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ओडिशा में 15 साल बाद आखिर BJD को बीजेपी से गठबंधन की जरूरत क्यों पड़ रही है?

भुवनेश्वर से दिल्ली तक बैठकों का दौर चल रहा है. ओडिशा में बीजेडी और बीजेपी गठबंधन का औपचारिक ऐलान अभी बाकी है लेकिन अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि 2000 से ही ओडिशा की सत्ता पर काबिज नवीन पटनायक को 15 साल बाद आखिरकार गठबंधन की जरूरत क्यों पड़ रही है?

पीएम नरेंद्र मोदी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक पीएम नरेंद्र मोदी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 07 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 11:51 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 मार्च को ओडिशा के दौरे पर थे और उसी दिन सूबे के पूर्व सीएम बीजू पटनायक की जयंती भी थी. पीएम ने बीजू बाबू को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इसे अपना सौभाग्य बताया और लगे हाथ सीएम नवीन पटनायक को अपना मित्र कहकर संबोधित किया, जमकर तारीफ की. इसके बाद से ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि क्या नीतीश कुमार की जेडीयू, जयंत चौधरी की आरएलडी के बाद अब बीजू जनता दल (बीजेडी) की भी पुराने गठबंधन में वापसी होने वाली है?

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हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में बीजेडी ने बीजेपी उम्मीदवार अश्विनी वैष्णव का समर्थन किया था. इसे नवीन पटनायक की पार्टी की ओर से गठबंधन के लिए बीजेपी को सॉफ्ट सिग्नल की तरह देखा गया. पीएम मोदी के हालिया दौरे के दौरान उनकी नवीन पटनायक के साथ दिखी केमिस्ट्री ने इस चर्चा को और हवा दे दी. अब दोनों दलों का गठबंधन तय बताया जा रहा है लेकिन सवाल भी उठ रहे हैं कि 2000 से ही ओडिशा का पावर सेंटर बने रहे नवीन पटनायक को 15 साल बाद अब आखिर फिर से गठबंधन की जरूरत क्यों पड़ रही है?

पीएम मोदी और सीएम नवीन पटनायक के बीच दिखी अच्छी केमिस्ट्री (फोटोः पीटीआई)

दरअसल, नवीन पटनायक 2000 से ही ओडिशा के सीएम हैं. बीजेपी और कांग्रेस जैसी पार्टियां बीजेडी की 24 साल पुरानी सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी को वोट के रूप में कैश कराने की कोशिश में हैं. बीजेडी की अंगुली पकड़कर 2009 तक चलती रही बीजेपी के लिए ओडिशा में सबसे बड़ा संकट नेतृत्व का था. पार्टी ने रणनीतिक रूप से धर्मेंद्र प्रधान और अश्विनी वैष्णव के रूप में दो मजबूत नेता खड़े किए ही, जुएल ओराम, जय बैजयंत पांडा, मनमोहन सामल जैसे नेताओं को भी आगे किया.

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चुनाव दर चुनाव बीजेपी का बढ़ा ग्राफ

बीजेडी ने साल 2009 के चुनाव से पहले बीजेपी से गठबंधन तोड़ने का ऐलान किया था. 2009 में बीजेपी को 15.1 फीसदी वोट शेयर के साथ छह सीटों पर जीत मिली थी और तब से अब तक, चुनाव दर चुनाव पार्टी का ग्राफ बढ़ा है. बीजेडी 2009 में 38.9 फीसदी वोट शेयर के साथ 146 सदस्यों वाली विधानसभा में 103 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन 2014 और 2019 चुनाव के एक ट्रेंड ने पटनायक की पार्टी की टेंशन बढ़ा दी.  बीजेपी का ग्राफ चुनाव दर चुनाव चढ़ा है. 2014 और 2019 के ओडिशा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो बीजेडी का वोट शेयर बढ़ा जरूर है लेकिन मामूली ही सही, सीटें घटी हैं.

2014 चुनाव से लगातार बढ़ा है बीजेपी का वोट शेयर (फाइल फोटोः पीटीआई)

साल 2014 में बीजेडी का वोट शेयर पांच फीसदी इजाफे के साथ 43.9 फीसदी पहुंच गया और 117 सीटें जीतकर पार्टी ने फिर से सरकार बना ली. 26 फीसदी वोट शेयर के साथ 16 सीटें जीतकर कांग्रेस दूसरे और बीजेपी 18.2 फीसदी वोट शेयर के साथ 10 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर रही थी. 2014 की हार के बाद बीजेपी ने ओडिशा में सक्रियता बढ़ा दी. नतीजा 2019 के विधानसभा और लोकसभा, दोनों ही चुनाव में देखने को भी मिला. बीजेपी 32.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 23 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और कांग्रेस 16.3 फीसदी वोट के साथ नौ सीटें जीत तीसरे स्थान पर खिसक गई. बीजेडी का वोट शेयर 1.3 फीसदी इजाफे के साथ 45 फीसदी के पार पहुंच गया लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले पांच सीटें कम हो गईं.

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क्या कहते हैं लोकसभा चुनाव के आंकड़े?

बीजेडी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 44.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 21 में से 20 सीटें जीती थीं. तब बीजेपी 21.9 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट ही जीत सकी थी. 2019 में बीजेडी का वोट शेयर 43.3 फीसदी पर आ गया और पार्टी को 2014 के मुकाबले आठ सीट का नुकसान उठाना पड़ा वहीं इसके ठीक उलट बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 38.9 फीसदी पहुंच गया और पार्टी की सीटें भी एक से बढ़कर आठ हो गईं. तब से अब तक बहुत कुछ बदल चुका है. बीजेडी में नवीन पटनायक के बाद कौन? उत्तराधिकार का सवाल और गहरा हुआ है.

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लगातार छठी बार सत्ता में वापसी की कोशिश में हैं नवीन पटनायक (फोटोः पीटीआई)

पटनायक के रडार पर चामलिंग का रिकॉर्ड

ओडिशा और सूबे की सत्ता का प्रतीक बन चुके नवीन पटनायक के सामने अजेय रिकॉर्ड बचाए रखने की चुनौती है तो साथ ही है सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहने का रिकॉर्ड तोड़ने का अवसर भी. पटनायक अगर पांच-छह महीने और सीएम रहते हैं तो वह पवन चामलिंग का लगातार 24 साल सीएम रहने का रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं. बीजेपी आदिवासी, पिछड़ा और गरीब वर्ग को साधने की रणनीति के साथ चुनावी तैयारियों में जुटी है और यही वोट बैंक बीजेडी के लंबे शासनकाल का मेरुदंड भी माना जाता है. अपने वोट गणित पर प्रहार ने भी बीजेडी को नए सिरे से गठबंधन पर सोचने पर मजबूर किया. आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 ओडिशा चुनाव में दोनों दलों का वोट शेयर ही करीब 75 फीसदी पहुंचता है. ऐसे में बीजेडी को यह लग रहा है कि दोनों दल साथ चुनाव मैदान में उतरे तो छठी बार पटनायक सरकार का ख्वाब यथार्थ में बदल सकता है.

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