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बदायूं सीट को लेकर चाचा-भतीजे में तकरार? बेटे आदित्य को उतारना चाहते हैं शिवपाल, लेकिन पार्टी नहीं राजी

शिवपाल और आदित्य यादव दोनों में से समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी कौन होगा इस विषय पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी दुर्विजय सिंह शाक्य अपनी सभी जनसभाओं और नुक्कड़ सभाओं में कहते नजर आ रहे हैं कि भतीजे(अखिलेश) ने चाचा को बदायूं में फंसा दिया है और शिकंजा इतना कस दिया है कि चाचा निकल नहीं पा रहे हैं.

अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव (फाइल फोटो) अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव (फाइल फोटो)
अंकुर चतुर्वेदी
  • बदायूं,
  • 14 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 7:49 PM IST

अखिलेश और चाचा शिवपाल के बीच संबंध कैसे हैं, इसको लेकर तरह तरह की चर्चाएं होती हैं, लेकिन चाचा भतीजे अपने संबंध मधुर ही बताते हैं. 20 फरवरी को धर्मेंद्र यादव का बदायूं से टिकट काटकर शिवपाल को प्रत्याशी बनाए जाने पर भी यह चर्चा होने लगी. अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव की मर्जी के खिलाफ जाकर उनको बदायूं से प्रत्याशी बनाया है. इस बात का खंडन शिवपाल ने तो नहीं किया लेकिन टिकट मिलने के 24 दिन बाद जब शिवपाल यादव बदायूं आए तो उन्होंने मीडिया से पहले दिन से ही यह कहना शुरू कर दिया कि वह लोकसभा चुनाव लड़ना नहीं चाहते थे, बल्कि उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर जाकर समाजवादी को मजबूत बनाने में अपनी भूमिका निभाना चाहते थे. लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जी ने हमें यहां का प्रत्याशी बना दिया है.

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चुनाव प्रचार में शिवपाल यादव के साथ उनके बेटे आदित्य यादव साथ घूम रहे थे. पहले दौर के बाद ही बदायूं में आदित्य यादव के प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा होने लगी यह चर्चा समाजवादी के मंच से बदायूं के नेता करने लगे. धर्मेंद्र यादव जब चाचा शिवपाल यादव के चुनाव प्रचार के लिए बदायूं आए तो उन्होंने भी मंच से शिवपाल की जगह आदित्य यादव के लिए माहौल बनाया. शिवपाल यादव लगातार मीडिया से यही कहते नजर आ रहे हैं कि प्रत्याशी वह होंगे या उनका बेटा या कोई और समाजवादी पार्टी मजबूती से चुनाव लड़ेगी.

आदित्य यादव के नाम की चर्चा

शिवपाल यादव ने कभी अपने मुंह से आदित्य यादव का नाम नहीं लिया उन्होंने बस यही कहा कि बदायूं की जनता युवा चाहती है और बदायूं के समाजवादी नेता मंच से आदित्य यादव जिंदाबाद के नारे लगाते हुए आदित्य यादव को अघोषित रूप से घोषित प्रत्याशी मानकर चुनाव प्रचार में उतर चुके हैं. इस पूरी पटकथा में शीर्ष नेतृत्व की तरफ से अभी तक कोई भी ऐसे संकेत नहीं दिए गए कि बदायूं का प्रत्याशी बदला जाएगा.

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भाजपा लगा रही चाचा के मैदान छोड़ने का आरोप

शिवपाल और आदित्य यादव दोनों में से समाजवादी पार्टी का प्रत्याशी कौन होगा इस विषय पर भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी दुर्विजय सिंह शाक्य अपनी सभी जनसभाओं और नुक्कड़ सभाओं में कहते नजर आ रहे हैं कि भतीजे(अखिलेश) ने चाचा को बदायूं में फंसा दिया है और शिकंजा इतना कस दिया है कि चाचा निकल नहीं पा रहे हैं. चाचा को बदायूं में हार दिखने लगी है जिसकी वजह से चाचा मैदान छोड़कर भाग रहे हैं और अपनी जगह अपने बेटे को आगे कर रहे हैं.

समाजवादी पार्टी या कहे किसी भी राजनैतिक पार्टी में ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि प्रत्याशी राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा नहीं बल्कि जनता और कार्यकर्ताओं द्वारा तय किया जा रहा है. साथ ही राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा घोषित प्रत्याशी शिवपाल यादव के नाम का नामांकन पत्र न खरीद कर पार्टी जिलाध्यक्ष बदायूं आशीष यादव ,आदित्य यादव के नाम का नामांकन पत्र खरीदते हैं और मीडिया से यह कहते हैं कि 15 अप्रैल को आदित्य यादव ही नामांकन करेंगे. शिवपाल यादव भी जनसभाओं के मंच से साफ शब्दों में आदित्य यादव को प्रत्याशी बताते नजर आ रहे हैं लेकिन मीडिया से वह बस यही कहते नजर आ रहे हैं कि 15 तारीख को सब साफ हो जाएगा. शिवपाल यादव आदित्य यादव के नाम पर चुप्पी तो साधे हुए हैं .लेकिन वह यह संदेश मीडिया के माध्यम से लगभग रोजाना लखनऊ भेज रहे हैं कि बदायूं की जनता आदित्य यादव को चुनाव लड़ाना चाहती है. तो क्या यह माना जाए की अखिलेश यादव आदित्य यादव के नाम पर आज ही राजी नहीं है .

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शिवपाल यादव बेटे को आगे बढ़ाना चाहते हैं?

शिवपाल यादव खुद चुनाव न लड़कर अपने बेटे को आगे बढ़ाना चाहते हैं और लगातार मीडिया के सामने बयान बाजी अखिलेश यादव पर दबाव बनाने के लिए की जा रही है. लेकिन जब इस बात पर शिवपाल यादव से सवाल पूछा जा रहा है तो वह बस यही कह रहे हैं कि हम एक खास रणनीति के तहत यह कर रहे हैं और हमारी रणनीति में बीजेपी उलझी जा रही है. हम अपने पत्ते 15 तारीख को ही खोलेंगे .

क्या अखिलेश यादव आदित्य यादव के नाम पर सहमत नहीं है?

आदित्य यादव को अगर अखिलेश यादव हरी झंडी दे चुके हैं तो उनके नाम की घोषणा क्यों नहीं की जा रही है. क्या अखिलेश यादव आदित्य यादव के नाम पर सहमत नहीं है? क्या अखिलेश यादव को यह लगता है कि आदित्य यादव को प्रत्याशी बनाने पर समाजवादी पार्टी पर एक बार फिर से परिवारवाद का आरोप लगाना शुरू हो जाएगा. अखिलेश यादव इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं कि आदित्य यादव को टिकट देने के बाद बीजेपी परिवारवाद के आरोप का हमला तेज कर देगी. जंहा एक तरफ बीजेपी ने एक आम कार्यकर्ता मोहन यादव का मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी अभी तक सैफई से बाहर ही नहीं निकल पा रही है.

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क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक? 

राजनीतिक विश्लेषक तो ये तर्क भी दे रहे है कि अखिलेश यादव ने अभी तक अपने लिए कोई भी सीट फाइनल इसीलिए नहीं की है क्योंकि अगर चाचा शिवपाल यादव चुनाव नहीं लड़ते हैं तो अखिलेश यादव भी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे. अखिलेश यादव अगर लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं और चुनाव जीतते हैं तो उनको विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी से मुक्त होकर दिल्ली की राजनीति करनी पड़ेगी और ऐसे में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी किसी वरिष्ठ समाजवादी को देना उनकी मजबूरी होगी. ऐसी स्थिति में अगर वह चाचा को चुनते हैं तो चाचा फिर से राजनीति में सक्रिय और ताकतवर दोनों होते हुए दिखेंगे और अगर किसी और को चुनते हैं तो चाचा भतीजे का मन मुटाव जग जाहिर होने लगेगा. शिवपाल यादव भी शायद इसी रणनीति के तहत अपनी दावेदारी वापस ले रहे हैं कि अगर वह चुनाव जीतते है तो जसवंत नगर सीट उनको छोड़नी पड़ेगी और दिल्ली की राजनीति जो कि उन्होंने कभी नहीं की, वह उन्हें जीरो से शुरू करनी होगी. दिल्ली में पहले से ही समाजवादी पार्टी के रामगोपाल यादव सक्रिय है उनके सामने शिवपाल को अपनी राजनीति जीरो से शुरू करनी होगी.

नामांकन के बाद तस्वीर होगी साफ

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शिवपाल और भतीजे अखिलेश के बीच कितना तालमेल बना हुआ है यह कल नामांकन के बाद पता चलेगा. अभी तक समाजवादी पार्टी के घोषित प्रत्याशी शिवपाल यादव ने नामांकन पत्र नही खरीदा है वही दूसरी तरफ आदित्य यादव का नामांकन पत्र पार्टी जिलाध्यक्ष खरीद चुके है.कल अखिलेश यादव शिवपाल का टिकट काट कर आदित्य यादव को प्रत्याशी बनाते है या नहीं यह भी देखना दिलचस्प होगा. अभी तक आदित्य यादव समाजवादी पार्टी के घोषित प्रत्याशी भी नहीं है तो ऐसे में यह देखना होगा कि कल 15 अप्रैल को आदित्य यादव क्या समाजवादी पार्टी के सिंबल के बिना ही अपना नामांकन दाखिल करेंगे या समाजवादी पार्टी शिवपाल यादव की जगह आदित्य यादव को अपना प्रत्याशी बनाने की घोषणा करके आदित्य को समाजवादी पार्टी का सिम्बल देगी.

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