तक यानी कि 1998 तक जारी रहा. 62 में यहां से जगन्नाथ राव चुनाव जीते. 1967 में कांग्रेस ने खगपति प्रधानी को मैदान में उतारा. प्रधानी इस सीट से चुनाव जीते. इसके बाद लगातार 1998 तक कांग्रेस उनपर भरोसा करती रही और वे जीतते रहे.

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गौरतलब है कि 1999 में यहां के मतदाताओं का कांग्रेस से मोहभंग हुआ. बीजेपी के परशुराम मांझी इस सीट से चुनाव जीते. 2004 में भी इस सीट से बीजेपी के टिकट पर परशुराम मांझी ने फतह हासिल की. 2009 में कांग्रेस ने एक बार फिर यहां वापसी की. प्रदीप कुमार मांझी इस सीट से चुनाव जीते. हालांकि 2014 में बीजेडी ने इस सीट पर पहली बार एंट्री दर्ज की और कांग्रेस के जबड़े से जीत छीन ली.

पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान इस सीट पर रोमांचक मुकाबला हुआ था. बीजेडी ने मात्र 2042 वोटों के अंतर से ये सीट कांग्रेस के जबड़े से छीन ली थी. बीजेडी के बलभद्र मांझी को 3 लाख 73 हजार 887 वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस के प्रदीप कुमार मांझी को 3 लाख 71 हजार 845 वोट मिले. बीजेपी तीसरे स्थान पर रही थी. पार्टी कैंडिडेट परशुराम मांझी को 1 लाख 38 हजार 430 वोट मिले थे. 2014 में कांग्रेस को शिकस्त देने में नोटा वोटों की अहम भूमिका रही. इस सीट पर 44 हजार 408 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था. नोटा वोटों का आंकड़ा बीजेपी को मिलने वाले वोटों के बाद चौथे नंबर पर था. 2014 में यहां मतदान का प्रतिशत 78.80 प्रतिशत रहा था.

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ओडिशा में बदलते समीकरण

भद्रक से बीजद के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सेठी ने आगामी लोकसभा चुनाव में टिकट ना मिलने पर शनिवार को पार्टी से इस्तीफा दे दिया. बीजद अध्यक्ष नवीन पटनायक ने भद्रक लोकसभा सीट से आठ बार के सांसद की जगह मंजुलता मंडल को टिकट दी है, जो पार्टी के मौजूदा विधायक मुक्तिकांत मंडल की पत्नी हैं. अर्जुन सेठी (78) ने संसद के सदस्य और भद्रक जिले के बीजद प्रमुख पद से भी इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने दावा किया कि पटनायक ने उनकी जगह उनके बेटे को टिकट देने पर विचार करने का आश्वासन दिया था. सेठी के समर्थन में भद्रक युवा बीजद अध्यक्ष दुर्गा प्रसन्ना दास ने भी इस्तीफा दे दिया

बीजद से इस्तीफा देने वाले सेठी चौथे सांसद हैं. हाल ही में नबरंगपुर के सांसद बलभद्र माझी, कंधमाल की सांसद प्रत्युषा राजेश्वरी सिंह और कालाहांडी के सांसद अरका केशरी देव ने भी इस्तीफा दे दिया था.

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