
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी(सपा) और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) का गठबंधन प्लान फाइनल हो गया है. कल यानी शनिवार को 12 बजे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका औपचारिक ऐलान कर सकते हैं. इसका मतलब साफ है कि दोनों पार्टियों में गठबंधन पक्का है और इसमें कांग्रेस शामिल नहीं है. 2019 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अब एक तरफ जहां बीजेपी होगी तो दूसरी तरफ अखिलेश यादव और मायावती की जोड़ी होगी.
कभी छत्तीस का आंकड़ा रखने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पुरानी रंजिश भूलने को तैयार हो गईं हैं. दोनों ने कांग्रेस को इस सफर में साथी होने के लायक नहीं समझा. कांग्रेस से परदे के पीछे रणनीतिक तालमेल हो सकता है. उसकी शक्ल क्या होगी ये देखने वाली बात होगी.
ऐसे में हम आपके बताते हैं कैसे सपा-बसपा ने कांग्रेस को जोर का झटका दिया है. कौन से वो कारण हैं जिससे दोनों पार्टियां साथ आई हैं.
1- 2017 विधानसभा चुनाव में कम सीटों का मिलना
उत्तर प्रदेश में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा-और बसपा दोनों को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में सपा को जहां 47 सीटें मिली थीं तो बसपा को 19 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. बीजेपी को इस चुनाव में 312 सीट मिली थीं. ऐसे में 2019 में मोदी का सामना करने के लिए दोनों पार्टियाों को साथ आना पड़ा.
2- 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने पस्त होना
2014 में मोदी लहर में दोनों पार्टियों की बड़ी हार हुई थी. 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी और सपा तो सिर्फ अपने कुनबे तक ही रह गई थी. 2014 के बाद से जिस तरह से दोनों पार्टियां का ग्राफ गिरा उसके बाद से दोनों को एक बड़े सहारे की जरूरत थी. ऐसे में दोनों पार्टियां 26 साल की दुश्मनी भुलकर साथ आईं और 2019 में मोदी का सामना करने के लिए तैयार हुईं.
3- उपचुनाव में दोनों दलों के साथ का फॉर्मूला हिट हुआ था.
फूलपूर और गोरखपुर उपचुनाव में दोनों के साथ आने का फॉर्मूला हिट हुआ था. बीजेपी की सबसे सुरक्षित सीट माने जाने वाली गोरखपुर में दोनों ने साथ लड़ा और जीत हासिल की.
4- कांग्रेस की कमजोर हालत के चलते छोड़ा साथ.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत लगतार कमजोर होती गई. कांग्रेस को जहां राज्य में एक फिर बार खड़ा होने के लिए सहारे की जरूरत थी ऐसे में दोनों ने गठबंधन में उसको जगह नहीं दी. विधानसभा चुनाव में सपा कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ी थी और यह गठबंधन फ्लॉप साबित हुआ था. इस चुनाव में सपा 47 और कांग्रेस 7 सीटें ही जीतने में सफल रही.
5- गठबंधन ना होने की सूरत में दोनों का भविष्य खतरे में.
अगर सपा और बसपा का गठबंधन नहीं होता तो इस बार भी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की राह आसान हो जाती. बीजेपी की जीत के साथ ही दोनों पार्टियां का भविष्य भी खतरे में हो जाता. पहले विधानसभा चुनाव में करारी हार और लगातार दो लोकसभा चुनाव में हार से यूपी की इन दोनों प्रमुख पार्टियां का भविष्य खतरे में होता.
6- लोकसभा में सबसे ज्यादा यूपी से 80 सीटों का सवाल है.
लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें उत्तर प्रदेश में हैं. हर पार्टी यहां पर ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने पर ध्यान देती है. देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री भी इसी राज्य ने दिए हैं. 2014 के चुनाव में बीजेपी ने इस राज्य में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 71 सीटों पर जीत हासिल की थी. सपा और बसपा का असर सबसे ज्यादा इसी राज्य में है. ऐसे में दोनों पार्टियां 2019 चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीट जीतने की उम्मीद रखी हैं.
2017 यूपी विधानसभा चुनाव कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मिलकर लड़े थे. इस चुनाव में बीजेपी को 312 सीट, एसपी को 47 सीट, बीएसपी को 19 सीट और कांग्रेस को 7 मिली थीं.
बीते कुछ दिनों में राफेल को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जिस तरह से मोदी सरकार पर हमलावर दिखे हैं और उनकी लोकप्रियता में पहले के मुकाबले जिस तरह से इजाफा देखने को मिला है उससे कहीं ना कहीं कांग्रेस का विश्वास जरूर बढ़ा है. कांग्रेस इसी उम्मीद में है कि पार्टी यूपी में इस बार अच्छा प्रदर्शन करेगी. राहुल गांधी खुद कह चुके हैं कि कांग्रेस यूपी में अच्छा कर सकती है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस का विचार यूपी में काफी मजबूत है. इसलिए हमें यूपी में अपनी क्षमता पर पूरा भरोसा है और हम लोगों को चकित कर देंगे.
कांग्रेस गठबंधन से दूर जरूर है लेकिन इससे बीजेपी का सिरदर्द कम नहीं होने वाला. कांग्रेस के पास आज भी यूपी में 6 से 8 फीसदी वोट है. सवर्णों को थोक के भाव टिकट देकर कांग्रेस बीजेपी के वोट बैंक में सेंध तो लगा ही देगी.