
जेल में बंद 'वारिस पंजाब दे' प्रमुख अमृतपाल सिंह द्वारा स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला करने के बाद खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र सुर्खियों में है. यह सिख बहुल क्षेत्र है जिसमें जंडियाला, तरनतारन, खेमकरण, पट्टी, खडूर साहिब, बाबा बकाला, जीरा, सुल्तानपुर लोधी और कपूरथला सहित 9 विधानसभा सीटें शामिल हैं. चूंकि यहां धार्मिक मुद्दे केंद्र में हैं, इसलिए इस लोकसभा क्षेत्र को अक्सर धार्मिक सीट कहा जाता है.
इस बार चुनाव परिदृश्य में यहां जो मुद्दे हावी रह सकते हैं, उनमें अपनी सजा पूरी कर चुके पूर्व खालिस्तानी आतंकवादियों (इन्हें बंदी सिख कहा जाता है) की रिहाई, बेअदबी के मामले और अमृतपाल सिंह की गिरफ्तारी समेत अन्य शामिल हैं. स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ने के अमृतपाल के फैसले ने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) को परेशान कर दिया है, क्योंकि पार्टी ने अमृतपाल के परिवार से समर्थन मांगा था.
अतीत में कट्टरपंथियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले खडूर साहिब से शिअद उम्मीदवार विरसा सिंह वल्टोहा ने अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह से मुलाकात की थी, जिन्होंने कथित तौर पर उन्हें पूरा समर्थन देने का आश्वासन दिया था. दो और घटनाक्रम जो शिरोमणि अकाली दल (बादल) को प्रभावित करेंगे, वे हैं अमृतपाल के पक्ष में अकाली दल (अमृतसर) द्वारा अपने उम्मीदवार की वापसी और परमजीत कौर खालड़ा का बिना शर्त समर्थन. खालड़ा ने 2019 में यहां से चुनाव लड़ा था और 20.51 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. वह अब अमृतपाल सिंह के चुनाव अभियान की अगुवाई कर रही हैं.
अकाली दल को सिखों के वोट बंटने का डर
अकाली दल (बादल) को यह भी डर है कि सिखों के वोट 2019 की तरह विभाजित हो जाएंगे. शिअद जो खुले तौर पर खुद को धार्मिक पार्टी (पंथिक पार्टी) कहती है, वह वोटों के विभाजन के कारण पिछली बार यहां से हार गई थी. अकाली दल (बादल) के सामने सबसे बड़ी चुनौती अमृतपाल सिंह का मुकाबला करना और मतदाताओं के बीच उसके प्रभाव को बेअसर करना है. शिअद-भाजपा शासन के दौरान सामने आए बेअदबी के मामलों को लेकर प्रतिद्वंद्वी अकाली दल पर निशाना साध रहे हैं.
पहले अमृतपाल को असम जेल से पंजाब शिफ्ट करने की मांग का समर्थन करने वाली शिअद अब उस पर निशाना साध रही है. खडूर साहिब से पार्टी के उम्मीदवार विरसा सिंह वल्टोहा ने अमृतपाल पर धर्म को खतरे में डालने और आरएसएस से संबंध रखने का आरोप लगाया है. बता दें कि 2019 के चुनाव में कांग्रेस के जैस्मीन सिंह गिल ने यहां से जीत दर्ज की थी जिन्हें 43.95% वोट मिले थे. उनके बाद शिअद-भाजपा की जागीर कौर दूसरे स्थान पर रहीं और उन्हें 30.51 प्रतिशत वोट मिले थे. पंजाब एकता पार्टी के सिख एक्टिविस्ट जसवंत सिंह खालरा की पत्नी परमजीत कौर खालरा 20.51 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थीं. AAP के मनजिंदर सिंह सिद्धू सिर्फ 1.31 प्रतिशत वोट पाने में सफल रहे थे.
अकाली दल का गढ़ रहा है खडूर साहिब सीट
खडूर साहिब संसदीय सीट अकाली दल (बादल) का गढ़ रहा है. उसने 2009 और 2014 के लोकसभा चुनावों में यहां से जीत दर्ज की थी. हालांकि, पार्टी का वोट शेयर 2009 में 49.43% से घटकर 2014 में 44.91% और 2019 में 30.51% हो गया. आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ने 2019 में अपनी जमानत जब्त करा ली थी और सिर्फ 1.31 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया. दिलचस्प बात यह है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में AAP का वोट शेयर कल्पना से परे बढ़ गया. 2022 के विधानसभा चुनाव में खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र के नौ विधानसभा क्षेत्रों में से 7 AAP को मिले. अन्य दो सीटों पर कांग्रेस के राणा गुरजीत सिंह और उनके बेटे इंद्र प्रताप सिंह जीते थे.
राणा गुरजीत सिंह इस बार अपने बेटे इंदर प्रताप के लिए खडूर साहिब से कांग्रेस का टिकट चाहते थे, लेकिन पार्टी ने कुलबीर सिंह जीरा को अपना उम्मीदवार बनाया. इसके बाद राणा कांग्रेस से नाराज बताये जा रहे हैं. हाल ही में उनके एक समर्थक का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें वह दावा कर रहा था कि अमृतपाल को कई सेगमेंट में अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. अमृतपाल के चुनाव लड़ने की घोषणा से पहले तक खडूर साहिब लोकसभा क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला बना हुआ था. अब मुकाबला अकाली दल (बादल) बनाम अमृतपाल और कांग्रेस बनाम AAP हो गया है. मुख्यधारा के मतदाताओं का वोट AAP और कांग्रेस के बीच बंट सकता है. वहीं हार्डलाइनर मतदाताओं के वोट अकाली दल (बादल) और अमृतपाल के बीच बंटने की संभावना है.