
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में मिनी गठबंधन बनाने वाली समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठजोड़ में राष्ट्रीय लोकदल के बाद अब कांग्रेस को भी शामिल करने की कवायद परवान चढ़ने लगी है. पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक के बाद हिंदी पट्टी के राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पक्ष में माहौल बना है. ऐसे में यूपी की राजनीति में फ्रंट फुट पर खेलने की बात करने वाली कांग्रेस भी समझौता करती दिख रही है. इससे पहले 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. लेकिन यह इत्तेफाक ही कहा जा सकता है कि सितंबर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सपा-कांग्रेस गठबंधन का ऐलान हो गया.
कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में पार्टी का जनाधार मजबूत करने के लिए यूपी को 2 हिस्सों में बांटते हुए 2 प्रभारी महासचिवों का ऐलान किया था. जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी और पश्चिम उत्तर प्रदेश का जिम्मा ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंपा था. राहुल गांधी ने लखनऊ में कांग्रेस मुख्यालय में इसकी घोषणा करते हुए कहा था कि पार्टी अब यूपी में फ्रंट फुट पर खेलेगी. हमने 2 युवाओं को प्रदेश का जिम्मा दिया है, जिनके सामने लोकसभा चुनाव की चुनौती तो है ही लेकिन इनका असली लक्ष्य 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता में वापस लाना होगा.
उत्तर प्रदेश की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान का कहना है कि सपा-बसपा गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के साथ एक गुप्त समझौते की बात सियासी गलियारों में की जा रही थी. वहीं तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत से यूपी के मुस्लिम वोट का रुख कांग्रेस की तरफ घूमा. लेकिन इन सबसे बीच पुलवामा हमला और एयर स्ट्राइक हो गई. जिसके बाद बीजेपी इसका राजनीतिक फायदा लेते दिखी, तो वहीं विरोधी दल सुस्त पड़ गए. ऐसे में इन दलों पास एक साथ आने के अलावा कोई चारा नहीं था और यह राजनीतिक रूप से सही भी है.
इससे पहले सपा-बसपा ने गठबंधन का ऐलान करते हुए कांग्रेस पार्टी के लिए महज गांधी परिवार के गढ़ अमेठी और रायबरेली की सीट छोड़ी थी. जिसके बाद कांग्रेस ने अकेले चुनाव का ऐलान कर दिया. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और ज्योंतिरादित्य सिंधिया ने अभी लखनऊ दफ्तर में अपना कार्यभार संभाला ही था कि पुलवामा में बड़ा आतंकी हमला हो गया. पुलवामा हमले के बाद प्रियंका गांधी ने अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस स्थगित कर दी तो वहीं कांग्रेस पार्टी ने अपने कई राजनीतिक कार्यक्रम टाल दिए जिसमें गुजरात में होने वाली कार्य समिति की बैठक भी शामिल है.
पुलवामा हमले के जवाब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक के बाद सत्ताधारी बीजेपी के पक्ष में माहौल बनना शुरू हो गया. तो वहीं 5 मार्च को चौधरी अजीत सिंह की पार्टी के सपा-बसपा गठबंधन में शामिल होने का औपचारिक ऐलान भी हो गया जिसमें राष्ट्रीय लोकदल को 3 सीटें दी गईं. अब खबर आ रही है कि इस गठबंधन में कांग्रेस को भी शामिल किया जा रहा है. माना जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी को इस गठबंधन में 15 सीटें मिल सकती हैं. जिसमें सपा अपने हिस्से की 7 और बसपा-6 सीटें छोड़ने को तैयार होती दिख रही है.
वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान का कहना है कि 2017 विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस की स्थिति वैसी नहीं थी जैसी आज है. ऐसी परिस्थिति में भी कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने जा रही थी. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सितंबर के महीने में खाट सभाएं संबोधित कर रहे थें. तभी 29 सितंबर,2016 को सर्जिकल स्ट्राइक हुई और पूरे समीकरण बदल गए. इसके बाद कांग्रेस ने सपा के साथ गठबंधन कर लिया.
इसके बाद प्रदेश में यूपी के लड़के (राहुल-अखिलेश) के पक्ष में नारे लगने लगे और कहा जाने लगा कि यूपी को ये साथ पसंद है. हालांकि उस समय गठबंधन में बसपा शामिल नहीं हुई जिसका नतीजा सपा-बसपा-कांग्रेस तीनों को भुगतना पड़ा.