
पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने सूबे की सभी 42 लोकसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. ममता बनर्जी की पार्टी ने मुर्शिदाबाद जिले की बहरामपुर सीट से पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान को मैदान में उतारा है. 2007 के टी20 और 2011 के एकदिवसीय विश्वकप विजेता भारतीय टीम के सदस्य रहे यूसुफ गुजरात से नाता रखते हैं. टीएमसी ने उन्हें पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ उतार दिया है तो इसके पीछे क्या रणनीति है? इसे समझने के लिए इस सीट के चुनावी अतीत, सियासी मिजाज और वोटों के गणित की चर्चा जरूरी है.
बहरामपुर में कभी नहीं जीत सकी टीएमसी
बहरामपुर लोकसभा सीट के चुनावी अतीत की बात करें तो आजादी के बाद 1952 से 1980 तक यहां से रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के त्रिदिब चौधरी लगातार सात बार सांसद रहे. 1984 में आतिश चंद्र सिन्हा ने यह सीट पहली बार कांग्रेस की झोली में डाल दी. आरएसपी ने फिर से वापसी की और 1998 तक नानी भट्टाचार्य और प्रमोथ्स मुखर्जी पार्टी के टिकट पर संसद पहुंचते रहे. 1999 में अधीर रंजन चौधरी पहली बार इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए और तब से अब तक, वह लगातार पांच बार सांसद निर्वाचित हो चुके हैं. बहरामपुर ऐसी सीट है जहां अपनी स्थापना के बाद से अब तक, टीएमसी कभी नहीं जीत सकी है.
अधीर को हराना ममता के लिए क्यों जरूरी
बहरामपुर सीट पर टीएमसी का फोकस 2019 चुनाव के पहले से ही है लेकिन बदली परिस्थितियों में ममता बनर्जी के लिए अधीर रंजन चौधरी को हराना उच्च प्राथमिकता बन गया है. दरअसल, अधीर रंजन बंगाल की सीएम के खिलाफ सबसे मुखर चेहरा हैं. ममता के खिलाफ वह तब भी लगातार हमले बोलते रहे जब टीएमसी की नेता इंडिया गठबंधन की बैठकों में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ मंच साझा कर रही थीं. टीएमसी नेताओं ने पार्टी के कांग्रेस से किनारा करने के पीछे भी अधीर की बयानबाजियों को वजह बताया था.
बहरामपुर में दीदी को क्यों दिख रही उम्मीद
टीएमसी ने इस सीट की जिममेदारी पिछले चुनाव के पहले शुभेंदु अधिकारी को सौंपी थी जो अब विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं. शुभेंदु कभी टीएमसी के चाणक्य माने जाते थे. टीएमसी ने 2019 में कांग्रेस की ही विधायक रहीं अपूर्वा सरकार को मैदान में उतारा था. नतीजा यह हुआ कि 2014 में करीब साढ़े तीन लाख वोट के अंतर से बड़ी जीत हासिल करने वाले अधीर जीत तो गए लेकिन अंतर कम होकर 90 हजार वोट का रह गया.
बरहामपुर लोकसभा क्षेत्र के तहत सात विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें से छह सीटों पर पिछले चुनाव में टीएमसी को जीत मिली. एक सीट बीजेपी जीत गई. कांग्रेस अधीर के गढ़ में खाता तक नहीं खोल सकी थी. 2019 में कम हुए अंतर और विधानसभा चुनाव में पार्टी का शानदार प्रदर्शन, इन्हें देखते हुए ममता बनर्जी की पार्टी को बहरामपुर में जीत की उम्मीद नजर आ रही है.
दादा के खिलाफ यूसुफ पर दांव क्यों
बहरामपुर सीट का मिजाज जल्दी-जल्दी अपने प्रतिनिधि बदलने वाला नहीं रहा है. 1952 से 1998 तक, 1984 चुनाव छोड़ दें तो लगातार आरएसपी की जीत यहां के मतदाताओं का मिजाज बताने के लिए काफी है. अधीर रंजन भी जीत का छक्का लगाने के पुरजोर प्रयास कर रहे हैं. टीएमसी ने पिछली बार कांग्रेस की ही विधायक को अधीर के खिलाफ उतार एक प्रयोग किया था. अब पार्टी ने इस सीट से पूर्व क्रिकेटर को उतारने का दांव चला है तो इसके भी अपने मायने हैं.
जब कोई क्रिकेट सितारा या फिल्मी दुनिया से जुड़ी शख्सियत चुनाव मैदान में उतरती है तो इसका अलग इम्पैक्ट होता है. यूसुफ क्रिकेट की दुनिया के बड़े नाम रहे हैं. अधीर जैसे कद्दावर नेता के खिलाफ जीत का आधार केवल फिल्मी या खेल की दुनिया का सितारा होना भर काफी नहीं होता. यूसुफ ने आईपीएल में पश्चिम बंगाल की कोलकाता फ्रेंचाइजी केकेआर का भी प्रतिनिधित्व किया है. उन्होंने टिकट मिलने के बाद कहा भी कि केकेआर के लिए खेलते समय अथाह प्यार मिला, अब सेवा वापस देंगे.
बहरामपुर के जातीय-सामाजिक समीकरणों को देखते हुए भी टीएमसी को यूसुफ के जीतने की उम्मीद है. टीएमसी को लगता है कि अगर मुस्लिम वोटर्स ने एकजुट होकर उसके पक्ष में वोटिंग कर दी तो अधीर के लिए चुनावी राह मुश्किल हो जाएगी और ऐसे में उसके उम्मीदवार की जीत संभव हो सकती है. बीजेपी ने इस सीट से डॉक्टर निर्मल कुमार साहा को मैदान में उतारा है.
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बरहामपुर सीट के जातीय-सामाजिक समीकरण
बरहामपुर लोकसभा क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम, दोनों ही समुदाय की आबादी का अनुपात करीबी है. बरहामपुर के जातीय और सामाजिक समीकरणों की बात करें तो 2019 के चुनाव में इस सीट पर कुल 16 लाख 32 हजार 87 मतदाता थे. इनमें मुस्लिम मतदाताओं की तादाद करीब 8 लाख 48 हजार बताई जा रही है जो 52 फीसदी के करीब पहुंचता है. अनुमानों के मुताबिक बरहामपुर लोकसभा सीट पर 13 फीसदी एससी, करीब एक फीसदी एसटी वोटर्स हैं.