
लोकसभा चुनाव 2019 में नरेंद्र मोदी के विजय रथ को उत्तर प्रदेश में रोकने के लिए समाजवादी पार्टी (SP) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने कांग्रेस को दरकिनार करते हुए गठबंधन का ऐलान किया था. इसके बाद प्रियंका गांधी के रूप में कांग्रेस ने बड़ा दांव चला और उन्हें पार्टी का महासचिव बनाते हुए पूर्वांचल की जिम्मेदारी सौंपी, जिसके बाद से सूबे की सियासत तेजी से करवट बदल रही है. इसी का नतीजा है कि अब सपा-बसपा समझौते के मूड में नजर आ रही हैं और कांग्रेस को गठबंधन का हिस्सा बनाना चाहती हैं.
सूत्रों की मानें तो सपा-बसपा ने सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 15 सीटों का ऑफर दे दिया है, लेकिन अब पार्टी ने सीटों की डिमांड बढ़ा दी है. कांग्रेस सूबे में कम से कम 25 संसदीय सीट चाहती है. कांग्रेस नेताओं की मानें तो वह सूबे में सपा-बसपा के बराबर ही सीटें चाहती है. इस तरह से उनके लिहाज से तीनों पार्टियां 25-25 सीटों पर चुनाव लड़ें और बाकी बची पांच सीटें आरएलडी जैसी छोटे सहयोगी दलों के लिए रखा जाए.
बता दें कि पिछले महीने अखिलेश यादव और मायावती ने सपा-बसपा गठबंधन का ऐलान किया था. इस दौरान उन्होंने सूबे की 80 लोकसभा सीटों में 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया था. इसके अलावा दो सीटें गठबंधन की अन्य पार्टियों के लिए छोड़ने का फैसला किया था. वहीं, अमेठी-रायबरेली में कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया था.
हालांकि एक महीने गुजर जाने के बाद सपा-बसपा सूबे की किन सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. इसकी घोषणा अभी तक नहीं की है. दरअसल इसके पीछे प्रियंका गांधी की राजनीतिक एंट्री मानी जा रही है. पिछले दिनों खबर आई थी कि सपा-बसपा नए तरीके से राजनीतिक रणनीति बनाएंगे. इसके बाद वो सीटों की बंटवारा करेंगे.
प्रियंका की राजनीतिक एंट्री के साथ कांग्रेस के हौसले बुलंद हो गए हैं. कांग्रेस प्रियंका गांधी को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के अवतार के रूप में पेश कर रही है. इससे साफ जाहिर है कि सूबे की सियासी लड़ाई अब दो ध्रुव के बजाय त्रिकोणीय होती नजर आ रही है. कांग्रेस जिस तरह से दिल्ली में अल्पसंख्यक सम्मेलन किया और राहुल गांधी ने ओबीसी दलित मतों को साधने के लिए 13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर सवाल खड़े किए हैं. उससे सपा-बसपा में बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक था.
दरअसल सपा-बसपा गठबंधन कर जिस वोटबैंक को अपनी मजबूती मानकर चल रही हैं, उसी में प्रियंका सेंध लगाती हुई नजर आ रही है. कांग्रेस ने जिस तरह से मुस्लिम वोटबैंक, ब्राह्मण और दलित मतों को लेकर अपने पाले में लाने की कवायद शुरू की है, इससे सपा-बसपा गठबंधन के जीत के मंसूबों पर पानी फिर सकता हैं. यही वजह है कि कांग्रेस को गठबंधन में शामिल करने को लेकर मंथन शुरू हो चुका है.