Advertisement

शीला दीक्षित: 15 साल रहीं दिल्ली की CM, हार से 5 साल रहीं हाशिए पर

2019 के चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कमान शीला को सौंपी है. 1998 में जिस समय शीला दीक्षित को सोनिया गांधी ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था, उस समय भी कांग्रेस की हालत आज जैसी पतली ही थी. लेकिन शीला ने अपने कुशल नेतृत्व और तजुर्बे से पार्टी को बुलंदियों तक पहुंचाया.

दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित
राहुल विश्वकर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 01 अप्रैल 2019,
  • अपडेटेड 4:30 PM IST

दिल्ली की लगातार 15 साल तक मुख्यमंत्री बनकर रिकॉर्ड बनाने वाली कांग्रेस नेता शीला दीक्षित ने एक बार फिर से दमदार वापसी की है.  2013 में आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के हाथों शिकस्त झेलने वाली शीला पिछले 5 साल से राजनीतिक हाशिए पर थीं. 2019 के चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की कमान तजुर्बेकार शीला दीक्षित को सौंपी है. 1998 में जिस समय शीला दीक्षित को सोनिया गांधी ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था, उस समय भी कांग्रेस की हालत आज जैसी पतली ही थी. लेकिन शीला ने अपने कुशल नेतृत्व और तजुर्बे से पार्टी को बुलंदियों तक पहुंचाया.

Advertisement

मिरांडा हाउस से की है पढ़ाई

पंजाब के कपूरथला में 31 मार्च 1938 को जन्म लेने वालीं शीला दीक्षित दिल्ली के जीसस एंड मैरी स्कूल में शुरुआती शिक्षा ली. मिरांडा हाउस से पढ़ाई करने वाली शीला युवावस्था से ही राजनीति में दिलचस्पी लेने लगी थीं.  शीला दीक्षित की शादी उन्नाव के रहने वाले कांग्रेस नेता उमाशंकर दीक्षित के IAS बेटे विनोद दीक्षित से हुई थी. विनोद से उनकी मुलाकात दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास की पढ़ाई करने के दौरान हुई थी. शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित सांसद रह चुके हैं. शीला की एक बेटी लतिका भी हैं.

ससुर से सीखी राजनीति की A B C D

शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित कानपुर कांग्रेस में सचिव थे. कांग्रेस में धीरे-धीरे उनकी सक्रियता बढ़ती गई और वे नेहरू के करीबियों में शामिल हो गए. इंदिरा राज में उमाशंकर दीक्षित देश के गृहमंत्री थे. ससुस के साथ ही शीला दीक्षित भी राजनीति में सक्रिय हो गईं. राजनीति की A B C D उन्होंने कांग्रेस में लगातार मजबूत होते अपने ससुर से सीखी. एक रोज ट्रेन में सफर के दौरान उनके पति की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. 1991 में ससुर की मौत के बाद शीला ने उनकी विरासत को पूरी तरह संभाल लिया.

Advertisement

1984 में पहली बार कन्नौज से लड़ीं आम चुनाव

गांधी परिवार के भरोसेमंद साथियों में शुमार होने वाली शीला को जल्द ही ईनाम भी मिल गया. 1984 में पहली बार कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ीं और संसद पहुंच गईं. राजीव गांधी की कैबिनेट में उन्हें संसदीय कार्य मंत्री के रूप में जगह मिली. बाद में शीला दीक्षित प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री भी बनीं. राजीव के बाद सोनिया ने भी उन्हें पूरी तवज्जो दी और 1998 में उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया. इसी साल लोकसभा चुनाव में शीला कांग्रेस के टिकट पर पूर्वी दिल्ली से चुनाव मैदान में उतरीं लेकिन वे हार गईं. बाद में दिल्ली में हुए चुनाव में उन्होंने न सिर्फ जीत दर्ज की, बल्कि मुख्यमंत्री भी बन गईं. शीला लगातार तीन साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं जो कि एक रिकॉर्ड है.

2013 में हार के बाद हाशिए पर पहुंचीं

2013 में उन्हें अरविंद केजरीवाल से शिकस्त मिली. इस हार के बाद वे राजनीति में एक तरह से दरकिनार कर दी गईं, और केरल का राज्यपाल बना दिया गया. मोदी सरकार आने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और दिल्ली लौट आईं.

आम आदमी पार्टी से गठबंधन का खुलकर किया विरोध

2019 के चुनाव से ऐन पहले उन्होंने दमदार तरीके से पार्टी में वापसी की है. राहुल गांधी ने उन पर भरोसा जताया है. चुनाव से पहले दिल्ली में कांग्रेस और आप के गठबंधन की खबरें थीं. शीला दीक्षित ने खुलकर इसका विरोध किया. वहीं केजरीवाल लगातार कोशिश कर रहे थे कि दिल्ली में उनका कांग्रेस से गठबंधन हो जाए. लेकिन एक बार फिर शीला दीक्षित की ही मानी गई. अब 78 साल की शीला दीक्षित के सामने एक बार फिर से दिल्ली में कांग्रेस को जिंदा करने की जिम्मेदारी है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement