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BJP के साथ गठबंधन को लेकर उद्धव ठाकरे ने दी सफ़ाई, ये हैं 5 अहम बातें

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ गठबंधन पर मुखपत्र ‘सामना’ में सफाई दी है. 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो-PTI) बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो-PTI)
कमलेश सुतार/खुशदीप सहगल
  • मुंबई,
  • 20 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 5:35 PM IST

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने पार्टी के बीजेपी के साथ हाथ मिलाने को लेकर सफाई दी है. पार्टी के जिस मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में उद्धव ठाकरे हाल फिलहाल तक बीजेपी और मोदी सरकार पर तीखे हमले करते आए हैं, उसी के जरिए उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ नए सिरे से गठबंधन को लेकर अपनी बात रखी.

बता दें कि मंगलवार को मुंबई में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के एलान के बाद से ही शिवसेना प्रमुख सोशल मीडिया पर ट्रोल किए जा रहे थे. सामना में लिखे गए लंबे चौड़े संपादकीय की 5 अहम बातें इस प्रकार हैं-

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- बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह खुद मातोश्री आए थे और उनके सामने शिवसेना ने ‘ठाकरे स्टाइल’ में पुरज़ोर ढंग से अपना पक्ष रखा.

- बीजेपी के साथ गठबंधन ना तो पलायन और ना ही लाचारी. देश में हवा किस दिशा में बह रही है यह कल ही पता चलेगा लेकिन ‘हवा’ हमारी ओर घूम गई है. हवा आएगी इसलिए हमने पीठ नहीं दिखाई. इतिहास को इसे दर्ज करना होगा. फिलहाल इतना ही. तलवार की धार बरकरार है और शिवसेना की तलवार ‘म्यानबंद’ नहीं है.

- 2014 में भाजपा से विधिवत अलगाव के बावजूद फिर एक कैसे हुए? राम मंदिर बनेगा क्या? शिवसेना का मुख्यमंत्री बनेगा क्या? ऐसे कई सवाल हैं और उनके उत्तर सकारात्मक हैं.

- नीतीश कुमार जैसे भरोसेमंद साथी ने भी दो बार ‘एनडीए’ छोड़ा है. राजनीति में फिर साथ आने के लिए कुछ आम शब्द कहे जाते हैं जैसे कि ‘राष्ट्रीय व्यापक हित’, ‘जनहित’ और ‘जनता की इच्छा’। इस इच्छा के अनुसार कांग्रेस का महागठबंधन हो सकता है और नीतिश कुमार आदि NDA में आ सकते हैं तो शिवसेना तो इस NDA की बराबरी की हिस्सेदार ही है.

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- 2019 की स्थिति ऐसी है कि यह चुनाव लहर पर नहीं बल्कि विचार, काम और भविष्य पर लड़ना है. राहुल गांधी की प्रोग्रेस बुक 2014 की तुलना में अवश्य ही सुधरी है. सहायता के लिए प्रियंका गांधी हैं लेकिन उनकी तुलना मोदी के नेतृत्व से नहीं की जा सकती.

संपादकीय में ये भी लिखा गया है कि शिवसेना ने पीठ पर वार सहकर बहे हुए खून की कीमत देकर संगठन को आगे बढ़ाया, यह पलायन नहीं होता और न ही लाचारी होती है, जोड़तोड़ तो बिल्कुल नहीं होता.

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