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20 साल की उम्र में RSS से जुड़े दिलीप घोष, बंगाल में बीजेपी के मिशन-23 की जिम्मेदारी

आरएसएस में दिलीप घोष ने राजनीति और समाज की बारिकियां सीखीं. यहां उन्होंने दक्षिणपंथ की राजनीति की शिक्षा ली और इस विचार को सहजता से समझ पाए.  संघ में वह अंडमान निकोबार के इंचार्ज बने, इस दौरान वह पूर्व आरएसएस चीफ के एस सुदर्शन के सहायक रहे. रिपोर्ट के मुताबिक संघ में वह मोहन भागवत और केशव दीक्षित से काफी प्रभावित रहे.

पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष दिलीप घोष (फोटो-bjpbengal.org) पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष दिलीप घोष (फोटो-bjpbengal.org)
पन्ना लाल
  • नई दिल्ली,
  • 23 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 3:46 PM IST

दिलीप घोष पश्चिम बंगाल बीजेपी के बड़े नेता और राज्य बीजेपी अध्यक्ष हैं. वे इस पद को उस वक्त संभाल रहे हैं जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को लगता है कि बीजेपी का स्वर्ण युग तब तक नहीं आएगा जब तक  पश्चिम बंगाल और केरल में बीजेपी सरकार नहीं बना लेगी. लिहाजा उनके सामने चुनौती बड़ी है. उन्हें रणनीतिक कौशल साबित करना है और बीजेपी को राज्य में 42 में से 23 लोकसभा सीटें जीतकर देनी है. बता दें कि बीजेपी इस बार पश्चिम बंगाल में मिशन-23 को लक्ष्य बनाकर चल रही है.

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प्रारंभिक जीवन

दिलीप घोष का जन्म 1 अगस्त 1964 को पश्चिम मिदनापुर जिले के गोपीवल्लभपुर के नजदीक कुलिना गांव में हुआ था. चार भाइयों में दिलीप घोष दूसरे नंबर पर हैं, इनके पिता का नाम भोला नाथ घोष और माता का नाम पुष्पलता घोष है. पैतृक गांव में स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए झारग्राम चले गए. 20 साल की उम्र में 1984 में उनकी जिंदगी में तब बड़ा मोड़ आया जब वह आरएसएस से जुड़ गए.

संघ से सीखा राजनीति का समाजशास्त्र

आरएसएस में दिलीप घोष ने राजनीति और समाज की बारिकियां सीखीं. यहां उन्होंने दक्षिणपंथ की राजनीति की शिक्षा ली और इस विचार को सहजता से समझ पाए.  संघ में वह अंडमान निकोबार के इंचार्ज बने, इस दौरान वह पूर्व आरएसएस चीफ के एस सुदर्शन के सहायक रहे. रिपोर्ट के मुताबिक संघ में वह मोहन भागवत और केशव दीक्षित से काफी प्रभावित रहे. 2014 में दिलीप घोष संघ से बीजेपी नेतृत्व में आए, तब उन्हें पश्चिम बंगाल बीजेपी का महासचिव बनाया गया था. अगले साल उनके कद में इजाफा हुआ और उन्हें पश्चिम बंगाल बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया. यहां पर संघ की पाठशाला में सीखे विचारों को उन्हें जमीन पर उतारने का मौका मिला.

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2016 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में उन्होंने खड़गपुर सदर विधानसभा सीट जीतकर सबको चौंका दिया. ये जीत इसलिए खास थी कि क्योंकि दिलीप घोष के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कांग्रेस नेता ज्ञान सिंह सोहनपाल इस सीट से 1982 से 2011 तक लगातार जीतते रहे थे. इस लिहाज से 7 बार से जीत रहे ज्ञान सिंह सोहनपाल को हराना दिलीप घोष और बीजेपी नेतृत्व के लिए बड़ी बात थी.  

विवादों से रहा पुराना नाता

दिसंबर 2016 में पश्चिम हावड़ा के उलबेरिया में दिलीप घोष ने सीएम ममता बनर्जी के खिलाफ आपत्तिजनक बयान दिया था. नोटबंदी के बाद ममता बनर्जी केंद्र के खिलाफ लगातार हमले कर रही थीं, इसी दौरान वे दिल्ली में एक कार्यक्रम में शिरकत कर रही थीं. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए दिलीप घोष ने कहा था,"हमारी मुख्यमंत्री दिल्ली गईं थी, वहां पर उन्होंने खूब नाच गाना किया था, अब मुझे बताइए, हमारी सरकार वहां है, यदि हम चाहते क्या हम बाल पकड़कर उन्हें बाहर नहीं फेंक दे सकते थे."

इसी साल जनवरी में ममता बनर्जी के पक्ष में एक बयान देकर पार्टी को असहज कर दिया था. दिलीप घोष ने ममता बनर्जी को उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं देते हुए कहा था कि टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी में देश की पहली बंगाली प्रधानमंत्री बनने की अच्छी संभावनाए मौजूद है. हालांकि कुछ ही घंटे बाद वे अपने बयान से पलट गए थे.  

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विवादित बयान देने के लिए खासे चर्चित रहे दिलीप घोष ने लोकसभा चुनाव 2019 के लिए नामांकन शुरू होने से पहले ये कहकर सबको हैरान कर दिया था कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी के पास जीतने लायक कैंडिडेट नहीं हैं. हालांकि दिलीप घोष दलील देते हैं कि राज्य में बीजेपी के बढ़ते जनाधार को देखकर ही दूसरी पार्टी के नेता बीजेपी में शामिल हो रहे हैं.

2019 की जंग

दरअसल दिलीप घोष भले ही विवादित बयान देते रहे हों, लेकिन राज्य में बीजेपी कैडर के बीच उनकी छवि फाइटर नेता की है. इसीलिए बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व ने एक बार फिर से उनपर भरोसा जताया है और उन्हें लोकसभा चुनाव में उतारा है. 21 मार्च को बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के लिए कैंडिडेट की लिस्ट जारी करते हुए उन्हें मिदनापुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा है. इस सीट पर उनका मुकाबला टीएमसी के मानस भूइयां से है. सीपीआई के बिप्लब भट्ट भी इस सीट से मैदान में हैं.  

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