
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी मात मिली थी. विधानसभा चुनाव की परीक्षा में फेल रही कांग्रेस के सामने अब लोकसभा का टेस्ट है. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार बनाने के बाद अब लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है. वहीं, कांग्रेस ने भी कमर कस ली है. मध्य प्रदेश कांग्रेस में लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर बैठकों का दौर भी शुरू हो चुका है. मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता लोकसभा चुनाव के लिए रणनीति क्या हो? रणनीति की बात हो रही है तो चुनौतियों की चर्चा भी. कांग्रेस के सामने लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में क्या चुनौतियां होंगी?
नए-पुराने नेताओं का बैलेंस
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए गुटबाजी सबसे बड़ी समस्या रही है. विधानसभा चुनाव में भी तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की तल्खी खुलकर सामने आई थी. विधानसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने कमलनाथ की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से छुट्टी कर दी. सूबे में संगठन की कमान जीतू पटवारी को सौंप दी. जीतू पटवारी की इमेज ऐसे नेता की है जो किसी गुट के नहीं हैं. जीतू की गिनती पार्टी के युवा नेताओं में होती है. पार्टी में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह, अजय सिंह राहुल, अरुण यादव जैसे पुराने कद्दावर भी हैं. ऐसे में नए और पुराने नेताओं के बीच बैलेंस बनाना भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी.
मध्य प्रदेश के लिए कांग्रेस ने राजनीतिक मामलों की समिति का गठन किया है. इन कमेटियों में से एक की कमान प्रदेश अध्यक्ष और एक की प्रदेश प्रभारी को सौंपी गई है. चुनाव समिति की कमान प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को सौंपी गई है. वहीं, पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी की कमान मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी जितेंद्र सिंह को दी गई है. कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिहाज से महत्वपूर्ण इन कमेटियों में सूबे के करीब-करीब सभी प्रमुख नेताओं को बतौर सदस्य शामिल कर बैलेंस बनाने की कोशिश की है. लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार चयन से लेकर अन्य महत्वपूर्ण फैसलों में इन समितियों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी. ऐसे में लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवार चयन के समय एकजुटता का संदेश जाए और किसी तरह की रार जगजाहिर न हो, यह भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी.
सीटों की संख्या कैसे बढ़े
कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती 29 लोकसभा सीटों वाले सूबे में सीटों की संख्या दो अंकों में ले जाने की है. पार्टी 2014 में जहां दो सीटें ही जीत सकी थी. वहीं, 2019 में महज एक सीट पर सिमट गई. कांग्रेस 2019 के चुनाव में छिंदवाड़ा सीट ही जीत सकी थी. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे देखें तो कांग्रेस को 66 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी. लोकसभा सीट के लिहाज से देखें तो कांग्रेस करीब 10 लोकसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाने में सफल रही थी. अब पार्टी के सामने लोकसभा चुनाव में यह बढ़त बनाए रखने की चुनौती होगी लेकिन सबसे अधिक मुश्किल टास्क कार्यकर्ताओं में जोश भरने को माना जा रहा है.
विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में फिर से जोश भरने का चैलेंज पार्टी के सामने होगा, साथ ही ऐसे मुद्दों की तलाश भी करनी होगी जो प्रभावी सिद्ध हो सके. जिस तरह से पीएम मोदी का नाम आगे कर बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की है, जब चुनाव खुद मोदी से जुड़ा है तब कांग्रेस के लिए जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश भी आसान नहीं. कांग्रेस ने उम्मीदवारों के चयन के लिए कमेटी बना दी है. कमेटी हर सीट से चार उम्मीदवारों के नाम तय करेगी और इसे शीर्ष नेतृत्व को भेजेगी. कहा जा रहा है कि इन्हीं चार में से किसी एक को लोकसभा चुनाव के लिए टिकट दिया जाएगा.
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करीब 24 फीसदी वोट का अंतर पाटना
मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहता है. पिछले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने 58.5 फीसदी वोट शेयर के साथ सूबे की 29 में से 28 सीटें जीती थीं. वहीं, कांग्रेस 34.8 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट ही जीत सकी थी. कांग्रेस और बीजेपी के बीच करीब 24 फीसदी वोट का अंतर है. कांग्रेस के सामने वोट शेयर के लिहाज से ये बड़ा गैप भरने की चुनौती होगी ही, हर लोकसभा चुनाव में वोट शेयर गिरने का ट्रेंड बदलने का चैलेंज भी होगा.
हर चुनाव में वोट शेयर गिरने का ट्रेंड रोकना
मध्य प्रदेश में पिछले 32 साल का चुनावी अतीत देखें तो कांग्रेस वोट शेयर के लिहाज से बीजेपी के मुकाबले पिछड़ रही है. साल 1991 में कांग्रेस का वोट शेयर बीजेपी के मुकाबले अधिक रहा था. तब कांग्रेस को 45 फीसदी वोट मिला था. बीजेपी कांग्रेस के मुकाबले करीब तीन फीसदी कम 42 फीसदी वोट तक ही पहुंच सकी थी. यह गिरावट तब भी जारी रही जब सूबे में कांग्रेस की सरकार रही. 1996, 1998, 1999 और 2019 लोकसभा चुनाव के समय सूबे की सत्ता पर कांग्रेस ही काबिज थी लेकिन फिर भी बीजेपी वोट शेयर के मामले में कहीं आगे रही थी.
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क्या कहते हैं पिछले चार चुनाव के आंकड़े
पिछले चार चुनाव के आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2004 में कांग्रेस 34 फीसदी वोट शेयर के साथ चार सीटें ही जीत सकी थी. तब बीजेपी को करीब 48 फीसदी वोट शेयर के साथ 25 सीटों पर जीत मिली थी. 2009 के चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर और सीटें, दोनों में इजाफा जरूर हुआ लेकिन फिर भी बीजेपी कहीं आगे रही. 2009 में कांग्रेस को 40 फीसदी वोट शेयर के साथ 12 सीटों पर जीत मिली थी तो वहीं बीजेपी 43 फीसदी वोट के साथ 17 सीटों पर विजयी रही थी. 2014 में बीजेपी के वोट शेयर का आंकड़ा 50 फीसदी के लैंडमार्क को भी पार कर गया था.
साल 2014 के चुनाव में बीजेपी ने करीब 54 फीसदी वोट शेयर के साथ 29 में से 27 सीटें जीत ली थीं और कांग्रेस 34 फीसदी वोट शेयर के साथ महज दो सीट पर सिमट गई- छिंदवाड़ा और गुना. 2014 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर केवल दो ही उम्मीदवार जीत सके थे- कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 58 फीसदी वोट शेयर के साथ 28 सीटें जीत लीं और कांग्रेस 34.5 फीसदी वोट शेयर के बावजूद महज एक सीट पर सिमट गई थी. तब केवल छिंदवाड़ा सीट ही कांग्रेस बचा सकी थी.
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राहुल की यात्रा कार्यकर्ताओं में भर पाएगी जोश?
मध्य प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन उन इलाकों में कुछ खास नहीं कर सकी थी जिन इलाकों से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा गुजरी थी. अब मणिपुर से शुरू हुई राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा सात दिन तक सूबे में रहने वाली है. यह यात्रा सात दिन में मुरैना, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, राजगढ़, आगर-मालवा, उज्जैन, रतलाम और झाबुआ समेत कुल नौ जिलों से गुजरेगी और इस दौरान कुल 700 किलोमीटर की दूरी तय करेगी. अब सवाल यह भी है कि क्या राहुल गांधी की यह यात्रा कार्यकर्ताओं में नया जोश भर पाएगी?