Advertisement

नीतीश कुमार के खिलाफ चिराग पासवान की बढ़ती लौ किसे जलाएगी?

चिराग पासवान जिस अंदाज में मंच पर उत्साहित होकर बोल रहे हैं कि मैं शेर का बेटा हूं, सिर पर कफन बांध के निकला हूं. यह बात मंच तक तो ठीक है पर बिहार की राजनीति में उन्हें जल्दी ही फैसला करना होगा कि किसके लिए उन्हें सिर पर कफन बांधना है. क्योंकि इस बार उनके अस्तित्व का सवाल है.

चिराग की रैली में जुटी भीड़ चिराग की रैली में जुटी भीड़
संयम श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 11 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 3:17 PM IST

बिहार में लोजपा रामविलास पासवान यानि चिराग पासवान गुट ने वैशाली लोकसभा क्षेत्र में आने वाले साहेबगंज में अपनी पहली चुनावी रैली की. भीड़ के हिसाब से देखा जाए तो अपने पहले इम्तिहान में चिराग पासवान पास रहे. पर भीड़ को वोट में बदलना टेढ़ी खीर साबित होता है. इस बात को चिराग भी समझते हैं.पर जिस तरह वो बिना नाम लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को टारगेट कर रहे थे वह उनके अभी भी परिपक्व न होने संदेश देता है. विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार के खिलाफ अभियान चलाकर उन्हें कमजोर तो कर दिया पर अपने लिए कोई आधार नहीं खड़ा कर सके. अब लोकसभा चुनावों के समय भी चिराग अगर उसी मोड में नजर आते हैं तो निश्चित है उनके अस्तित्व पर संकट हो सकता है. जिस अंदाज में वे उत्साहित होकर बोल रहे हैं कि शेर का बेटा हूं, सिर पर कफन बांध के निकला हूं, यह बात मंच पर तो तो ठीक है पर बिहार की राजनीति में सिर पर कफन बांधना उनके राजनीति का द एंड कर सकता है.

Advertisement

चिराग की राजनीति खत्म हो सकती है

चिराग एक होनहार नेता हैं. उनमें भविष्य दिखता है. पर पिता का साया छिनने और चाचाओं के धोखा देने के बाद दिन प्रति दिन उनकी राजनीतिक शक्ति घट रही है. इस बात को उन्हें समय रहते समझना होगा. अन्यथा दूसरों की लंका लगाने के चक्कर में चिराग की लौ उनकी खुद की राजनीति को चौपट कर देगी. बिहार की राजनीति में उनका सामना ऐसे धुरंधरों से है जो बिना राजनीतिक चाल चले सामने वालों को धराशायी कर देते हैं. उनके सामने अगर नीतीश कुमार हैं तो उनके पीछे लालू यादव और तेजस्वी हैं. उनके साथ-साथ बीजेपी है जो बिहार में खुद के अस्तित्व की तलाश कर रही है. जो खुद का अस्तित्व तलाश रहा हो वो किसी के नींव पर अपना भवन खड़ा कर सकता है. चिराग को बहुत फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहिए. भूखे भेड़ियों के बीच मेमना अगर दिमाग से नहीं चलेगा तो बहुत जल्दी शिकार बन जाएगा.

Advertisement

चिराग पासवान ने 2020 में बिहार विधानसभा चुनावों में बिना किसी गठबंधन के लोक जनशक्ति पार्टी को चुनाव मैदान में उतारा था. शायद यह भी उनकी एक अपरिपक्वता का ही उदाहरण था.वही गलती वह एक बार फिर दुहराने की राह पर खड़े हैं. हालांकि विधानसभा चुनावों में पार्टी को क़रीब 7 फ़ीसदी वोट ज़रूर मिले थे. एलजेपी को बेगूसराय ज़िले की मटिहानी सीट मिली थी,पर बाद में यहां के विधायक राजकुमार सिंह जेडीयू में शामिल हो गए.फिर पार्टी में बंटवारा हो गया.पार्टी में टूट के बाद से चिराग पासवान गुट ने 2 उपचुनाव लड़े .उपचुनाव में चिराग पासवान के उम्मीदवारों को क़रीब 6 फ़ीसदी वोट मिले .माना जाता था कि बिहार में रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी के पास हमेशा 6 फ़ीसदी वोट होता था.चिराग पासवान के पास भी तकरीबन उतना ही वोट की ताकत है. ऐसे में यह समझा जाता है कि चिराग के अगले क़दम का बिहार के किसी भी गठबंधन पर असर पड़ सकता है.

'बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट' नारे पर वाह-वाह होगी पर वोट नहीं मिलेंगे

रैली के दौरान चिराग पासवान ने संकेत दिया है कि वो बेहतर विकल्पों पर विचार कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘हर पार्टी, हर गठबंधन चाहता है कि चिराग पासवान उसके साथ रहें. ऐसा इसलिए क्योंकि लोग उनके ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ दृष्टिकोण से प्रभावित हैं.’ चिराग पासवान भूल रहे हैं कि पार्टियां उनके नारे और दृष्टिकोण से नहीं प्रभावित हैं बल्कि उनके पास जो 7 प्रतिशन पासवान वोट हैं उनके लिए पूछ रही हैं. चिराग जिस तरह साफ-साफ बीजेपी को संकेत दे रहे हैं कि वे महागठबंधन की तरफ भी कदम बढ़ा सकते हैं वो उनके लिए खतरनाक हो सकता है. बीजेपी के लिए नहीं. क्योंकि बीजेपी के लिए अभी अस्तित्व का संकट नहीं है. जबकि चिराग के लिए यह चुनाव उनके अस्तित्व की रक्षा के लिए जरूरी है.हो सकता है कि चिराग पासवान प्रेशर पॉलिटिक्स के तहत ये सब कर रहे हों पर इतना तो तय है कि वो फंस चुके हैं.

Advertisement

किस ओर जाएंगे, नहीं कर पा रहे हैं फैसला

चिराग के रविवार के भाषण में उनके तेवर बता रहे थे कि वो एनडीए से खिन्न हैं. नीतीश के खिलाफ भाषणबाजी करके वो अपनी खुन्नस तो निकाल रहे थे पर उधेड़बुन से बाहर नहीं निकल पा रहे थे. उन्होंने गठबंधन को लेकर एक बार फिर सस्पेंस बढ़ाया पर नीतीश कुमार का बिना नाम लिए आक्रामक होना बेवजह ही रहा.अगर चिराग को एनडीए में रहना है तो बेवजह नीतीश कुमार को टारगेट करने से कुछ नहीं मिलने वाला है. दूसरी बात एनडीए से निराश होने के बाद अगर महागठबंधन की ओर जाएंगे तो वहां भी ठीक से बार्गेनिंग नहीं कर पाएंगे. नतीजा यह होगा कि जिस तरह 2020 में अकेले चुनाव लड़े वैसे ही इस बार भी करना पड़ेगा. इसमें नुकसान सिर्फ चिराग का ही होने वाला है. एनडीए का हिस्सा रहते हुए उन्होंने जिस तह एनडीए की मौजूदा सरकार और उसके मुखिया नीतीश कुमार की हर नाकामी पर घेरा है वह उनके लिए वैसे ही हो सकता है जैसे कि ज्यादा के चक्कर कुछ भी नहीं मिलना. इस अवसर पर सांसद वीणा सिंह ने उन्हें मुकुट पहनाया, एक दूसरे दावेदार ने भी मुकुट पहनाया. 

नीतीश को नुकसान पहुंचाने की बजाय अपने फायदे के बारे में सोचें चिराग

Advertisement

कहा जाता है कि बीजेपी ने उनका हमेशा इस्तेमाल किया है.पार्टी टूटने की वजह से चिराग पासवान के मन में बीजेपी को लेकर एक नाराज़गी रही है. यह सही है कि बीजेपी पहल करती, तो शायद एलजेपी को टूटने से बचाया जा सकता था. चिराग अगर ऐसा सोचते हैं तो यह सही ही है. पर राजनीति के खेल में सब अपना हित देखते हैं. पार्टी टूट गई, बंगला भी छिन गया. अब सीट शेयरिंग में दोनों गुटों को बराबर महत्व मिल रहा है. वाकई में चिराग के साथ तो एनडीए ने अन्याय कर दिया. पार्टी की सारी मलाई पशुपति पारस लेकर चले गए और वोट तो आज भी चिराग के नाम ही मिलने वाला है. रविवार की रैली इसका सबूत है. पशुपति पारस चाहकर भी इतनी भीड़ नहीं जुटा सकते हैं. चिराग ने 2020 के विधानसभा चुनावों में नीतीश के प्रत्याशियों को हराने का जो बीड़ा उठाया था उसमें भी कहीं न कहीं इशारा बीजेपी का ही माना जाता रहा है.

अब सवाल यह है कि क्या ये सब बातें सोचकर  चिराग पासवान को महागठबंधन की ओर जाने का रुख करना चाहिए.अगर बीजेपी के पास चिराग गुट के वोट आ जाते हैं, तो इससे बीजेपी को फ़ायदा ज़रूर होगा, लेकिन अगर चिराग महागठबंन के साथ जाते हैं तो बीजेपी को भारी नुकसान हो सकता है.आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव भी कई बार चिराग पासवान को अपने साथ जोड़ने का न्योता दे चुके हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि चिराग के लिए महागठबंधन के दरवाजे खुले हैं. चिराग एनडीए में रहें या महागठबंधन में जाएं पर जरूरी है कि वो नीतीश विरोध से ऊपर उठकर अपने और अपनी पार्टी के हित के बारे में सोचे, नहीं तो इतिहास में गुम होने में ज्यादा समय नहीं लगता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement