
इस बार 2019 के आम चुनावों की तुलना में कहीं अधिक ऐसे उम्मीदवार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, जो खालिस्तानी विचारधारा के समर्थक हैं. अकाली दल (अमृतसर) के सिमरनजीत सिंह मान और जेल में बंद 'वारिस पंजाब दे' प्रमुख अमृतपाल सिंह सहित 8 अलगाववादी कट्टरपंथी सिख विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इनमें से दो करनाल और कुरूक्षेत्र निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे हैं.
संगरूर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में सिमरनजीत सिंह मान की जीत ने खालिस्तानी विचारधारा के प्रति सहानुभूति रखने वाले और अधिक लोगों को चुनाव मैदान में कूदने के लिए प्रेरित किया है. भगवंत सिंह मान के मुख्यमंत्री बनने के कारण संगरूर सीट खाली हुई थी, जिस पर 2022 में उपचुनाव हुआ था. सिमरनजीत सिंह मान ने पंजाब में सत्तारूढ़ AAP के गुरमेल सिंह को 5,822 वोटों के अंतर से हराया था. उन्होंने इस बार भी संगरूर से चुनाव लड़ने का फैसला किया है.
सिमरनजीत सिंह मान ने उतारे 6 उम्मीदवार
सिमरनजीत सिंह मान अकेले चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. उन्होंने विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों से छह और उम्मीदवार उतारे हैं. खुशालपाल सिंह मान, बलदेव सिंह गागरा, अमृतपाल सिंह चंद्रा और मोनिंदरपाल सिंह क्रमशः आनंदपुर साहिब, फरीदकोट, लुधियाना और पटियाला से चुनाव लड़ेंगे. हरजीत सिंह विर्क और खजान सिंह को करनाल और कुरूक्षेत्र सीट से मैदान में उतारा गया है. एक अन्य खालिस्तानी अलगाववादी अमृतपाल सिंह भी खडूर साहिब से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ रहा है, जो फिलहाल एनएसए (National Security Act) के तहत डिब्रूगढ़ जेल में बंद है.
खडूर साहिब से चुनाव मैदान में है अमृतपाल
अमृतपाल के पिता तरसेम सिंह ने दावा किया है कि उनका बेटा अपने समर्थकों के अनुरोध पर चुनाव लड़ रहा है. अमृतपाल को सिमरनजीत सिंह मान और परमजीत कौर खालड़ा का समर्थन मिल रहा है. बता दें कि खालड़ा को 2019 के लोकसभा चुनाव में खडूर साहिब लोकसभा सीट पर दो लाख से अधिक वोट मिले थे. सिमरनजीत सिंह मान ने अमृतपाल का समर्थन किया है और खडूर साहिब से अपना उम्मीदवार वापस ले लिया है. दिवंगत दीप सिद्धू के भाई संदीप सिद्धू भी अमृतपाल के लिए प्रचार कर रहे हैं.
अमृतपाल ने खडूर साहिब सीट को ही चुना क्योंकि उसका पैतृक गांव इस निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है और तरन-तारन बेल्ट में सैकड़ों खालिस्तानी समर्थक हैं. एक समय अलगाववादी गतिविधियों का केंद्र रहा तरन-तारन बेल्ट भारत-पाक सीमा पर स्थित है. शिरोमणि अकाली दल ने अमृतपाल के खिलाफ पार्टी के वरिष्ठ नेता विरसा सिंह वल्टोहा को मैदान में उतारा है. पूर्व खालिस्तानी विचारक विरसा सिंह वल्टोहा अपने चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को याद दिला रहे हैं कि पंजाब में इंसर्जेंसी के दौरान उन्होंने क्या भूमिका निभाई थी.
फरीदकोट में एक अन्य खालिस्तानी समर्थक सरबजीत सिंह चुनावी मैदान में हैं, जो इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह के बेटे हैं. उन्होंने 12वीं तक पढ़ाई की है और अपना चौथा चुनाव लड़ रहे हैं. सरबजीत ने पहले फतेहगढ़ साहिब और बठिंडा से चुनाव लड़ा था और अपने प्रतिद्वंद्वियों से हार गए थे. वह अमृतपाल सिंह के अनुयायी हैं और उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि भी है. उनके दादा सुच्चा सिंह और मां बिमल कौर सांसद थे. शिव सेना नेता सुधीर सूरी हत्याकांड के आरोपी संदीप सिंह सनी ने भी अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. वह भी अमृतपाल सिंह का समर्थक है. इस बीच, सिमरनजीत सिंह मान ने संदीप से चुनाव नहीं लड़ने और अपने बेटे इमान सिंह मान का समर्थन करने के लिए संपर्क किया है.
लोकसभा चुनाव क्यों लड़ रहे हैं खालिस्तान समर्थन?
सिमरनजीत सिंह मान और अमृतपाल सिंह का कहना है कि वे भारतीय संविधान में विश्वास नहीं करते लेकिन उसी संविधान के तहत चुनाव लड़ रहे हैं. सिमरनजीत सिंह मान तो 18 जुलाई, 2022 को संविधान की शपथ लेकर ही सांसद बने. कट्टरपंथी खालिस्तानी तत्वों के चुनाव लड़ने के फैसले के पीछे की रणनीति सिर्फ संसद में प्रवेश करना नहीं बल्कि खुद को एकजुट करना है. खडूर साहिब में कट्टरपंथी सिख वोटों को एकजुट करने के लिए सभी ने हाथ मिला लिया है. सिमरनजीत सिंह मान अलगाववादी विचार रखने वालों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं.
हालांकि, प्रशासन इनकी गतिविधियों पर नजर रख रहा है. हाल ही में अमृतपाल के समर्थकों द्वारा बनाए गए कुछ वॉट्सऐप ग्रुप्स को नफरत फैलाने और भारत विरोधी प्रचार के आरोप में ब्लॉक कर दिया गया. खालिस्तानी विचारकों और उनके समर्थकों की मौजूदगी के बावजूद, पंजाब में केवल कुछ अलगाववादी तत्व ही चुनाव जीतने में सफल रहे हैं और ज्यादातर को विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने खारिज कर दिया है. सिमरनजीत सिंह मान 2022 का उपचुनाव जीतने में सफल रहे. 1989 में उनके समर्थकों ने छह लोकसभा सीटें जीतीं. बाद में मान ने संगरूर से 1999 का लोकसभा चुनाव जीता. खालिस्तानी समर्थक इस बार चुनाव जीत पाएंगे या नहीं, यह तो मतदाता ही तय करेंगे.