
अजित पवार के सामने बारामती और शिरुर के बागियों को शांत करने का बड़ा चैलेंज आ गया है. जहां एक ओर शिरुर सीट से शिवसेना (शिंदे गुट) नेता शिवाजीराव आढळराव पाटील को NCP से उम्मीदवारी देने को लेकर पार्टी में ही विरोध शुरू हो गया है तो वहीं, दूसरी ओर बारामती में विजय शिवतारे के बाद बीजेपी के नेता हर्षवर्धन पाटील भी अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार का काम करने से दूरी बना रहे हैं. इसी चुनौती को खत्म करने के लिए बुधवार को अजित पवार ने आलंदी से NCP विधायक दिलीप मोहिते से उनके राजगुरुनगर स्थित निवास पर चर्चा की. वहीं, हर्षवर्धन पाटील को शांत करने के लिए देवेंद्र फडणवीस ने भी उनसे बात की है.
हर्षवर्धन का छलका दर्द
देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए हर्षवर्धन ने कहा कि “महायुती में हर एक की भूमिका समझने के लिए एक बैठक होना जरूरी है और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करने को लेकर फडणवीस ने सहमति जताई है. हमारे सहयोगी पार्टी के नेता (एनसीपी) रैली में बात करते हुए मेरे खिलाफ बहुत ही निचले स्तर की टिप्पणी करते थे. यह पांच-छह बार हो चुका था. दुर्भाग्य है कि उसी मंच पर बड़े नेता भी थे, पर उन्होनें कार्यकर्ताओं को नहीं रोका. महायुती का धर्म निभाना किसी एक की जिम्मेदारी तो नहीं है.'
क्या अजित पवार से नाराज हैं हर्षवर्धन?
हर्षवर्धन की इस टिप्पणी की साफ अर्थ है कि वह अजित पवार से काफी नाराज दिख रहे हैं और इसीलिए उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के कद्दावर नेता देवेंद्र फडणवीस को मध्यस्थता करनी पड रही है. दूसरी ओर अजित पवार जब आज राजगुरुनगर में अपने ही विधायक दिलीप मोहिते को समझाने के लिए पहुंचे तो उन्होने भी अपना दर्द बयां किया. मोहिते ने कहा “मेरा और आढळराव पाटील का संघर्ष कडा रहा. मुझे और कार्यकर्ताओं को भारी तकलीफ झेलनी पड़ी. अब कार्यकर्ताओं के मन में कुछ शंकाए थीं, जैसे कि फिर आढलराव को मदद करने के बाद पिछले दिन वापस तो नहीं आएंगे? इसलिए अजित पवार कार्यकर्ताओं से बातचीत करने के लिए मेरे घर आए. 25 साल की राजनीति मे पहली बार अजित पवार मेरे घर पर आए. आढलराव की राजनीति आंबेगांव से शुरू हुई और अब वलसे –पाटील ने ही समझौता किया है. अब हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे अजित पवार के लिए रुकावट आए.'
पुराने झगड़े बन रहे सिरदर्द
लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद अजित पवार के लिए पुराने झगड़े बड़ा सिरदर्द बनते नजर आ रहे हैं. इंदापूर विधानसभा चुनावक्षेत्र से हर्षवर्धन पाटील की राजनीति को अजित पवार ने ही सुरुंग लगाया था और वहां पर अपने करीबी दत्ता भरणे को 2014 और 2019 में चुनकर लाए थे. अब अजित पवार को अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार की जीत के लिए हर्षवर्धन की मदद की जरूरत है, ऐसे में अब उन्होंने बागी तेवर अपनाए हैं. शिरुर में जिस आढलराव से राष्ट्रवादी के कार्यकर्ताओ ने 25 साल संघर्ष किया अब उन्हीं के लिए प्रचार करना पड़ रहा है और यह बात कार्यकर्ताओं और नेताओं को नागवार लग रही है.
क्या है शिरुर लोकसभा का मामला?
2008 में डिलिमिटेशन के बाद शिरुर लोकसभा चुनावक्षेत्र का जन्म हुआ. साल 2009 मे आढलराव वहां से चुनकर आए. 2014 में मोदी लहर में आढलराव लोकसभा पहुंचे, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव मे राष्ट्रवादी कांग्रेस ने अभिनेता डॉ. अमोल कोल्हे को मैदान मे उतारा गया था. उससे पहले डॉ. अमोल कोल्हे छत्रपति संभाजीराजे और छत्रपति शिवाजी की भूमिका कर चुके थे. आढलराव पर डॉ. कोल्हे की यह इमेज भारी पड़ी. शिरुर मे चुनावों के दरम्यान आढलराव ने ओबीसी समाज के बारे मे एक टिपण्णी भी की उसका भी खासा असर रहा और अमोल कोल्हे महज 58 हजार वोटों से चुनकर लोकसभा पहुंचे.
एनसीपी को आढलराव को ही क्यों देनी पड़ी उम्मीदवारी?
शिरुर लोकसभा चुनावक्षेत्र में विधानसभा के 6 चुनावक्षेत्र आते हैं. उनमे से पाँच विधायक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के हैं और उसमें से 4 विधायक अजित पवार के साथ हैं. राष्ट्रवादी के कद्दावर नेता दिलीप वलसे-पाटील भी शिरुर लोकसभा चुनावक्षेत्र से ही आते हैं, लेकिन फिर भी अमोल कोल्हे के खिलाफ लड़ने के लिए न वलसे पाटील तैयार हैं न कोई और नेता, लेकिन पूर्व विधायक विलास लांडे ने यहां से लड़ने की इच्छा जाहिर की थी, उन्हें पार्टी ने सपोर्ट नहीं किया. इसलिए पार्टी ने यहां से मराठा समाज से आने वाले शिवाजीराव आढलराव को उम्मीदवार बनाया है.