Advertisement

छोटी लड़ाई, बड़ा टारगेट... कम सीटों पर लड़ रही कांग्रेस को क्यों है ज्यादा नतीजों की उम्मीद?

बीजेपी जहां 'अबकी बार, 400 पार' का नारा देकर चुनाव मैदान में उतरी है तो वहीं कांग्रेस अब तक के चुनावी इतिहास में सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कम सीटों पर चुनाव लड़ रही कांग्रेस को ज्यादा नतीजों की उम्मीद क्यों है?

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी (फाइल फोटो) कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी (फाइल फोटो)
बिकेश तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 18 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 8:03 AM IST

लोकसभा चुनाव का रंग अब पूरी तरह चढ़ चुका है. पहले चरण की सीटों पर प्रचार थम गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश में जुटी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 'अबकी बार, 400 पार' का नारा दे दिया है. विपक्षी इंडिया ब्लॉक की अगुवाई कर रही कांग्रेस को क्षेत्रीय क्षत्रपों के सहारे बीजेपी का विजयरथ रोक लेने की उम्मीद है. इस चुनावी जंग में एक बात की चर्चा और हो रही है और वह है कांग्रेस का कम सीटों पर चुनाव लड़ना.

Advertisement

आजादी के बाद देश में सबसे अधिक समय तक जिस पार्टी की सरकार रही, वह कांग्रेस इस बार अब तक के चुनावी इतिहास में सबसे कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस इस बार करीब 300 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस नेता दावा कर रहे हैं कि पार्टी 330 से 340 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इस दावे को ही आधार मान लें तब भी ऐसा पहली बार है जब ग्रैंड ओल्ड पार्टी 400 से कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

सीटों की संख्या के लिहाज से छोटी नजर आ रही इस चुनावी जंग के लिए कांग्रेस ने बड़ा टारगेट सेट किया है. कांग्रेस कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है लेकिन उसे ज्यादा नतीजों की उम्मीद है. अब सवाल यह भी उठ रहे हैं कि कांग्रेस उतनी सीटों पर भी चुनाव नहीं लड़ रही जितनी सीटें जीतने का टारगेट बीजेपी ने सेट किया है. ऐसे में पार्टी को ज्यादा नतीजों की उम्मीद क्यों है?

Advertisement

गठबंधन का गणित

कांग्रेस कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है तो इसके पीछे गठबंधन का गणित भी है. यूपी में 80, बिहार में 40 और महाराष्ट्र में 48 सीटें हैं. यानि इन तीन राज्यों में ही 168 लोकसभा सीटें हैं. कांग्रेस यूपी में समाजवादी पार्टी (सपा), बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और लेफ्ट, महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) और शिवसेना (यूबीटी) के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी है. पार्टी यूपी में 17, बिहार में नौ और महाराष्ट्र में 17 सीटों यानि 168 सीटों वाले तीन राज्यों में 43 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. कांग्रेस महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल ने कहा भी है- गठबंधन को ध्यान में रखते हुए पार्टी कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

चुनाव वर्ष  कांग्रेस ने कितनी सीटों पर लड़ा
1996 529
1998 477
1999 453
2004 417
2009 440
2014 464
2019 421

पिछले चुनाव की बात करें तो बिहार में कांग्रेस और आरजेडी साथ थे लेकिन तब वीआईपी और लेफ्ट गठबंधन का हिस्सा नहीं थे. यूपी में कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही थी. महाराष्ट्र में शरद पवार की पार्टी और कांग्रेस साथ थे लेकिन उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली अविभाजित शिवसेना, बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए में थी. दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में भी कांग्रेस ने सपा, आम आदमी पार्टी, बीएपी जैसे सहयोगी दलों के लिए सीटें छोड़ी हैं. अब गठबंधन में पार्टियों की संख्या बढ़ी है तो इसका असर सीटों की संख्या पर भी नजर आ रहा है.

Advertisement

कांग्रेस का टारगेट क्या

कांग्रेस का बड़ा टारगेट यह है कि पार्टी भले ही कम सीटों पर चुनाव लड़ रही हो, सीटें ज्यादा जीते. इंडिया ब्लॉक की स्थापना के समय से ही अलग-अलग नेताओं और दलों की ओर से जो फॉर्मूले सामने आ रहे थे, उसमें भी जो जहां मजबूत है वहां लड़े की बात हो रही थी. यूपी में इंडिया ब्लॉक की अगुवाई कर रही सपा के प्रमुख अखिलेश यादव ने रेड लाइन खींच दी थी कि केवल संख्या गिनाने के लिए नहीं, उन्हीं सीटों पर दावेदारी करें जहां जीतने की स्थिति में हों. पिछले चुनाव की बात करें तो यूपी में कांग्रेस अकेले लड़कर केवल एक रायबरेली सीट ही जीत सकी थी. कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी भी अमेठी सीट से चुनाव हार गए थे. बिहार और महाराष्ट्र में भी कांग्रेस एक-एक सीट ही जीत सकी थी.

कांग्रेस के सामने इस बार इन राज्यों में अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने की चुनौती है. कांग्रेस इस बार सीटों की संख्या बढ़ाने, चुनाव दर चुनाव गिरते जा रहे स्ट्राइक रेट यानि विनिंग परसेंटेज में सुधार का बड़ा टारगेट लेकर चुनाव मैदान में उतरी है. यही वजह है कि यूपी से लेकर बिहार और महाराष्ट्र तक सीट शेयरिंग के मोर्चे पर पार्टी गठबंधन सहयोगियों के सामने बैकफुट पर नजर आई. यूपी में कांग्रेस ने अखिलेश की दी हुई 17 सीटों से संतोष कर लिया तो बिहार में नौ सीटों पर मान गई.

Advertisement

कम सीटों पर लड़कर ज्यादा की उम्मीद क्यों

कांग्रेस को कम सीटों पर लड़कर ज्यादा की उम्मीद है तो उसके पीछे 2004 के नतीजे भी हैं. तब कांग्रेस 417 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और चुनाव बाद यूपीए का गठन कर सरकार बनाने में भी सफल रही थी. यूपी की ही बात करें तो पार्टी का वोट शेयर 2019 के लोकसभा चुनाव में सात फीसदी के आसपास रहा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में एक सीट पर सिमट गई कांग्रेस 2022 के यूपी चुनाव में दो विधानसभा सीटें ही जीत सकी थी. 2019 में कांग्रेस ने जो सीट जीती थी, वहां से सपा-बसपा गठबंधन ने तब कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था.

यह भी पढ़ें: CAA पर क्यों चुप हैं राहुल गांधी? केरल सीएम पिनारई विजयन ने कांग्रेस पर बोला हमला

साल 2020 के बिहार चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने जिद करके अधिक सीटें तो ले ली, लेकिन स्ट्राइक रेट के मामले में लेफ्ट पार्टियां भी बीस साबित हुईं. कांग्रेस के नेता भी यह समझ रहे हैं कि सात से आठ फीसदी वोट शेयर के साथ अधिक सीटों पर चुनाव लड़कर कुछ हासिल नहीं होने वाला, जब तक इस वोटबैंक में कोई बफर वोटबैंक ना जुड़े.

यह भी पढ़ें: कौन होगा INDIA गठबंधन का PM उम्मीदवार? कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने दिया ये जवाब

Advertisement

कांग्रेस ने क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ उनकी शर्तों पर गठबंधन किया तो इसके पीछे एक मकसद एंटी इनकम्बेंसी के वोट बंटने से रोकना भी था. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को करीब 37 और उसकी अगुवाई वाले एनडीए को 45 फीसदी वोट मिले थे. तब कांग्रेस और उसकी अगुवाई वाले यूपीए का वोट शेयर 19.51 और 26 फीसदी रहा था. कांग्रेस को लग रहा है कि बीजेपी के खिलाफ क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ मिलकर लड़ने से एंटी इनकम्बेंसी के वोट, एक-दूसरे के वोट एकमुश्त इंडिया ब्लॉक के पक्ष में पड़े तो एनडीए का विजयरथ रोका जा सकता है.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement