
भारतीय जनता पार्टी ने शनिवार को 2024 चुनाव के लिए सांसदी के टिकट का ऐलान किया. पार्टी ने कई संसदीय क्षेत्रों के मौजूदा सांसदों को रिपीट किया है तो कुछ बड़ी सीटों के लिए नए प्रत्याशियों की भी घोषणा की है. मध्य प्रदेश की गुना सीट इन्हीं में से हैं, जहां से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को टिकट मिला है, लेकिन ये सीट इतनी खास क्यों है? चर्चा में क्यों है और इसकी कहानी क्या है? इन सारे सवालों के जवाब पर डालते हैं एक नजर-
2019 का लोकसभा चुनाव और गुना सीट
साल था 2019 और महीना यही फरवरी-मार्च वाला ही रहा होगा. चुनावी माहौल सज चुका था. आम चुनावों के लिए टिकटों का ऐलान हो रहा था. देशभर के संसदीय क्षेत्रों से होते हुए मीडिया सहित लोगों की नजर मध्य प्रदेश की गुना सीट पर जाकर टिक गई थी. वजह थी कि गुना, आम नहीं बेहद खास सीट थी और इस सीट पर काबिज थे महाराज कहलाने वाले, सिंधिया खानदान के चिराग, तब कांग्रेस में रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया.
बीजेपी ने यहां से केपी यादव को दिया था टिकट
ये सीट खास इसलिए बन गई, क्योंकि बीजेपी ने इस सीट पर जिस शख्स को उतारा वह खुद कभी सिंधिया का बहुत बड़ा फॉलोवर रहा था. उनके लिए कैंपेनिंग करता था, बल्कि उस समय 'श्रीमंत सिंधिया फैंस क्लब' नाम का एक गुट हुआ करता था, जिसके लिए उस शख्स को बाकायदे लेटर जारी कर प्रदेश उपाध्यक्ष भी बनाया गया था. ये शख्स कोई और नहीं, कृष्णपाल यादव थे, जिन्हें साल 2019 में बीजेपी ने टिकट दिया था.
प्रियदर्शिनी सिंधिया ने कसा था तंज
केपी यादव जब 'श्रीमंत और महाराज' कहे जाने वाले सिंधिया के सामने सांसदी का टिकट लेकर खड़े हुए तो सिंधिया की पत्नी ने तंज कसते हुए सोशल मीडिया पर लिखा था, 'जो कभी महाराज के साथ एक सेल्फी के लिए लाइन में लगे रहते थे, बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया है.' गुना की राजनीति में इस बात की चर्चा आम है कि शायद सिंधिया 2019 का चुनाव जीत भी जाते, लेकिन केपी यादव के लिए की गई इस टिप्पणी को लोगों ने दिल पर ले लिया और फिर उन्हें अपना सांसद चुनकर ये बताने की कोशिश की थी, कि असली लोकतंत्र क्या होता है.
तब भारी मतों से जीते थे केपी यादव
साल 2019 में बीजेपी के टिकट पर केपी यादव को भारी जीत मिली थी. चुनाव आयोग के अनुसार केपी यादव को गुना संसदीय क्षेत्र के कुल 11,78,423 वोटों में से 52.11 प्रतिशत यानी 6 लाख 14 हज़ार से ज़्यादा वोट मिले थे. इस चुनाव में सिंधिया की हार हुई थी और वह अपनी पांरपरिक गुना सीट गंवा बैठे थे. हालांकि इसी चुनाव के तकरीबन सालभर बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से हाथ छुड़ा लिया और बीजेपी में शामिल हो गए थे. तब से ही एक क्षेत्र के दो राजनीतिक विरोधियों के बीच अदावत की नींव पड़ गई. गुना के बीते पांच साल के इतिहास को देखेंगे तो यहां से मौजूदा सांसद केपी यादव और श्रीमंत कहे जाने वाले सिंधिया के बीच एक ही पार्टी में रहने के बावजूद टकराव की खबरें आम रही हैं.
जब केपी यादव ने फोड़ा था लेटर बम
वैसे केपी यादव और सिंधिया के बीच की यह अदावत सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के कुछ दिनों बाद ही सामने आ गई थी. दो साल पहले 2022 में केपी यादव ने एक लेटर बम फोड़कर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को सकते में डाल दिया था. सिंधिया तब केंद्रीय मंत्री बन चुके थे और उनके खिलाफ सांसद रहे केपी यादव ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को चिट्ठी लिखी थी.
लगाए थे उपेक्षा और साइड लाइन के आरोप
केपी यादव ने तब उपेक्षा और साइडलाइन करने का आरोप लगाते हुए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से अपना दुखड़ा बताया था. उन्होंने चिट्ठी में लिखा था कि, ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक पार्टी का माहौल बिगाड़ रहे हैं. उन्होंने सिंधिया समर्थक मंत्रियों पर गुटबाजी और भेदभाव करने का भी आरोप लगाया था. यह चिट्ठी सार्वजनिक होने के बाद पार्टी में गुटबाजी का मामला गरमा गया था.
कई बार आमने-सामने आए थे सिंधिया और केपी यादव
यादव ने कहा कि सिंधिया समर्थकों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में मेरी और भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की जा रही है. उन्हें कार्यक्रमों में नहीं बुलाया जाता. प्रोटोकॉल के अनुसार उद्घाटन, लोकार्पण कार्यक्रम की शिलापटि्टका पर भी जगह नहीं दी जा रही. कई ऐसे काम होते हैं, जिन्हें उनके प्रयासों से मंजूरी मिली है. दरअसल, सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद उनके समर्थकों को पार्टी में रुतबा मिला था, खुद सिंधिया भी केंद्रीय मंत्री बनाए गए थे, वहीं, मोदी टीम के यादव भले ही चुनाव जीत गए थे, लेकिन वह अपने ही क्षेत्र में संघर्ष कर रहे थे. साल 2022 में ही शिवपुरी जिले के माधव नेशनल पार्क में टाइगर सफारी को लेकर सिंधिया और यादव आमने-सामने आ गए थे.
जब 2018 में केपी ने सिंधिया से मांगा था विधायकी के लिए टिकट
दो साल पहले सिंधिया और केपी यादव के बीच सामने आई इस अदावत का इतिहास साल 2019 के लोकसभा चुनाव से भी एक साल पुराना है. असल में जब केपी यादव कांग्रेस में थे और घोर सिंधिया समर्थक हुआ करते थे, तब पहली बार उन्होंने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को उजागर किया था. फरवरी 2018 में ही मध्य प्रदेश की मुंगावली विधानसभा सीट पर उप-चुनाव हुए थे. लोकल मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो, तब केपी यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से अपने लिए टिकट की डिमांड की थी, लेकिन उस चुनाव में ब्रिजेंद्र सिंह यादव को टिकट मिला था और वे जीत भी गए थे, लेकिन खबरों के अनुसार केपी यादव का तभी से अपने नेता की ओर से मन हट गया और वह बीजेपी में चले गए.
बीजेपी ने दिया था केपी को राजनीतिक बदला लेने का मौका
बीजेपी ने भी उन्हें अपना राजनीतिक बदला लेने का पूरा मौका दिया. कुछ महीनों पहले ही पार्टी में शामिल केपी यादव को गुना-शिवपुरी क्षेत्र से ही सिंधिया के खिलाफ टिकट दे दिया और केपी ने तकरीबन एक लाख से अधिक वोटों से सिंधिया को हरा कर उनकी पारंपरिक सीट में सेंध लगा दी.
सिंधिया के काफी करीबी भी रह चुके हैं केपी
केपी यादव के इतिहास पर थोड़ा और गौर करें तो सिंधिया से उनकी नजदीकी की कई कहानियां सामने आती हैं. केपी यादव अपने नाम के आगे डॉक्टर लगाते हैं. साल 2019 में चुनाव के लिए नामांकन के दौरान उन्होंने अपने पेशे और संपत्ति वाले कॉलम में दर्ज किया कि वह अशोकनगर में स्टैंडर्ड हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के मालिक हैं. बताते हैं कि इस अस्पताल के उद्घाटन के लिए भी सिंधिया ही पहुंचे थे.
...लेकिन अब बदल चुके हैं समीकरण
आज के मौजूदा समय की बात करें तो अब समीकरण काफी बदल चुके हैं. कभी केपी यादव से हारे सिंधिया अब बीजेपी में हैं. केंद्रीय मंत्री हैं और बीजेपी ने 2024 के चुनाव के लिए जो लिस्ट जारी की है, उसमें गुना-शिवपुरी सीट से फिर एक बार सिंधिया को ही नवाजा है. वह फिर से अपनी पारंपरिक सीट से चुनावी ताल ठोकेंगे, जीतेंगे या हारेंगे ये तो वक्त बताएगा, लेकिन अभी के लिए नई बात ये है कि केपी यादव का टिकट कट चुका है और वह फिर से नेपथ्य में चले गए हैं.