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बीजेपी और वामपंथी दलों का प्रस्ताव ठुकरा थरूर ने थामा था कांग्रेस का दामन

शशि थरूर ने जब राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी, तब उनसे कांग्रेस, वामपंथी दलों और भारतीय जनता पार्टी ने संपर्क किया गया था. मगर उन्होंने कांग्रेस को चुना क्योंकि वह वैचारिक रूप से इसके साथ सहज महसूस करते थे.

शशि थरूर (फोटो-Twitter/@ShashiTharoor) शशि थरूर (फोटो-Twitter/@ShashiTharoor)
वरुण शैलेश
  • नई दिल्ली,
  • 16 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 2:58 PM IST

संयुक्त राष्ट्र की पारी के बाद शशि थरूर जब राजनीति में कदम रख रहे थे, उस दौरान कई सियासी दलों ने उन्हें अपने पाले में शामिल करने का प्रस्ताव दिया. लेकिन यूएन हाई कमीशन फॉर रिफ्यूजी के सदस्य के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाले थरूर ने राजनीतिक सफर के लिए कांग्रेस को चुना. थरूर ने एक बार कहा था कि जब उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी, तब उनसे कांग्रेस, वामपंथी दलों और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने संपर्क किया गया था. मगर उन्होंने कांग्रेस को चुना क्योंकि वह वैचारिक रूप से इसके साथ सहज महसूस करते थे.

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मार्च 2009 के आम चुनावों में थरूर केरल के तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे तो उनके प्रतिद्वंद्वियों ने उन्हें एलीट और बाहरी आदमी बताकर उनके खिलाफ प्रचार करना शुरू किया. लेकिन इन सारी आलोचनाओं के बावजूद थरूर ने लगभग 100,000 के अंतर से चुनाव में जीत दर्ज की. कई मौके आए जब थरूर को अंग्रेजीदां कहा गया. लेकिन उनके मिजाज में भारतीयता रचा बसी हुई है. जिन्होंने भी गौर से देखा होगा वो बता सकते हैं कि उनके सूट की जेब पर लगा तिरंगा इसकी गवाही देता है. वह ऐसे शख्सियतों में शायद पहले पायदान पर कहे जा सकते हैं जो ब्रिटिश शासन का कट्टर आलोचक है. उनकी पुस्तक 'An Era of Darkness: The British Empire in India' इसकी तस्दीक करती है. बाद में यह किताब वाणी प्रकाशन से हिंदी में 'अन्धकार काल: भारत में ब्रिटिश साम्राज्य' प्रकाशित हुई. थरूर ने शोध से यह साबित किया कि भारत के लिए ब्रिटिश शासन कितना नुकसानदायक था. लेकिन शायद उनका व्यक्तित्व ही ऐसा है कि अंग्रेजीदां शब्द उनका पीछा नहीं छोड़ता है.

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नेता नहीं लेखक भी 

बहरहाल, थरूर 15 कथा-साहित्य और अन्य पुस्तकों के लोकप्रिय लेखक हैं. उनकी पुस्तकों में महत्तवपूर्ण व्यंग्य पुस्तक 'द ग्रेट इंडियन नॉवेल 1989, इंडिया : फ्रॉम मिडनाइट टू द मिलेनियम (1997) और इंडिया शास्त्रः रिफलेक्शन्स ऑन द नेशन इन आवर टाइम 2015 शामिल हैं. वे संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अवर महासचिव और पूर्व मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री और विदेशी मामलों के पूर्व राज्य मंत्री रहे हैं. संसद की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष हैं. उन्हें कॉमनवेल्थ राइटर्स प्राइज़ सहित अनेक साहित्यिक पुरस्कार मिल चुके हैं. एनडीटीवी द्वारा उन्हें न्यू एज पॉलिटिशियन ऑफ़ द इयर 2010 से सम्मानित किया जा चुका है. उन्हें विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए भारत के सर्वोच्च सम्मान प्रवासी भारतीय सम्मान से भी सम्मानित किया गया है. 2014 में मोदी लहर के बावजूद तिरुवनंतपुरम से उन्होंने दोबारा जीत हासिल की.

ट्वीट, ट्रोलिंग और कैटल क्लास

लंदन में 9 मार्च 1956 को जन्मे थरूर का विवादों से नाता भी पुराना है. शायद इसीलिए सोशल मीडिया की दुनिया में थरूर के लिए ट्रोलिंग को नया नहीं माना जाता है. उन्हें कई बार अपने ट्वीट की वजह से आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. थरूर ने 9 अगस्त 2017 को एक ट्वीट किया, 'अब एकमात्र विवाद ये है कि मुगलई पराठे को अब क्या कहा जाना चाहिए. शिवाजी पराठा या फिर दीनदयाल उपाध्याय पराठा?'  यूपीए सरकार में मंत्री रहते हुए थरूर ने एक ऐसा ट्वीट किया जिसका मतलब समझने के लिए बहुत से लोगों को शब्दकोष की मदद लेनी पड़ी. 

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वर्ष 2009 में जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने अपने मंत्रियों से खर्चों में कटौती करने की अपील की थी. उस दौरान विदेश राज्य मंत्री रहे थरूर ने एक ट्वीट में लिखा कि किफायत बरतने के काम में वे अपने बाकी मंत्रियों के साथ हवाई जहाज की इकोनॉमी क्लास या उनके शब्दों में मवेशी श्रेणी (cattle class) में यात्रा करने को तैयार हैं. हालांकि बाद में उन्होंने इसके लिए माफी मांगी और एक ट्वीट में लिखा, यह एक अनावश्यक प्रयोग है, लेकिन इकोनॉमी क्लास में सफर करने वालों के अनादर के लिए नहीं इस्तेमाल किया गया था. अर्थ सिर्फ उन विमानन कंपनियों के लिए था, जो हमें मवेशियों की तरह भीतर धकेल देते हैं. लोगों ने इसका गलत अर्थ निकाला. थरूर के इस बयान पर काफी हंगामा हुआ, यहां तक कि उनके इस्तीफे की भी मांग की जाने लगी.

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